गणतंत्र दिवस को ‘छुट्टी के दिन’ के रूप में बरतने वाली नयी पीढी के कई किशोर और युवा 26 जनवरी के मकसद और मतलब से जुड़े सवाल को ‘अनावश्यक’ मानते हैं। वे अक्सर यह सवाल करते हैं कि जो इतिहास अनुपयोगी’ हो, उसको क्यों ‘पढ़ना’ और उसमें क्यों पड़ना?
“हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं?”
“क्योंकि 1950 में इसी दिन हमारा संविधान लागू किया गया था। यह हमारे देश में स्कूल में पढाई करने वाला बच्चा-बच्चा जानता है। हमारी पाठ्य-पुस्तकों में भी यह दर्ज है।”
“हां, लेकिन आजाद देश के लिए संविधान बनाने का फैसला 15 अगस्त, 1947 के पहले किया गया। संविधान-सभा (परिषद) को संविधान तैयार करने में करीब तीन साल लगे। 26 नवंबर, 1949 को आजाद देश की संसद ने भारत के संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करने की घोषणा की। यह घोषणा भी हुई कि संविधान को 26 जनवरी, 1950 से लागू किया जाएगा। तो यह सवाल वाजिब है कि संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख ही क्यों निश्चित की गयी? क्या इसका जवाब पाठ्य-पुस्तकों में दर्ज है?”
“शायद हो, या शायद न हो। स्कूलों में चलनेवाली इतिहास या समाज-शास्त्र की पुस्तकों को देख-पढ़ कर ही ठीक-ठीक बताया जा सकता है।”
“पूरे देश में क्या, एक ही प्रदेश के तमाम सरकारी-गैरसरकारी स्कूलों में इतिहास या समाज-ज्ञान विषय के लिए एक पाठ्य पुस्तक चलती है? शायद नहीं। और, यह तो कतई जरूरी नहीं कि सबमें में 26 जनवरी के इतिहास से संबंधित पाठ अनिवार्यतः दर्ज हो। आपके कहने का मतलब यही है न?”
“हां।” “तो इसका मायने यह है कि 26 जनवरी से संबंधित जानकारी अधूरी है!”
“हां, पाठ्यपुस्तकों में इस बाबत कोई मुकम्मल जानकारी दर्ज नहीं है। इसलिए संभवतः शिक्षक भी स्कूल में इस सिलसिले में बच्चों को कुछ नहीं बताते।”
“यानी बच्चों को यह भी मालूम नहीं कि 26 जनवरी से संबंधित जानकारी ‘अधूरी’ है। शिक्षक नहीं पढ़ाते, इसीलिए उनमें यह सवाल ही नहीं उठता कि 26 जनवरी की तारीख का कोई ‘इतिहास’ है अथवा नहीं? शायद इसलिए आज की युवा पीढ़ी में यह जिज्ञासा भी नहीं है कि गणतंत्र दिवस के लिए 26 जनवरी का दिन निर्धारित करने का मकसद और मतलब क्या था? उलटे, गणतंत्र दिवस को ‘छुट्टी के दिन’ के रूप में बरतने वाली नयी पीढी के कई किशोर और युवा 26 जनवरी के मकसद और मतलब से जुड़े सवाल को ‘अनावश्यक’ मानते हैं। वे अक्सर यह सवाल करते हैं कि जो इतिहास अनुपयोगी’ हो, उसको क्यों ‘पढ़ना’ और उसमें क्यों पड़ना?”
तारीख की तवारीख
दिसंबर 1929 के अंतिम सप्ताह लाहौर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। उसमें ‘पूर्ण स्वराज’ यानी पूर्ण स्वाधीनता (कम्प्लीट इंडिपेंडेंस) का प्रस्ताव पारित हुआ। 31 दिसंबर, 1929 की आधी रात के बाद इसकी घोषणा की गयी। इसके साथ नए साल (1930) में 26 जनवरी को पूर्ण स्वाधीनता दिवस (इंडिपेंडेंस डे) के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। 2 जनवरी, 1930 को 26 जनवरी के लिए ‘प्रतिज्ञा-पत्र’ तैयार किया गया।
26 जनवरी, 1930 दिन आया और उस दिन देश भर में जोश की एक लहर उठी। देश भर में लाखों लोगों ने प्रतिज्ञा-पत्र भरा। देश के कई-कई जगहों पर लोगों ने भारी तदाद में जमा होकर,बिना किसी प्रकार की भाषणबाजी और उपदेशों के,शांतिपूर्वक और गंभीरता से ‘स्वाधीनता’ की प्रतिज्ञा ली। धरना-प्रदर्शन के बजाय देश के हजारों गाँव और शहरों में आम जनता ने सामूहिक स्तर पर रचनात्मक कार्यक्रमों में सहयोग दिया। रचनात्मक कार्यों से पूर्ण स्वराज के संघर्ष में जनता की सहभागिता का विराट प्रदर्शन हुआ। तब से गुलाम भारत में ब्रिटिश-राज के खिलाफ 18 साल तक हर 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाने का सिलसिला चला। देश आजाद हुआ 15 अगस्त 1947 को। यानी ‘15 अगस्त’ भारत का आधिकारिक स्वतंत्रता दिवस बना। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान परिषद् की अंतिम बैठक में सर्वसम्मति से स्वीकृत संविधान को 26 जनवरी 1950 से लागू करने का फैसला किया गया, ताकि 26 जनवरी 1930 से जारी स्वाधीनता दिवस की प्रेरणा और ऐतिहासिक महत्व अक्षुण्ण रहे।