'’हम जिस पार्टी की नींव डाल रहे हैं, वह अन्य पार्टियों से भिन्न एक क्रांतिकारी पार्टी है. इसमें आने जाने वालों की कभी कमी नहीं रहेगी, परंतु इसकी धार रूकेगी नहीं. इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेंगे. दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेंगे और तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे. जीत अंत में हमारी होगी..’’

झारखंड मुक्ति मोर्चा अपना स्थापना दिवस लगातार मनाता आ रहा है और हर वर्ष फरवरी माह में अलग अलग तारीखों पर धनबाद, दुमका और अन्य जिलों में स्थापना दिवस मनाया जाता है. भीड़ भी जुटती है और एक बार शोषण मुक्त झारखंड बनाने की घोषणायें भी होती है. इस बार स्थापना दिवस की पहली सभा दुमका में रविवार को हुई, हालांकि झामुमो के अस्तित्व में आने के बाद की पहली सभा सन् 73 में गोल्फ मैदान, धनबाद में हुई थी. और इस लिहाज से देखा जाये तो हेमंत सोरेन का जन्म उस वक्त तक नहीं हुआ था. हमेंत सोरेन का जन्म मेरी जानकारी में सन् 75 में हुआ, उस वक्त शिबू सोरेन जेल में बंद थे. देश में एमरजंसी लगी थी.

लेकिन अभी बात करें उस ऐतिहासिक रैली और सभा की बात ही, जिसकी बात ही कुछ और थी. जिसमें झामुमो का जन्म होना था. टुंडी में हुई घटनाओं की वजह से शिबू सोरेन की गिरफ्तारी का खतरा था, उसके बावजूद वे उस जनसभा में हमेशा की तरह मौजूद थे. उसके अलावा मौजूद थे स्व. विनोद बिहारी महतो, शहीद शक्तिनाथ महतो, स्व. निर्मल महतो, टेकलाल महतो, कामरेड एके राय सहित अनेक जुझाड़ू लोग जो अलग राज्य के लिये नहीं, बल्कि शोषण मुक्त झारखंड राज्य के आंदोलन के लिये एक संगठन का ऐलान कर रहे थे. अब जो स्थापना दिवस मनाये जाते हैं, उनमें स्व. विनोद बिहारी महतो नहीं होते. कामरेड एके राय नहीं रहे. शैलेंद्र महतो झामुमो से नाता तोड़ चुके हैं.

उस दिन सुबह से ही गोल्फ मैदान, धनबाद में लोग जमा होने लगे थे. हरे झंडे और नगाड़े की घनघोर आवाज के साथ चलते लोग. लाल झंडो के साथ मजदूर कोलियरियों से से निकले लोग. गोल्फ मैदान को जाने वाली हर सड़क पर यही नजारा था और दिन चढने के साथ अपार भीड़ मैदान में जमा हो जाती है, उस ऐतिहासिक दिन का गवाह बनने के लिये. मंच पर तमाम प्रमुख नेता मौजूद थे. सबसे पहले मंच से शिबू सोरेन के आदिवासी सुधार समिति और बिनोद बिहारी महतो के शिवाजी समाज के विलय की सूचना दी गयी और इस घोषणा के साथ डुगडुगी बज उठी. फिर यह सूचना दी गयी कि नये संगठन का नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा होगा, जिसके अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो और महासचिव शिबू सोरेन होंगे. उसके बाद विनोद बाबू को मंच संचालन का जिम्मा सौंप दिया गया.

सबसे पहले विनोद बाबू ही माईक पर बोलने आते हैं. उनकी जोरदार आवाज हवा में गूंजने लगती हैः ‘‘आज का दिन ऐतिहासिक दिन है. झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा देने के लिये हम एक संगठन की नींव रख रहे हैं. इस संगठन का उद्देश्य शोषण मुक्त अलग झारखंड राज्य का निर्माण है. लेकिन साथ ही हमे गांव से महाजनी शोषण को मिटाना है. कोयलांचल से माफियागिरी को खत्म करना है…’’

