समाजवादी जन परिषद ने आगामी विधानसभा चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की है.सम्मेलन का यह मानना है की हाल में सम्पन्न लोक सभा चुनावों में जिस तरह विपक्षी दलों के ऊपर छापे मारे गए, उन पर प्रतिबंध लगाए गए और मोदी-शाह को अवांछित मुद्दों पर हिन्दुत्ववादी उन्माद पैदा करने की खुली छूट दे दी गयी उससे चुनाव-आयोग की उपयोगिता पर जनता का विश्वास हिल गया है। सजप माँग करती है कि चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन सरकार द्वारा न होकर निष्पक्ष पैनल द्वारा हो। साथ ही चुनाव के दौरान और बाद में EVM के सम्भावित दुरुपयोग की जैसी ख़बरें आ रही है वह संदेह उत्प्पन्न करती हैं। सजप माँग करती है कि देश का चुनाव व्यवस्था पर विश्वास बनाए रखने के लिए EVM की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराए जायँ। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार भाजपा ने बाक़ी सभी दलों के चुनावी ख़र्च के जोड़ से बीस गुना से भी ज़्यादा ख़र्च इस चुनाव में किया है और चुनाव नतीजों पर इसका काफ़ी असर पड़ा है। सजप माँग करती है कि प्रत्याशियों के साथ राजनीतिक दलों के ख़र्चों पर भी सीमा निर्धारित होना चाहिए।

सम्मेलन में यह भी कहा गया कि जिस प्रकार 37% वोट लेकर एक पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल कर बाक़ी 63% जनता के हितों का अवमानना कर रही है, सजप उसका विरोध करती है। कम से कम 51% प्रतिशत जनता की सत्ता में भागीदारी को सुनिस्चित करने के लिए सजप हमेशा से अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुनावों का पक्षधर रहा है। आज विश्व के 83 देश अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर अपना सरकार चुन रहे हैं। भारत के भी कई राष्ट्रीय दल अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुनाव करवाने की माँग कर रही है। सजप सम्मेलन भी इस माँग के लिए जन जागरण अभियान चलाएगा।

मालूम हो कि “समाजवादी जन परिषद (सजप)” का द्विवारर्षिय राष्ट्रीय सम्मेलन 7 से 9 जून, 2019 तक बग़ैचा, नामकुम, रांची में आयोजित हुआ, जिसमें बारह राज्यों से 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर चर्चा कर पार्टी के आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा बनायी गयी। सम्मेलन के पहले दिन महासचिव अफ़लातून ने राजनीतिक-आर्थिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिस पर विस्तृत चर्चा के बाद संशोधित रूप में पारित किया गया।

प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि देश एक अभूतपूर्व संकट में फँसा हुआ है जहाँ एक फ़ासीबादी गिरोह सत्ता पर पिछले पाँच और अगले पाँच सालों के लिए क़ाबिज़ है और रहेगी। ऐसी सभी संस्थाएँ जो भारत के लोकतंत्र और अर्थतंत्र को शक्ति प्रदान करते रहे हैं, मसलन CBI, CVC, NIA, RBI, ED, Income Tax आदि के तंत्र और चरित्र को दो व्यक्तियों का अनुगामी बना दिया गया है।

वर्तमान सरकार के सहभागिता से अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं पर बड़ते हुए अत्याचार और प्रगतिशील हिन्दू विचारकों, कार्यकर्ताओं को हिंसा का शिकार बनाए जाने का सजप विरोध करती है। आदिवासियों की ज़मीन छीनी जा रही है, ग्रामीण और छोटे उद्योगों को बंद करवा कर बड़े पूँजीपतियों को एकाधिपत्य दिया जा रहा है और एक देश, एक भोजन, एक भाषा, एक रंग की नीती लागू की जा रही है जिसको हम नहीं मानेंगे।

भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण किसान त्रस्त हैं, बेरोज़गारी पैंतालिस सालों के सबसे ऊँचे स्तर पर है, भूख से मौतें हो रही है, स्वास्थ्य और शिक्षा का बाज़ारीकरण हो चुका है और भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। इस सरकार की विशेषता है कि अपने विरुद्ध लगे घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों का जाँच ही नहीं होने देती। यह सम्मेलन निश्चय करती है कि इन राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर संगठित रूप से, प्रभावित जनता को साथ लेकर

समापन सत्र 9 जून को ‘बिरसा सहादत दिवस के अवसर’ पर सजप सम्मेलन ने उन्हें श्रद्धांजलि दिया और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।

सम्मेलन ने अगले दो वर्षों के लिए दल के राष्ट्रीय पदाधिकारियों का चुनाव किया गया। नियमगिरी, ओड़िसा के क्रांतिकारी साथी लिंगराज आज़ाद अध्यक्ष और अफ़लातून महासचिव चुने गए। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पंद्रह सदस्यों का चुनाव भी किया गया।

सम्मेलन के अंतिम दिन खुला सत्र आयोजित हुआ जिसमें समान विचारधारा रखने वाले समूह व विचारकों ने हिस्सा लिया। बड़ी संख्या में झारखंड के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने भी इस सत्र में शिरकत की। सत्र में सजप के लिंगराज आज़ाद – उड़ीसा , अफ़लातून – वाराणसी और जोशी जैकोब – केरल, ने और स्थानीय संगठनों से आलोका कुज़ूर, फ़ादर स्टेन स्वामी, विनोद कुमार, मंथन, अशोक वर्मा, विस्वनाथ बाग़ी आदि ने झारखंड राज्य में चल रहे संघर्षों और सहयोग के क्षेत्रों पर प्रकाश डाला।