हिंदू मुस्लिम एकता को दिखाने वाले विज्ञापन को तनिष्क ने सोसल मीडिया से हटा लिया. गुजरात के तनिष्क दुकान में यह लिखित रूप् से लगा दिया गया िकवे उस विज्ञापन को हटा रहे हैं, क्योंकि इससे कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं. इसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी. बाद में उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह कदम उन्होंने अपने व्यापारिक हितों तथा कर्मचारियों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर उठाया है.
विज्ञापन में यह दिखाया गया है कि एक हिंदू लडत्रकी जो एक मुस्लिम परिवार में बहु बन कर जाती है, उसके गर्भवति होने के बाद उसकी मुस्लिम सास उसकी गोद भाराई का आयोजन हिंदू रीति रिवाज से करती है. जब बहु उनसे पूदती है कि जब यह रस्म उनके यहां नहीं होता है तो उन्होंने उसका आयोजन क्यों किया? सास का जवाब था कि बेटियों की खुशी के लिए मायें कुछ भी कर सकती हैं. इस विज्ञापन में आपत्तिजनक कुछ भी नहीं था. देश की संविधान के अनुसार एक बालिग लड़की अपनी इच्छा से किसी भी जाति धर्म के लड़के से विवाह कर सकती है. इस तरह यह विज्ञापन लड़की के इस अधिकार को बल देता है. दसरी बात मुस्लिम परिवार के द्वारा हिंदू रीति रिवाजों का अपनाना धार्मि सौहार्द को ही दिखाता है जो देश की एकता के लिए अनिवार्य है. इसके अलावा इसमें बेटियों की इच्छाओं का मूल्य बताया गया है. इसमें ऐसा कोई आपत्तिजनक बात नहीं थी कि तनिष्क को इसे हटाने के लिए बाध्य किया जाये.
अतिहिंदूवादी चिंतन वाले लोगों को शायद इससे आपत्ति हो गयी. ये लोग पितृसत्तातमक समाज के पोषक हैं. इनकी नजर में औरत की आजादी का कोई मोल नहीं है. यह ीवह वर्ग है जो औरत को दुर्गा काली आदि के रूप् में पूजा करता है, लेकिन वही औरत अपनी इच्छा का पति चुनती है तो इनका अहंकार इसे स्वीकार नहीं करता. इनके अनुसार औरत पुरुष के ईशारों पर चलने वाली एक यंत्र मात्र है और पुरुष की इच्छापूर्ति के लिए ही बनी है. दूसरी बात इनमें धार्मिक सद्भावना या सहनशीलता रत्ती भर नहीं होती है. वे कभी यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि एक हिंदू लड़की किसी मुसलमान लड़के को पति के रूप् में स्वीकार करे. इसमें उनको मुसलमानों की किसी गहरी साजिश की बू आती है. इसे वे लव जिहाद कहते हैं जिसके अनुसार मुसलमान लड़के प्रेम के नाम पर हिंदू लड़कियों को फंसाते हैं और धर्मांतरण करते हैं. यदि कोई हिंदू लडत्रका किसी मुस्लिम लड़की से शादी करे तो इन्हें आपत्ति नहीं होती है, क्योंकि वह लड़की हिंदू बन कर ही उस परिवार में आती है. इसी चिंतन वाले लोग सोसल मीडिया में तनिष्क के वहिष्कार की बात करते हैं. तनिष्क एक भारतीय कंपनी है. इसे भारत में धार्मिक सौहार्द की बात कहने का पूरा हक है. लेकिन जब व्यापारिक हितों की बात आती है तो उनका घबरा जाना और विज्ञापन को हटा लेना सहज ही है. कोई भी व्यापारिक संस्था यह नहीं चाहती है कि उसके दुकान पर आक्रमण हो. लूटपाट मचे और कर्मचारी मारे जाये. और इस तरह की घटनाएं आम बात हो गयी हैं.
इस घटना से शासन तंत्र का पाखंउ और झूट का भी पता चलता है. सोसल मीडिया पर इस तरह की अनर्गल बातें लिखने वालों तक पुलिस पहुंच ही नहीं पाती है. ऐसा लगता है कि इन लोगों को शासन तंत्र का संरक्षण है और वे पोषित भी है. अन्यथा उन तक पहुंचना और उनको दंडित करना पुलिस के लिए कोई कठिन काम नहीं है. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे खोखले नारे लेकर चुनाव लड़ा जाता है और मंदिर में देवी के रूप में औरत को पूजा जाता है, लेकिन व्यवहार में उनकी शक्तियों को बर्दाश्त नहीं कर सकती है.
डूबते अर्थतंत्र को बचाना है तो देश में उद्योग व्यापार को खुला और सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहिए. जब तक सरकार इस तरह के ढकोसलों से उनको नहीं बचायेगी तो आर्थिक उन्नति असंभव है.