अगर यह मानकर चला जाए कि सभी गैर आदिवासी हमारे शोषक हैं तो,आदिवासियों को उनसे किसी प्रकार का राजनैतिक, आर्थिक संबंध नहीं रखना चाहिए? तथाकथित गैर आदिवासी पार्टी यानी बीजेपी में किसी आदिवासी को नहीं जाना चाहिए या जा रहे हैं तो उसका भी उतनी ही तीव्रता से विरोध किया जाना चाहिए? आदिवासी पार्टी मानी जाने वाली जेएमएम में भी कितने गैर आदिवासी विधायक से लेकर मुख्य कार्यकर्ता तक हैं.

‘Misogyny’ अर्थात ‘स्त्रीद्वेष’ जिसका अर्थ होता है, स्त्रियों के साथ इसलिए नफरत करना क्योंकि वह एक स्त्री है. और इस नफरत में उसके साथ दस प्रकार के कारण बताकर हिंसा को सही साबित करना. स्त्रियों की कमजोरी और भोलेपन का अपनी सुविधा अनुसार अच्छा या बुरा कहना.

अन्य समाजों की तरह ही संताल समाज में स्त्रियों को मूर्ख समझा जाता है, जिस कारण से उसे परंपरागत पंचायती में शामिल नहीं किया जाता है. यह कहकर कि उसे विचार विमर्श करना नहीं आता है.

लड़कियों को उसी कार्य के लिए प्रताड़ित या अपमानित करना जिस कार्य के लिए लड़कों की वाहवाही की जाती है. हालांकि हमेशा ऐसा नहीं था.अपसंस्कृति के कारण महिलाओं के प्रति उग्रता लगातार बढ़ती जा रही हैं.

उदाहरण के लिए पहले अधिकतर जगहों पर किसी लड़की का गैर आदिवासी के साथ शादी करने पर ‘जोम जती’ करके मामला सलटा दिया जाता था. इसके विपरीत आजकल वैसी लड़की का बहिष्कार तो किया ही जाता है साथ ही शारीरिक हिंसा भी किया जाता है. उपर से सोशल मीडिया ट्रोलिंग की भी परंपरा बढ़ती जा रहे हैं. जहां लड़कियों को हिंसक अपशब्दों से नवाजा जाता है.

इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि गैर आदिवासियों ने हमारा शोषण किया है. इस कारण से हमारी लड़कियों को शासकों से कोई संबंध नहीं रखना चाहिए.

आश्चर्य यह कि जब आदिवासी लड़के खुद किसी गैर आदिवासी लड़की से शादी करते हैं तब उस वक्त वह उसे गैर आदिवासी शोषक नहीं समझता है. उल्टा उस गैर आदिवासी लड़की का धूमधाम से स्वागत करता है.

अगर यह मानकर चला जाए कि सभी गैर आदिवासी हमारे शोषक हैं तो,आदिवासियों को उनसे किसी प्रकार का राजनैतिक, आर्थिक संबंध नहीं रखना चाहिए? तथाकथित गैर आदिवासी पार्टी यानी बीजेपी में किसी आदिवासी को नहीं जाना चाहिए या जा रहे हैं तो उसका भी उतनी ही तीव्रता से विरोध किया जाना चाहिए? आदिवासी पार्टी मानी जाने वाली जेएमएम में भी कितने गैर आदिवासी विधायक से लेकर मुख्य कार्यकर्ता तक हैं.

इससे यही पता चलता है कि संताल महिलाओं के मामले में ही टाइट रूल का पालन किया जाता है, जबकि संताल पुरुष स्वतंत्र रहता है कुछ भी करने के लिए.

अक्सर संतान लड़कियों को मूर्ख बताकर खिल्ली उड़ाई जाती है कि वह अपनी मूर्खता के कारण शोषण का शिकार हो रही है.निष्पक्ष होकर देखा जाए तो आदिवासियों का शोषण हो रहा है. चाहे वह पुरुष हो या स्त्री.

अगर आदिवासी पुरुष इतने ही काबिल होते तो आज आदिवासी हाशिए पर नहीं होता. झारखंड अलग होने के बाद 20 साल होने को है, लेकिन आदिवासी की स्थिति जस की तस है. गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी, नशाखोरी, अंधविश्वास, पलायन और ह्यूमन ट्रैफिकिंग बढ़ती जा रही है.

तो क्या हम इसके लिए आदिवासी पुरुषों की मूर्खता और भोलेपन को जिम्मेदार मानेंगे?

इस तरह की सोच बहुत ही खतरनाक है. यहां शोषित को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जा रहा है. जबकि होना यह चाहिए कि सवाल शोषक से किया जाए. उंगली शोषक पर उठाई जानी चाहिए.

यह स्त्रीद्वेष का ही नतीजा है कि स्त्री के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के लिए उसे ही जिम्मेदार बना दिया जाता है.