‘माकपा ने आईएसएफ के साथ गठबंधन कर अपनी साम्प्रदायिकता विरोधी चरित्र को नष्ट कर दिया है’, यह बात सिर्फ तृणमूल और बीजेपी के ओर से नही उठाया जा रहा है, बल्कि गोदी मीडिया के साथ साथ माले ने भी उठाया है. माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य तो शुरू से ही तृणमूल के साथ हाथ मिलाने की बात कहते आ रहे थे, जबकि सीपीआइएम सहित वामफ्रन्ट के अन्य घटकों का यह मानना है कि 2011 में तृणमूल ने सत्ता में आने के बाद सबसे ज्यादा आक्रमण किया है तो वह वामपंथियों पर ही किया है. आज तक एक भी माले के कार्यकर्ता या समर्थको को तृणमूल के गुण्डों द्वारा न तो मारा गया और न ही पुलिस द्वारा झूठे केस में फंसाया गया, जैसा कि सीपीआइएम कार्यकर्ता और समर्थकों के साथ किया गया. दरअसल, यह जगजाहिर है कि वाम सरकार को सत्ता से हटाने में माले तृणमूल की सहयोगी थी. सरकारी तथ्यों के मुताबिक पिछले दस साल में ढाई सौ से ज्यादा केवल सीपीआइएम कार्यकर्ता की हत्या की गई है, वह भी तृणमूल के गुण्डों और पुलिस के द्वारा. इस बात की पुष्टि ममता बनर्जी के प्रेस कॉन्फ्रेंस से भी होती है जब वे कहती हैं माले से उन्हे कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि माले की चुनावी रणनीति से उन्हे मदद मिलेगी.

आईये हम आईएसएफ की सच्चाई जानने की कोशिश करते हैं. ‘आईएसएफ’ मतलब इन्डियन सेक्युलर फ्रंट. इस फ्रंट में कमोबेश सत्रह छोटे दल शामिल है. इन्डियन सेक्युलर फ्रंट में शामिल हंै- राष्ट्रीय दलित मंच, अखिल भारतीय विकास परिषद्, परू बंगाल बाउरी जाति विकास संघ, भारत जाकात माँगी प्रज्ञा महल, आदिवासी कुर्मी समाज, जंगल महल मूल निवासी एकता मंच, भारतीय आदिवासी भूमिज समाज, आदिवासी समन्वय मंच, एससी, एसटी, ओवीसी अधिकार रक्षा मंच, जैसे छोटे बड़े संगठन. यह सिर्फ मुसलमानों का संगठन नहीं. यह प्रचार जनता को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है.

इस बात को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है कि पिछले कई सालों से राज्य और केन्द्र की सरकारों ने वंचित जमात की जातियों पर आक्रमण तेज किया है, जिसके चलते ये लोग अपना एक मंच बनाकर अपनी अपनी माँग को लेकर एक छत के नीचे गोलबंद हो रहे हैं. और यही बात आज तृणमूल और बीजेपी को खल रही है. पिछले कई महीनों से मिडिया के द्वारा जो नैरेटिव बनाया जा रहा था कि बंगाल में सिर्फ दो ही पार्टी है और चुनावी जंग इन दो र्पाअियों के बीच मे ही होगी , यह नैरेटिव बदल गया है पिछले कुछ महीनों में. खासकर 28 फरवरी की ब्रिगेड की जनसभा में जनता का जो सैलाब आया था, उसके बाद इन दो पार्टियों के साथ साथ मीडिया के भी चेहरे पर तनाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है. और इसलिए यह सारी ताकतें पुरी सिद्दत के साथ जुट गया है भ्रम फैलाने में ताकि जनता को फिर से गुमराह किया जा सके.

इस दरम्यान दिल्ली से किसानो का एक जत्था भी 13 मार्च कोलकाता आ रहा है, राज्य और केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों को जनता के बीच प्रचार करने गाँव-गाँव घूमने का इरादा लेकर, ताकि तृणमूल और बिजेपी के तानाशाह से परेशान लोगों को आजादी मिले. अभी यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि वाम, कांग्रेस, आइएसएफ गठबंधन सत्ता में आ रही है या तृणमूल, लेकिन चुनाव एक दिलचस्प मोड़ पर जरूर खड़ा हो गया है.