फिर वे शिबू सोरेन को बोलने के लिये आमंत्रित करते हैं. शिबू उस दिन बोलते हुये भावुक हो गये थे. उनकी बोली से भदेसपन अभी तक खत्म नहीं हुआ था. वे कभी खड़ी बोली में बोलते, कभी संथाली में और कभी सादरी में. जो कुछ उन्होंने कहा था उस दिन उसका लब्बोलुआब यह थाः ‘‘मुझे झारखंड मुक्ति का महासचिव बनाया गया है. पता नहीं मैं इस योग्य हूं भी या नहीं, लेकिन मैं अपने मृत पिता की सौगधं खाकर कहता हूं कि शोषण मुक्त झारखंड के लिये अनवरत संघर्ष करता रहूंगा. हम लोग दुनियां के सताये लोग हैं. अपने अस्तित्व के लिये हमें लगातार संघर्ष करते रहना पड़ा है. हमे बार बार अपने घरों से, जंगल और जमीन से उजाड़ा जाता है. हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है. हमारी बहू-बेटियों के इज्जत से खिलवाड़ किया जाता है. दिकुओं के शोषण उत्पीड़न से परेशान हो कर हमारे लोगों को अपना घर बार छोड़ कर परदेश में मजूरी करने जाना पड़ता है. हरियाणा-पंजाब के इंट भट्ठों में, असम के चाय बगानों में, पश्चिम बंगाल के खलिहानों में मांझी, संथाल औरतें मर्द मजदूरी करने जाते हैं और वहां भी उनसे बंधुआ मजदूरों जैसे व्यवहार किया जाता है. यह बात नहीं कि हमारे घर गांव में जीवन-यापन के साधन नहीं, लेकिन उन पर बाहर वालों का कब्जा है. झारखंड की धरती का, यहां के खदानों का दोहन कर, उनका लूट खसोट कर नये-नये शहर बन रहे हैं, जगमग आवासीय कालोनियां बन रही है और हमनी सब गरीबी और भूखमरी के अंधकार में धंसे हुये है. लेकिन अब यह सब नहीं चलेगा.. हम इस अंधेरगर्दी के खिलाफ संघर्ष करेंगे..’’

शिबू सोरेन बोलते बोलते अचानक रूके और अपनी जगह पर जा कर बैठ गये. उनके भाषण के दौरान मैदान में सन्नाटा था.

उसके बाद आये बोलने शक्तिनाथ महतो. उनका व्यक्तित्व कद्दावर और आवाज गूंजती हुई थी. उन्होंने कहाः ‘‘आज हम वर्षों की लड़ाई की बुनियाद डाल रहे हैं. यह लड़ाई लंबी होगी और कठिन भी. हम जिस पार्टी की नींव डाल रहे हैं, वह अन्य पार्टियों से भिन्न एक क्रांतिकारी पार्टी है. इसमें आने जाने वालों की कभी कमी नहीं रहेगी, परंतु इसकी धार रूकेगी नहीं. इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेंगे. दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेंगे और तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे. जीत अंत में हमारी होगी..’’

सभा के अंत में बोलने आये थे कामरेड एके राय. उनके माईक पकड़ते ही कामरेड एके राय को लाल सलाम.. मजदूर एकता जिंदाबाद के नारों से आकाश गूंज उठाः ‘‘साथी, देश एक मुक्ति संग्राम चाहता है. संयुक्त फ्रंट नहीं मुक्ति फ्रंट. एक विकल्प की राजनीति, सिर्फ विरोध की राजनीति नहीं. एक नया माडल चाहिये. यह माॅडल बंगाल और केरल को बनाना मुश्किल है, लेकिन झारखंड में बन सकता है. यहां का समाज समतामुखी और बाहर से जो यहां आये मजदूर भी समाजमुखी. शोषणहीन समाज का माडल यहां छोड़ और कहां बन सकता है?… साथियों आज इस नये संगठन की नींव रखते हुये मैं कुछ बातों की तरफ आपका ध्यान खींचना चाहता हूं. आज तक जितनी भी झारखंडी पार्टियां बनी, वे आदिवासी बहुल रांची या सिंहभूम में. लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म धनबाद में हो रहा है जो एक औद्योगिक क्षेत्र है. यहां आदिवासियों की संख्या सिर्फ दस फीसदी है. झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन आदिवासी और गैर आदिवासी को मिला कर हुआ है. इस संगठन की दूसरी बड़ी विशेषता है कि यह एक माक्र्सवादी आंदोलन की संतान के रूप में सामने आया है. इतिहास में पहली बार लाल झंडा हरे झंडे को नये रूप में पैदा करने जा रहा है. इस आंदोलन की नींव रखने वालों में प्रमुख हैं विनोद बाबू जो इस इलाके में कम्युनिस्ट आंदोलन के भी जनक हैं… इस पार्टी के महामंत्री हैं शिबू सोरेन जो दूसरे आदिवासी नेताओं की तरह सत्तामुखी नहीं, हमेशा जनमुखी रहे हैं. जुल्म और शोषण को इन्होंने बचपन से देखा है. इनके पिताजी को महाजनों ने मार दिया था, इसलिये अन्याय के खिलाफ बगावत और क्रांति सिर्फ इनकी राजनीति नहीं, उनके जीवन का अंग है.’’

यह सही है कि कामरेड एके राय और बिनोद बिहारी महतो के साथ झामुमो के रिश्ते उनके जीवित रहते हमेशा एक समान नहीं रहे, लेकिन झामुमो के गठन में कामरेड राय, विनोद बिहारी महतो के अवदानों को भूला नहीं जा सकता. साथ ही हमें यह भी आद रखना चाहिए कि झामुमो का भविष्य आज भी आदिवासी, सदान और मजदूर वर्ग के साथ एकजुटता में है.