झारखंड की एनडीए सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ 14—15 सितंबर को दो दिवसीय पदयात्रा होने जा रही है. यात्रा घाटशिला से प्रारंभ होगी और गालूडी- डिमना-बेलटांड़-पटमदा-काटीन-बोड़ाम- रघुनाथपुर-झीमडी-सिरूम- कुकड़ू-मिलन चौक-डुमटांड-ईचागढ़-चौका-चांडिल- कांदरबेड़ा-डोबो-सोनारी-साकची के रास्ते बिरसा नगर में बिरसा मुंडा के प्रतिमा के समक्ष समाप्त होगी.
झारखंड जनतांत्रिक महासभा के नेताओं के अनुसार केन्द्र की भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए ने नरेन्द्र मोदी सरकार से कदमताल करते हुए झारखंड के अस्तित्व पर ही हमला बोल दिया है. सरकार की एक ही मंशा है, जल-जंगल-जमीन को कॉरपोरेटों के हाथ बेच दिया जाए. इसके लिए सरकार ने जनता के संवैधानिक लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला तेज़ कर दिया है.
देश और झारखण्ड में हाल के दिनों में दर्जन से ज्यादा भूख से मौतें हो चुकी है. जरूरतमंदों के पास नौकरी नहीं है. पलायन-विस्थापन का दायरा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. ऊपर से शिक्षा-चिकित्सा की स्थिति भी बदहाल है. दूसरी ओर जहां देश के अलग अलग कोनों में दलितों पर हमला बढ़ा है, वहीं महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों में इजाफा हुआ है.
कॉरपोरेट के फायदे के लिए ये सरकार कुछ भी कर सकती है. इसलिए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में संशोधन किया गया है. इस संशोधन के बाद ग्रामसभा को कोई निर्णायक भूमिका दिये वगैर भूमि अधिग्रहण होगा. पर्यावरण बर्बाद होगा. झारखंड में बेरोजगारी और विस्थापन का संकट बढ़ेगा.
पिछले दिनों सीएनटी-एसपीटी एक्ट को खत्म करने के खिलाफ निर्णायक लड़ाई हुई थी और सरकार को पीछे हटना पड़ा. लेकिन दूसरे रास्ते से लैंड बैंक के जरिए लगभग 21 लाख एकड़ गैरमजरुआ जमीन लूट ली गयी. हाल ही में 210 एमओयू के जरिए 3.10 लाख एकड़ जमीन का सौदा हुआ है.साथ ही ग्रामसभा की भूमिका खत्म कर देने के लिए नौकरशाही के नेतृत्व में ग्राम विकास समिति/आदिवासी विकास समिति के नाम से गैरकानूनी-गैरसंवैधानिक संस्थाओ का निर्माण किया गया है.
इसी बीच ग्राम सभा की स्वायत्तता की भावना से शुरु हुए पत्थलगड़ी आंदोलन को विवादास्पद गैंगरेप सहित अन्य बहाने से कुचल दिया गया है. यह आंदोलन ग्राम सभा के कानूनी व संवैधानिक अधिकार को बुलंद करने के साथ सचमुच में कॉरपोरेट लूट के खिलाफ जाता है. इस आंदोलन के पक्ष में सोशल मीडिया में लिखने वाले 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं-बुद्धिजीवियों पर देशद्रोह का मुकदमा लाद दिया गया है.देश भर में से सामाजिक सरोकार रखने वाले मानवाधिकार कर्मियों-बुद्धिजीवियों को अर्बन नक्सल के नाम से गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया जा रहा है.
झारखंड की अखंडता को तोड़ने के लिए आदिवासी और मूलवासी के बीच क्रिश्चन और गैर क्रिश्चन को लेकर विवाद पैदा किया जाएगा। जिसका सबसे बड़ा उदहारण है मॉब लिंचिंग। बेकुसूर मुसलमानों - आदिवासियों एवं अन्य लोगों को गौरक्षा-गौमांस के बहाने क्रूरतापूर्वक मार दिया जा रहा है। आकड़ों की मानें तो मॉब लिंचिंग की घटनाओ में झारखण्ड पहले नंबर पर है.
ST, SC, EBC/MBC, OBC को मिलने वाले आरक्षण और सामाजिक न्याय पर केन्द्र सरकार हमला कर रही है. आज जरुरी हो गया है कि इस मोर्चे पर भी संघर्ष तेज़ होना चाहिए. डेढ़ दशक पहले झारखंड कैबिनेट ने एसटी, एससी, इबीसी/एमबीसी व ओबीसी आरक्षण के दायरे को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 73 प्रतिशत करने का फैसला लिया था. हाईकोर्ट के स्टे के बाद जाती-आती सरकार चुप है. सरकार को चाहिए कि 73 प्रतिशत आरक्षण को विधानसभा से पारित करा कर केन्द्र सरकार को भेजे और केन्द्र सरकार 9वीं अनुसूची में डाले. तथा साथ में प्राइवेट क्षेत्र के नौकरियों में भी तथा सभी तरह के ठेका पट्टा में भी ST, SC, EBC/MBC, OBC के लिए आरक्षण लागू करवाने के लिए भी संघर्ष करने की जरूरत है.
सरकार कॉरपोरेटों के ऊपर सब कुछ लुटा रही है, लेकिन लाखों अनुबंधकर्मी (पारा शिक्षक, ग्रामीण डाक कर्मी, पारा स्वास्थ्यकर्मी, मनरेगाकर्मी, आँगनबाड़ी सेविका, सहिया, जलसहिया, बिजलीकर्मी, रसोइया एवं अन्य अनुबन्धकर्मी) भूख-फटेहाली झेल रहे लोगों की तरफ देखती तक नहीं. झारखण्ड के अंदर बहुत ही कम आमदनी पर काम करने वाले अनुबंधकर्मियों की संख्या लाखो में हैं जिन्हें यह मामूली आमदनी भी नियमित रूप से नहीं दिया जाता. अनुबंधकर्मियों की तंगहाली और बीमार होने की स्थिति में ईलाज न हो पाने के कारण दर्दनाक मौत मिलती है. सभी अनुबंधकर्मियों का अविलंब नियमितीकरण/सरकारीकरण होना चाहिए, उन्हें सम्माजनक वेतन की गारंटी होनी चाहिए. इन अनुबंधों में आरक्षण के प्रावधानों का पालन नहीं हुआ है. यहां भी आरक्षण के प्रावधानों का कढ़ाई से पालन हो.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वही हाल है. छोटे से छोटे बीमारी में ग्रामीण जन बेमौत मरते है. सरकारी अस्पतालों की हालात खस्ती है. कई जगह 2008 के आसपास प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र बनकर खड़ा हो गया है. लेकिन उनमें से 99 % प्रतिशत स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों के अभाव में बंद पड़े हैं. और गरीब जनता प्राइवेट हॉस्पिटलों में पैसा लुटाने को मजबूर है.
एनएच-33 का चौड़ीकरण का कार्य 2011 में शुरू हुआ था, लेकिन सड़क का हाल पहले से भी ज्यादा बदतर हो गया है। इसी बीच कई सरकार बदली, बाद में भाजपा की डबल इंजन वाली सरकार भी आई और सड़क बनाने वाले ठेकेदार भी कई बार बदले गए लेकिन रोड का हालत नहीं बदला.
इन्हीं सब मुद्दों की तरफ सरकार का ध्यान खींचने के लिए इस पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है.