अब तक 15 दोषियों को गिरफ्तार किया है. अन्य भी पकड़े जायेंगे. लेकिन सबों को मिल कर- जिसमें समाजशास्त्री, मनोचिकित्सक, राजनीतिक कार्यकर्ता, सामाजिक संगठनों के नेता, सभी की भूमिका होगी- इस गुत्थी को सुलझाना ही होगा कि आखिरकार आदिवासी समाज इस बर्बर हिंसा की तरफ क्यों कर जा रहा है?

यह सही है कि पश्चिमी सिंहभूम के बुरुगुलीकेरा जन संहार नई सरकार के अस्तित्व में आने के चंद दिनों बाद हुआ, लेकिन यह घटना झारखंड में विगत एक दशक से लगातार चल रहे भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारों की विफलता का नतीजा है. व्यवस्था के खिलाफ भयानक आक्रोश और अविश्वास का नतीजा है यह जघन्य जन संहार. आदिवासी समाज समाज विरोधी कार्य करने वालों का बिटलाहा करता है, गांव निकाला भी और कभी-कभी सेंदरा भी, लेकिन जिस तरह अपनी ही बिरादरी के सात लोगों की गत 19 जनवरी को हत्या करने का मामला सामने आया है, वह इस बात का द्योतक है कि आदिवासी समाज में सत्ता का किसी भी रूप में समर्थन करने वालों के प्रति किस कदर घृणा भर चुकी है.

पूरी मीडिया ने और सरकारी तंत्र ने इस खबर को पत्थरगड़ी समर्थक और पत्थरगड़ी विरोधी के संघर्ष के रूप में इस रेखांकित किया है. उनका यह भी कहना है कि चूंकि नये मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्थरगड़ी आंदोलनकारियों पर से केश वापस लेने का निर्णय अपनी पहली कैबिनेट बैठक में लिया, इसलिए पत्थरगड़ी समर्थकों का मन बढ़ गया जिसकी परिणती इस रूप में हुई. यानि, मीडिया और पूर्ववर्ती सरकार द्वारा गढ़े तंत्र को पत्थरगड़ी समर्थक इतने मासूम, भोले या वेवकूफ लग रहे हैं, जिन्हें इस बात का एहसास ही नहीं था कि हत्या की सजा मौत या उम्र कैद हो सकती है. बल्कि उन्हें लग रहा था कि सात आदिमियों की हत्या कर देने के बाद नई सरकार उन्हें फूल माला पहनायेगी और उनकी सराहना करेगी. ऐसा भी नहीं हुआ कि हत्याकांड को अंजाम देने वाले कही पलायन कर गये. मुख्य अभियुक्त ने प्रशासन को ऐलानिया कहा कि नौकरशाह आदिवासी समाज के सेवक हैं. लेकिन वे ग्रामीणों को सुरक्षा देने में असफल रहे और इसलिए ग्राम सभा ने सामूहिक फैसला लेकर उन लोगों को मार गिराया, जो उनके उन पर हमला कर रहे थे.

इस कांड को किसी भी तरह से जस्टीफाई नहीं किया जा सकता. जिन्होंने इस घृणित कांड को अंजाम दिया, उन्हें सजा तो मिलेगी ही. नई सरकार ने अब तक 15 दोषियों को गिरफ्तार किया है. अन्य भी पकड़े जायेंगे. लेकिन सबों को मिल कर- जिसमें समाजशास्त्री, मनोचिकित्सक, राजनीतिक कार्यकर्ता, सामाजिक संगठनों के नेता, सभी की भूमिका होगी- इस गुत्थी को सुलझाना ही होगा कि आखिरकार आदिवासी समाज इस बर्बर हिंसा की तरफ क्यों कर जा रहा है?

दरअसल, यदि सत्ता विधि सम्मत शासन देने में विफल होगी, या उसकी कार्रवाईयां न्याय संगत नही प्रतीत होंगी बहुसंख्यक आबादी को तो इस तरह की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता. पूरा पश्चिमी सिंहभूम नक्सली हिंसा से आक्रांत है. माओवादी सिद्धांतकार तो मर खप गये, अब हथियारों के बल पर जंगल में राज करने वाले और लेवी-चंदा वसूलने वाले अनेकानेक गिरोह पैदा हो गये हैं. इस बात के भी आरोप लगते रहे हैं कि इनमें से कई गुट-गिरोह तंत्र या कारापोरेट जगत के गुर्गो के नेतृत्व में ही काम करते हैं. गांव के सीधे सादे लोग, मेहनत मशक्कत कर जीवन यापन करने वाले लोग उनसे भयाक्रांत रहते हैं.

