मैं बताता हूूँ तुम कौन हो । तुम एक छद्म आवरण में छिपने वाले शातिर बहुरूपिया हो । तुममें सत्यता नही , तुम क्रूर और हत्यारे विध्वंसक हो । तुम्हारा चरित्र वीभत्स और डरावना है । तुम तथाकथित धार्मिक हो । मानवीय भावना से रहित माया रहित छल प्रपंच के माहिर खिलाड़ी हो । दूसरे पर आश्रित रहने वाले एक परजीवी के समान हो ।

ना तो तुम्हें खेती करना आता है ना मजदूरी, ना ही मछली पकड़ना आता, ना ही नाव बनाना, ना ही कपड़े बुनना, ना ही जूते बनाना, ना ही गाय, भैस, भेड़, बकरी चराना आता है , ना ही मिट्टी से बर्तन बनाना और ना ही लकड़ी से चीजे बनाना । कीचड़ में घुस कर कभी धान नही बोया , मिट्टी गारा कीचड़ से कभी ईंट नही बनाया , जिस सड़क का इस्तेमाल करते हो उसे तुमने नही बनाया । तुम्हें कुछ भी नही आता फिर भी तुम हजारो वर्षो से श्रमिक वर्ग पर आश्रित होकर जीवित हो किसी परजीवी की तरह ।

तुम्हें सिर्फ गाल बजाना आता है , कल्पित किस्से कथाओं कहानी के सहारे तुमने अपनी प्रतिष्ठा किसी देवता से कम नही बनायी। तुमने हजारो वर्ष पूर्व जातिवाद की ऐसी घृणित रेखा खींची जिसे आज तक मिटाया नही जा सका । कैसे मिटता ? अगर जाति प्रथा खत्म हो गई होती तो तुम भी तो समाप्त हो जाते ।

जिस श्रमण संस्कृति ने भारत को बुलंदियों के शिखर पर ले गया था, उस संस्कृति को तुमने नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ा । तुमने तथाकथित स्वघोषित धर्म के सहारे भारत के मूल लोगो को अपना धार्मिक गुलाम बनाया ।

कितने बेशर्म और क्रूर हो तुम । अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए धर्म थोपते हो, लेकिन जब सामाजिक सम्मान की बात आई ,धार्मिक स्थलों में प्रवेश की बात आई , रोटी बेटी की बात आती है तो तुम उन्हें अशुद्ध ,निम्न ,शूद्र , मलेच्छ ,चंडाल ,अछूत और दोयम दर्जे का बना देते हो ।

तुम्हें कुछ भी तो नही आता था, सिवाय कल्पित कथाओं के अलावा । तुम मेहनत करना नही चाहते ,तुम झूठ , फरेब , षड्यंत्र कर केवल दूसरों की चीजों को अपना बनाने में खूब माहिर थे ।

क्या था तुम्हारे पास ? भुखमरी से तड़पकर तुम सागर मार्ग होते हुए आये थे । तुम्हें यहाँ के मूल जातियों की भाषा संस्कृति से कुछ लेना देना नही था । तुमने यहाँ के सबसे बड़ी सभ्यता को नष्ट करने वाले आक्रांता तो तुम ही थे । वरना वे मूल लोग जंगलों, कन्दराओं ,पहाड़ो में जाने को मजबूर नही होते ।

तुमने यहाँ के महान लोग एवं उनके महान साम्राज्य को बदनाम करने के लिए उनके वीर योद्धा नायकों की क्या तस्वीर बनायी ? बताओ ? सम्राट और राजाओं को असुरराज, राक्षसराज, दैत्यराज और ना जाने क्या क्या नही बनाया तुमने । कल्पित कथाओं के शातिर रचयिता तो तुम्ही थे ना । श्रमण समाज के लोगो को तुमने दास की श्रेणी में रखकर हजारो वर्षो से उनका मानसिक, शारीरिक ,आर्थिक ,धार्मिक और राजनीतिक शोषण करते रहे ।

तुमने अपने झूठे कल्पित कथाओं को साहित्य और धर्मपूरक कह कर आज भी मूल भारतीय के मस्तिष्क में धार्मिक जहर घोल कर मूल लोगो से ही मूल लोगो का संहार कराते रहे ! कितनी शातिरता है तुम्हारे कथनी और करनी में ।

तुमने जिस सिंधु सभ्यता को नष्ट किया था उसे कितनी शातिराना तरीके से धर्म की चादर ओढ़ाकर प्रस्तुत किया. कितना बड़ा छल किया था तुमने मूल भारतीय लोगो के साथ किया था!