शहर का सबसे शानदार होटल, जिसका इस्तेमाल विद्वतापूर्ण संभाषणों से लबरेज सम्मेलनों के लिए, सरकारी समारोहों के लिए, शानो शौकत वाले विवाह शादियों आदि के लिए होता है, उसके बनने के पीछे की कहानी बहुत कम ही लोग जानते होंगे. कांके रोड के चांदनी चैक पर अवस्थित इस तीन सितारा होटल के निर्माण के पीछे की कहानी आदिवासी जमीन की लूट की एक त्रासद कथा को अपने आप में छुपाये हुए है. मेरे लिए भी उस कहानी को जानना महज इत्तफाक ही है. हाल में उस कहानी के कुछ किरदार मेरे रूबरू आ कर खड़े हो गये. वैसे, मैं उस होटल को चार दशक पहले से देखता रहा हूं. आज उसका रंग रूप बहुत बदल चुका है, लेकिन मेरे लिए तो उसका वह पुराना रूप ही स्मृतियों में बसा है.

अपनी युवावस्था में मैंने जब रांची का रुख किया तो पतरातु से आते वक्त बस की खिड़की से मुझे वह दिखता था. रांची में उन दिनों बनने वाले स्टाईल के दो काटेज. उसके सामने के लाॅन और चारो तरफ की हरीतिमा. उन्हें देखते ही मुझे समझ में आ जाता कि अब मैं रांची शहर में प्रवेश कर रहा हूं. बाद में मैंने जाना कि वह होली डे होम है. पिछले कुछ वर्षों में उसके दो खबूसूरत काटेज एक विशाल भवन में दब से गये हैं.

अब करीबन चालीस वर्ष बाद आदिवासी जमीन की लूट की वह त्रासद कथा इत्तफाक से मेरे सामने आ गयी है. उस लूट के शिकार आदिवासियों के कुछ परिजन सामने आ गये हैं. उनसे जो जानकारी प्राप्त हुई है, वह मुकम्मल ही हो, यह जरूरी नहीं. लेकिन मूल कथा लगभग वैसी ही है, जैसा मैं बताने जा रहा हूं. कहानी के किरदारों के नाम में हो सकता है, फर्क हो, क्योंकि चार पांच दशक पुरानी कथा है. उस जमाने की जब कांके रोड वीरान हुआ करता था, वहां की आबादी आज जैसी घनी नहीं थी. सीएमपीडीआई था, गांधी नगर की कालोनी थी, जहाज कोठी थी, नया नया बना कांके डैम और चारों तरफ जंगल झाड़ और उनके बीच मुंडा और उरांव आदिवासियों के गांव.

जिस जगह पर वह होटल बना है, वह टाड़ जमीन थी. उरांवों की जमीन. उस पर होली डे होम के दो काटेज कैसे बन गये, यह कोई नहीं जानता, लेकिन जमीन के मालिकाना हक को चुरचु उरांव और गोदड़ा उरांव के वंशजों ने चुनौती दी. पूना उरांव ने कोर्ट में केश किया. और जानकारों के मुताबिक सन् नब्बे में डिग्री भी हो गयी. लेकिन कहानी वही पुरानी. कोर्ट ने यह माना कि यह जमीन आदिवासियों की है. लेकिन अब क्या हो सकता था? जमीन का मुआवजा देने का आदेश कोर्ट ने दिया. जमीन के मालिकों का कहना था कि उन्हें पैसा नहीं, जमीन के बदले जमीन चाहिए. अब घटनाक्रम क्या रहा, नहीं जानता. जमीन लूटने वालों ने पांच लाख रुपये बैंक में बुधु उरांव के नाम से जमा कर दिये. वह रुपया अब तक उठाया नहीं गया है. मय सूद वह एक बड़ी राशि होगी.

और उस जमीन पर बना होटल अब करोड़ों की परिसंपत्ति में बदल चुका है और भारी कारोबार कर रहा है. बस चुरचुं उरांव और गोदड़ा उरांव की कहानी दफ्न हो चुकी है नये शहर में. कांके रोड में बन रही अनेकानेक बहुमंजिली इमारतों की नींव में ऐसी ही कहानी दफ्न हो तो कोई आश्चर्य नहीं. लेकिन मानव सभ्यता का विकास ऐसे ही होता है. बड़ी आबादी के श्रम और संपत्ति की लूट से.