इस बार बंगाल का चुनाव ऐतिहासिक होने जा रहा है. इसमें एक तरफ तृणमूल है और दूसरी तरफ खुले आम साम्प्रदायिक द्वेष फैलाने वाली भाजपा है. इसके अलावा चुनाव का तीसरा मोर्चा वाम, कांग्रेस और आइएसएफ गठबंधन है. तृणमूल को अपने नेता, मंत्री और विधायक को पार्टी मे बनाये रखने मे ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं भाजपा तृणमूल से आये भ्रष्ट नेता- मंत्री को ही अपना खेमे मे जगह देकर जनता को यह संदेश दे रही है कि वह तृणमूल के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेगी और बंगाल को ‘सोनार बंगाल’ बनायेगी. मीडिया वाले शूरू से जनता को गुमराह करने के इरादे से यह बताने की कोशिश कर रहे है कि इस बार चुनावी दंगल सिर्फ दो पार्टी तृणमूल और बिजेपी के बीच होने को है. शुरुआती दौर मे लोगो के बीच भ्रम फैलाने मे भले ही सफल हुई हो, लेकिन 28 फरवरी ब्रिगेड समावेश के बाद हालात तेजी से बदलने लगा है. प. बंगाल की जनता को अब यह बात समझ मे आने लगा है कि तृणमूल भाजपा मंे आखिरकार कोई फर्क नही है. तृणमूल भाजपा के सप्लाई लाइन का काम कर रही है और वह समय भी अब दूर नहीं, जब बंगाल की तृणमूल पार्टी, त्रिपुरा की तृणमूल पार्टी जैसा बीजेपी मे विलीन हो जाएगी. लोगों को यह यकीन नही है कि अगर कोई नेता तृणमूल से चुन कर आता भी है तो कितने दिन अपनी पार्टी मे टिकेगा.
बीजेपी ने भ्रष्ट नेताओं को अपनी पार्टी मे शामिल कर यह साबित कर दिया है कि वह भी तृणमूल से कोई अलग नही है. मीडिया वाले लाख कोशिश कर लें, लेकिन यह सच्चाई है कि बीजेपी के पास इसके अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नही था. बंगाल मे बीजेपी भले ही कुछ इलाके में अपना संगठन विस्तार करने मे कामयाब हो, लेकिन पूरे बंगाल मे उसका संगठन उतना मजबूत नहीं है जो चुनाव जीतने मे मददगार हो सके.
दूसरी तरफ तृणमूल को जनता ने सत्ता से बेदखल करने का फैसला ले लिया है. यह बात तृणमूल के नेता समझ चुके हैं. उनको यह भी पता चल चुका था कि अगर वाम, कांग्रेस और आइएसएफ का गठजोड़ खुदा न खास्ता सत्ता में आ जाए, तो उनके बेइमानी का हर एक कच्चा चिठ्ठा सामने आयेगा, जैसा कि मोर्चा ऐलान कर चुकी है. और इससे बचने के लिए यह सारे लोग बिजेपी के झंडे तले शरण ले हे हैं. उन्हे मालूम है कि केंद्र की सत्ता मे जब तक बीजेपी है, तब तक कोई भी केन्द्रीय संस्थान, जैसे सीबीआई, इनकम टैक्स और इडी इनका बाल भी बांका नही कर सकता है. यह तृणमूल और बीजेपी के आपसी तालमेल का एक बहुत ही अच्छा मिशाल है.
मोर्चा जब लोगो के बीच महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल- डीजल- गैस की बढ़ती कीमत, अल्पसंख्यक, दलित आदिवासी जनजाति पर बढ़ते अत्याचार, सरकारी संस्थानों की बिक्री, बैंक के जमा अमानत पर दिन प्रतिदिन घटते सूद जैसे ज्वलंत मुद्दे जनता के बीच प्रचार कर रही है, जिसका कोई उत्तर बीजेपी के पास नही है, तब बीजेपी अंतिम हथियार के तौर पर धर्म को मुद्दा बना रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने बंगाल दौरे मे रोजी-रोटी, बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे को छोड़ अपने भाषण मे जनता को बताया कि बिजेपी के सत्ता में आने के बाद हर गांव मे गोशाला बनाया जाएगा, घुसपैठियो को देश से निकाला जाएगा, लव जिहाद कानून लागू किया जाएगा और नागरिकता कानून को भी लागू किया जाएगा.
योगीजी के भाषण का उद्देश्य था अल्पसंख्यकों के बीच खौफ पैदा करना और हिंदुओ को उनके खिलाफ भड़काना. यह निश्चित है कि कुछ लोगांे पर उनके भाषण का असर जरूर हुआ है, लेकिन बंगाल की जनता का बहुमत इस हिन्दू- मुस्लिम द्वन्द्व को नकारती है. यह धरती विश्व कवि रवींद्र नाथ टैगोर और विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम का है. इस धरती को चैतन्य महाप्रभु ने अपनी वाणी से सींचा है, इस धरती पर ही स्वामी विवेकानंद, राजा राममोहन जैसे समाज सुधारकों का जन्म हुआ है. बीजेपी चाह कर भी बंगाल को उत्तर प्रदेश जैसा साम्प्रदायिक राज्य बनाने मे कामयाब नही होगी. उनके आस्तीन मे दंगे भड़काने जैसे हथियार होने के बावजूद बीजेपी शायद ही कोई ऐसा कदम उठाए.
इसलिए बीजेपी अब मिडिया की मदद से मोर्चा के घटक आइएसएफ के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दिकी के मुसलमान होने को मुद्दा बना रही है, जबकि अब्बास सिद्दिकी मीडिया से अपने इन्टरव्यू मे यह साफ कर दिया है कि उनका दल आइएसएफ सिर्फ मुसलमान का जमावड़ा नही है. इस दल के अध्यक्ष एक आदिवासी हंै - सिमुल सोरेन, इनके उम्मीदवार की सूची मे मुसलमान के साथ साथ हिन्दू, ब्राह्मण, संथाली, दलित भी शामिल हंै. अब्बास सिद्दिकी अपने भाषण मे गलती से भी कभी न इनसा अल्लाह बोले, ना ही इस्लामी नारे लगाए. बल्कि उन्होंने हर भाषण मे बेरोजगारी, भुखमरी, देश की सम्पत्ति की रक्षा का सवाल उठाया.
जबकि ममता बनर्जी अपने चुनावी प्रचार के दौरान कभी मन्दिर मे माथा टेक रही हंै, तो कभी मंत्रोच्चारण कर रही है और कभी हिजाब पहन मुस्लिम इलाके में भाषण दे रही हैं. उधर बीजेपी के छोटे बड़े मझौले सभी नेता भगवा वस्त्र पहन कर ललाट मे टीका लगा कर अपना हिन्दुत्व जाहिर कर रहे हैं. मीडिया और बीजेपी के पास अब और कोई चारा नहीं रह गया है, जिससे वह जनता का भरोसे जीत सके. बीजेपी कोशिश में जुटी हुई है कि किसी तरह से धार्मिक उन्माद फैलाया जा सके. जय श्रीराम का नारा उनकी हर सभा का मुख्य नारा है. लेकिन बंगाल के चुनावी माहौल को अगर परखा जाए तो यह कहना गलत नही होगा कि इस चुनाव मे बीजेपी हो सकता है दो एक सीट पर साम्प्रदायिकता का लाभ हासिल कर ले, लेकिन विस्तृत बंगाल मे सफलता उनके हाथ नही आने वाली. जनता सचेत है.