इस तरह के गिरोहों की कार्यशैली यह है कि जब भी गांव में किसी तरह का विवाद पैदा होता है, वे किसी एक पक्ष के साथ हो जाते हैं और ‘क्रांति’ के लिए जुटाये हथियारों का इस्तेमाल विरोधी पक्ष को टेरोराइज्ड करने में करते हैं. इस घटना में भी संलग्न दो पक्षों में से एक को उनका समर्थन था जिसके बल पर 19 जनवरी की घटना के दो तीन दिन पहले एक पक्ष ने दूसरे पक्ष के नेताओं के को चिन्हित कर उनके घरों में तोड़फोड़ और पथराव किया. जिसका प्रतिकार 19 की घटना के रूप में हुआ. जाहिर सी बात है कि यह एक दो दिन के बैर भाव का परिणाम नहीं, लगातार होने वाली घटनाओं का परिणाम था. मारे जाने वाले लोग गांव में अल्पमत में थे, इसलिए वे अपनी जान नहीं बचा सके.

ये दो पक्ष कौन थे जिसमें टकराव हुआ?

यह सही है कि आदिवासियों की जीवन शैली और परंपरा से जुड़ी पत्थरगड़ी का एक विशेष रूप में उपयोग करने वाले मुट्ठी भर लोगों ने जिस तरह खूंटी क्षेत्र में बड़े-पत्थर लगा कर पेसा कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों को उस पर लिखा और कहीं-कहीं उनकी गलत व्याख्या भी की, उस तरह की पत्थरगड़ी सोनुआ क्षेत्र में नहीं हुई और न बुरुगुलीकेरा गांव में ही दिखाई देती है. लेकिन इत्तफाक से वह गांव भी मुंडा गांव है और वहां सासिंदरी और सामान्य सूचनाओं को उकेरे पत्थर यहां वहां गड़े दिखायी दिये.

लेकिन उससे भी बड़ी बात यह कि सरकारी विकास योजनाओं को लेकर उनमें भी भीषण आक्रोश है. क्योंकि सरकार यदि विकास योजनाओं के नाम पर कुछ ठोस न करें और विकास का झुनझुना सरीखा आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आयुष्मान कार्ड, बैंक कार्ड आदि आदि थमाती रहे तो उनका गुस्सा सत्ता के प्रति स्वाभाविक है. यह पूरा क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्रियों के करीब का क्षेत्र रहा है. मधु कोड़ा, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास सभी इस क्षेत्र के आस पास के इलाकों में ही राजनीति कर मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे. लेकिन उस इलाके को देख आईये. न पूरे इलाके में पानी की व्यवस्था है, न सरकारी अस्पतालों में डाक्टर और दवाईयां हैं, न सरकारी स्कूल ठीक से चलते हैं.

दूसरी तरफ बगैर ग्राम सभाओं की अनुमति के कई तरह के खनन उद्योग चल रहे हैं. बीड़ी पत्तों का एक बड़ा क्षेत्र है वह पूरा इलाका, लेकिन उस पर कब्जा है ‘क्रांतिकारी’ गिरोहों का. अक्लपनीय दरों पर आदिवासी बीड़ी पत्ता तोड़ते हैं. खनन उद्योग, जिसमें बहुतेरे अवैध ही हैं, के विस्फोटों से पूरा इलाका थर्रा जाता है. विस्फोट में टूटी और वेग से हवा में उड़ी चट्टाने-पत्थर खेतों में गिरते हैं और धंस कर खेतों को बर्बाद कर रहे हैं.

तथाकथित क्रांतिकारी संगठन के लोग तो ग्रामीणों का शाषण-उत्पीड़न करते ही है, उनकी सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षा बल भी आदिवासी गांवों के लिए मुसीबत बन जाते हैं. पूरा इलाका आज भी इतना बीहड़ कि पीड़ित परिवारों की आवाज उन जंगलों में घुट कर रह जाती है. उत्पीड़न किस तरह के हो सकते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं समझता.

आदिवासी जंगल से अपनी जरूरत की लकड़ी तोड़ने भी जंगलों में घुसे तो वह कानून का अपराधी बन जाता है, लेकिन सरकार अपने एक फैसले से हजारों एकड़ में फैले जंगल को जलमग्न कर दे सकती है. सानुआ जाने के रास्ते हमने ऐसे ही एक बड़े बांध को देखा जिसमें सैकड़ों पेड़ों के ठूठ अब भी दिखाई दे रहे हैं. उबर खाबर इलाके में उस पानी का इस्तेमाल खेतों को सींचने के लिए शायद ही हो, हां उसका इस्तेमाल देर-सबेर शहरी इलाकों को या आदिवासी इलाके में समृद्धि के द्वीप बनाने की किसी योजना और उसकी आवासीय कालनियों के लिए हो सकती है.

अब आप उसे पत्थरगड़ी समर्थक कहिये, विकास विरोधी कहिये, वे अपने रस्ते पर चलेंगे. उन्हें आपका यह विकास नहीं चाहिए. विकास तो वही होगा, जब उनकी भागिदारी और उर्जा से होगा. और तो जो कुछ भी हो रहा है, वह कारपोरेट की लूट है. और एक अंडर करेंट पूरे आदिवासी इलाके में है जिसने भाजपाईयों की सत्ता उखाड़ फेंकी. देखना है कि नई सरकार भी पूर्व की सरकारों की तरह विकास के चालू मुहावरों का इस्तेमाल करती है या जनता की सच्ची भागिदारी से विकास का कोई नया माॅडल खड़ा करती है.