विगत 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में भयंकर दुर्घटना हुई, जिसमें 150 से अधिक लोगों के जान जाने की आशंका है। प्राप्त जानकारियों के अनुसार हजारों फीट ऊंचे नंदा देवी पर्वत से करीब आधा किलोमीटर लंबा पहाड़ का टुकड़ा और बर्फ नीचे ऋषि गंगा मे गिर पड़ा। इससे उत्पन्न भयंकर बाढ ने व्यापक तबाही मचाई और दो बांधों ऋषिगंगा और तपोवन बांधों को नष्ट कर दिया है। कई पुल टूट गए हैं, जो सेना के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। करीब 4000 करोड़ का नुकसान बताया जा रहा है। अभी और बाढ आने का खतरा बना हुआ है।
2013 की गर्मियों में केदारनाथ में भी महाविनाश हुआ था जिसमें करीब 10000 लोग मारे गए थे। लेकिन जाड़े मे बर्फ का पिघलकर गिरना आश्चर्यजनक है। यह माना जा रहा है कि वहां लंबे समय से बर्फ पिघल रहा था। भारत में वाहनों और उद्योगों के कारण बढते प्रदूषण से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। विगत 50 सालों में हिमालय के 15ः ग्लेशियर समाप्त हो चुके हैं। अगले सौ सालों में अधिकांश ग्लेशियर समाप्त हो जायेंगे । तब हिमालय से निकलने वाली गंगा, यमुना आदि नदियां भी सूख जायेंगी।
वैज्ञानिकों के मना करने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार हिमालय में बांध और फोरलेन सड़कों का निर्माण कर रही है। इसमें विस्फोटकों का इस्तेमाल करने तथा सुरंग आदि बनाने से पहाड़ कमजोर पड़ रहे हैं। जंगलों के कटने से मिट्टी का क्षरण तेजी से हो रहा है । वैसे भी हिमालय उभरता हुआ संवेदनशील पहाड़ है जहां छोटा मोटा भूकंप भी तबाही ला सकता है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने केदारनाथ त्रासदी के बाद विशेषज्ञों की राय पर 24 बांधों के निर्माण पर रोक लगा दी थी।
पर ठेकेदारों और नेताओं के गठजोड़ के कारण बिजली आदि के नाम पर उत्तराखंड मे करीब 60 बांधों का बनना जारी है। जबकि बांधों से बनने वाली बिजली सौर उर्जा से करीब पांच गुणा मंहगी पड़ती है। इसके अलावा दुर्घटना का बड़ा खतरा रहता है। कहा जाता है कि केदारनाथ दुर्घटना की भविष्यवाणी एक विशेषज्ञ ने सात साल पहले कर दिया था पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। विशेषज्ञ लोग नये बांधों के खिलाफ लगातार सावधान कर रहे हैं।
प्रमुख विशेषज्ञ डा जी डी अग्रवाल ( स्वामी सानंद) जिन्हें प्रधानमंत्री अपना बड़ा भाई मानते थे, बांधों के विरोध में 115 दिनों तक अनशन कर के अपने प्राण त्याग दिये। फिर भी सरकार पर असर नहीं पड़ा। वास्तव में सरकार पर पूंजीपतियों का नियंत्रण हो गया है। यदि कल कोई और भी भयंकर बाढ आने से टिहरी बांध टूट जाता है तो यूपी, बिहार और बंगाल के अनेक शहर ध्वस्त हो जाने का खतरा है। यह स्पष्ट है कि चमोली की दुर्घटना में 150 से अधिक लोगों के मृत्यु की जिम्मेदारी प्रकृति पर नहीं इस भ्रष्ट सरकार पर है।
इसीलिए यह जरूरी है कि बांधों के निर्माण पर तुरंत रोक लगाया जाये और सड़कों को चैड़ा करने के लिए पहाड़ों को कमजोर नहीं किया जाये। इसके साथ यह भी जरूरी है कि देशभर मे वाहनों और उद्योगों से हो रहे प्रदूषण को भी रोका जाये। जनता को भी इन खतरों से सचेत करना जरूरी है। इसलिए आगामी 20 फरवरी 2021 को गंगा मुक्ति आंदोलन की तरफ से ‘हिमालय बचाओ दिवस’ का आयोजन किया जा रहा है। सबों से अपील है कि उस दिन धरना आदि का आयोजन करें.