देश में सवर्ण एसटी, एससी, ओबीसी वर्गों के आरक्षण खत्म करने के लिए वर्षो से आंदोलन चला रहे हैं। आरक्षण को लेकर हमारे देश में बहुत बड़ी भ्रांतियां फैली हुई है या बड़े प्लानिंग के साथ भ्रांतियां फैलाई गई है। हम भूल जाते हैं कि आरक्षण शब्द हमारे संविधान में है। संविधान में भारत को एक समतामूलक समाज बनाने की बात की गई थी, चाहे जनता के अंदर वैचारिक धार्मिक और नस्ली भिन्नता क्यो ना हो। देश के आजादी के पूर्व क्या सभी भारतवासी शिक्षित थे? क्या वे लोग सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक रूप से बहुत मजबूत थे? जी नहीं, देश में कुछ तबके निरक्षर, गरीब और सामाजिक स्तर से उस स्तर पर नही थे जिसकी प्रशंसा की जाती। समाज में जात- पात, ऊंच नीच की गहरी खाई थी, फिर क्या यह देश समतामूलक देश बन पाता ?
जब लंबे संघर्ष के बाद देश को आजादी मिली तो यह आजादी कोई सामाजिक आजादी नही थी बल्कि एक राजनीतिक आजादी थी। आजादी के बाद भी इस देश में कई तरह की बाहरी और आंतरिक समस्या विद्यमान थी । जो लोग आर्थिक रूप से समर्थ थे उन्होंने अपनी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक पोजीशन का खूब लाभ उठाया लेकिन कुछ लोग गरीबी रेखा से भी नीचे स्तर का जीवन जी रहे थे। उन्हें ना तो सामाजिक सम्मान प्राप्त था और ना ही उनकी आर्थिक हैसियत ही थी । ऐसे में क्या यह देश एक समतामूलक देश बन पाता ? इस सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक असमानता को खत्म करने के लिए आरक्षण को लाया गया । ये एक बूस्टअप की तरह था।
आरक्षण वर्षो से चले आ रहे जातीय व नस्ली भेदभाव को खत्म करने का एक जबरदस्त टूल्स है जिससे उन लोगो को दिक्कत होती है जिनके बाप दादाओं ने अपने जातीय हैसियत के कारण उन लोगों के साथ, जो नीच छोटे समझे जाते थे, अच्छा व्यवहार नही किया किया, बल्कि उन्हें अपमानित दोयम दर्जे का समझकर खूब शोषण करते रहे। आरक्षण ने उनीे सामाजिक और आर्थिक बराबरी के लिए महत्वपूर्ण काम किया, उन्हें प्रोत्सहित करने में अह्म भूमिका निभाई।
आरक्षण रॉकेट के उस नाभिकीय ऊर्जा की तरह थी जिन्होंने जातीय असमानता के बोझ से दबे जातपात के गुरुत्वाकर्षण से हजारों वर्षों से जकड़े हुए लोगो को समानता का अहसास कराया, उन्हें खुले आकाश में आने का अवसर दिया। शिक्षा, आजीविका, सामाजिक जीवन में सम्मान, उच्य संस्थानों में पद, संसदीय व्यवस्था में आने का मौका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में भी ऐसे सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को समान अवसर प्राप्त हुए और भारत के संविधान की मूल समतामूलक सिद्धान्त को गति मिली।
हरेक मनुष्य को जीवन के सभी संसाधनों का उपयोग करने का अधिकार है। अगर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को उन संसाधनों को उपभोग करने से रोकता है या उन्हें वंचित करने का प्रयास करता है तो यह उनके प्राकृतिक अधिकारों से रोकने का घोर अमानवीय कार्य होगा । हमे अपने देश के संविधान का सम्मान करने की जरूरत है क्योंकि हमारा संविधान भारत के सभी संसाधनों पर एकाधिकार करने की इजाजत व्यक्ति या जाति विशेष को नहीं, बल्कि इस देश के सभी नागरिकों को प्रदान करता है।
तो, आरक्षण को लेकर जिन लोगों ने भ्रांतियां फैलाई है, उन्हें सबसे पहले अपने देश के संविधान को पढ़ने की जरूरत है। जो लोग ऐसे भ्रान्तियों का समर्थन करते हैं और उनकी यह सोच है की आरक्षण देश के नागरिकों के योग्यता के लिए अवरोधक है तो उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी। स्पर्धा तो तब मुक्कमल मानी जायेगी जब प्रतिस्पर्धा में सभी बराबर हो। सिंगल पवार के मोटर से डबल पवार मोटर की स्पर्धा क्या न्यायोचित है ? जिस समाज को हजारों वर्षों से सामाजिक समानता से वंचित रखा गया था क्या उन्हें बराबरी का हक देना भीख है क्या ? फिर आरक्षण भीख कैसे हुआ ? आज भी इस देश को असमानतापूर्ण विचारधाराओं से आजादी नही मिली है । अतः जिस दिन इस देश सामाजिक आजादी प्राप्त होगी, उस दिन आरक्षण की कोई जरूरत नही होगी।