भारत के मूलवासी के रूप में अस्ट्रोलाइड भाषा समूह और द्रविड़ियन भाषा समूह के समुदायों को शामिल किया जाता हैं. भारत के कुछ हिस्सों में मंगोलियन नस्ल की जनजाति भी निवास करती हैं. ये सभी समुदाय अपनी भाषा, जीवन शैली एवं अपनी संस्कृति में ‘आर्य समूह’ से बिल्कुल ही भिन्न हैं। 600 से भी अधिक जनजातियों की कुल आबादी करीबन दस करोड़ मानी जाती है, जो देश की कुल आबादी का 8 फीसदी है.
माना यह जाता है कि आर्य- अनार्य के लंबे संघर्ष के दौर के बाद आदिवासी अपने मूल स्थानों से पलायन कर जंगल, झाड़ और पर्वतीय अंचलों में अपना नया ठिकाना बनाया. मुगलों के पूर्व अनेक विदेशी आक्रमणकारी भारत आये और समतल इलाकों में लूट पाट कर वापस लौट गये. मुगलों ने भारत में 1526-1857 तक लंबा शासन कायम किया. लेकिन उनका सीधा टकराव आदिवासियों से नहीं हुआ.
लेकिन जब अंग्रेजों का दौर शुरु हुआ और उन्होंने आदिवासी इलाकों में भी जमींदारी व्यवस्था लागू करने की कोशिश शुरु की, तो आदिवासियों ने डटकर विरोध किया. 1778 ईसवीं में छोटानागपुर के पहाड़ी सरदारों ने, 1780 ईसवीं में ‘कोल समाज’ एवं ‘तामार समुदाय’ के लोगों ने बगावत कर दिया. इस प्रकार ‘मुंडा विद्रोह’ ‘भील विद्रोह’, ‘खेड़वाल विद्रोह’, ‘संताल विद्रोह’, ‘कोवा विद्रोह’, ‘नायक विद्रोह’, ‘नागा विद्रोह’ आदि असंख्य उदाहरण हैं जिनमें आदिवासी समुदाय ने लगातार संघर्ष और बलिदान दिया.
1857 के महान स्वतन्त्रता संग्राम में अगुवाई के लिए गोंडवाना के राजा ‘शंकर शाह’ और ‘रघुनाथ शाह’ को ब्रिटिश शासकों ने तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया था. अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता के आगे जब आदिवासी समुदाय के लोग नहीं झुके, तब थक हारकर 1878 में ब्रिटिश शासकों ने आदिवासी क्षेत्रों में ‘ द शिड्यूल डिस्ट्रिक्ट एकट’ पारित कर वहां अलग प्रशासनिक व्यवस्था प्रारम्भ की. 1935 में ‘गवर्नमेंट आॅफ इंडिया एक्ट’ पारित हुआ जो आज का हमारे संविधान का आधार है. इस एक्ट के चैप्टर 05 में कहा गया कि आदिवासी इलाकों में केंद्र और राज्य सरकारों के कानून लागू नहीं होंगे.
जब देश आजाद हुआ और भारत का संविधान तैयार हुआ तो 1935 में बने गर्वनमेंट आफ इंडिया एक्ट के चैप्टर 05 के 10वें भाग में इसे रखा गया और उसके ‘अनुच्छेद 244’ में यह प्रावधान किया गया कि जितने भी आदिवासी क्षेत्र थे उन्हें पांचवी और छठी अनुसूची में बांट दिया जाए. पांचवी अनुसूची में कुछ पॉकेट्स अलग-अलग राज्यों में थे, जहां आदिवासी समुदाय रहते थे. उन क्षेत्रो को चिन्हित किया गया और उन्हें ‘पांचवी अनुसूची’ में शामिल कर दिया गया. इसके अलावा जिन इलाकों में आदिवासी आबादी 95 फीसदी से अधिक थी, उन्हें उन्हें ‘छठी अनुसूची’ में शामिल कर दिया गय.. इन क्षेत्रों का प्रबंधन आदिवासी केंद्रित बनाने का प्रावधान किया गया था. असम, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा जैसे राज्यों को ‘छठवीं अनुसूची’ ‘ट्राइबल एरिया’ और देश के अन्य नौ राज्यों के आदिवासी बहुल इलाकों को ‘पांचवी अनुसूची’ के तहत ‘शेड्यूल एरिया’ के रूप में वर्गीकृत किया गया.
इन क्षेत्रों के सामान्य और सभी कानून ‘आदिवासी कल्याण’ की दृष्टि में रख लागू किया जाना था, लेकिन 1950 के बाद विधायिका अर्थात ‘विधान सभा’ ने इस पक्ष में कोई ध्यान ही नहीं दिया. सिर्फ सरकार ही चलाते रहें, इलेक्शन कराते रहे. विडम्बना यह है कि जनजाति समाज के हित में बनी संविधान की इस योजना के सम्बन्ध में राज्यपाल और सांसद एवं विधायक अभी तक अनभिज्ञ हैं. आदिवासी इलाकों में लूट व शोषण बदस्तूर जारी है.