अगर आप 100 वर्ष पीछे इतिहास में झाँककर देखे तो आपको हिंदुस्तान की गलियों, मोहल्लों, कस्बों और शहरों में हजारों की तादाद में ब्रिटिश सरकार की हुकूमत को ललकारते लोग दिखेंगे । 1919 में आए रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ विरोध जारी था और ब्रिटिश हुकूमत ने जालियांवाला बाग में हजारों बेकसूरों पर गोलियाँ चलाई थी । पूरा देश आक्रोश से भरा था । हाँ, यह वहीं दौर था जब गांधीजी ने पूरे देश का आवाहन किया कि इस बेरहम हुकूमत के कानूनों को सहयोग ना करें, इनके खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’ कीजिए । इस आंदोलन में पहली बार किसानों के साथ - साथ 6 लाख श्रमिक शामिल हुए । किसानों और श्रमिकों की एकजुटता की मिसाल बना 1921 का साल । ठीक 100 साल बाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन को पुनर्जीवित करने की जरूरत है । केंद्र सरकार द्वारा आम जनता के टैक्स से बनी पब्लिक कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ आम जनता को केंद्र सरकार के कानूनों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करना चाहिए ।

आज के समय में कृषि को लेकर बिल्कुल उसी तरह के दमनकारी कानून बनाए गए है जो किसान को उसकी फसल या किसानी से ही नही बल्कि उसकी जमीन, मिट्टी से अलग कर देगा । किसान की जमीन मिट्टी उसकी ना होकर चंद पूँजीपतियों के हाथों में चली जाएगी । दिल्ली के चारों बॉर्डर (सिंघु, टिकरी, गाजीपुर, शाहजहांपुर) पर चल पिछले 3 महीने से चल रहे किसान आंदोलनों ने अब कई राज्यों में लाखों किसानों की महापंचायत कर अपना प्रेम इस धरती मिट्टी के साथ दिखाया है ।

आज से 91 वर्ष पहले गांधीजी ने भी देश को एकजुट करने के लिए नमक के ऊपर कर लगाने के एक कानून के विरुद्ध सविनय कानून भंग का कार्यक्रम बनाया था । 12 मार्च 1930 को वो 78 यात्रियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी (गुजरात) तक की पदयात्रा की और 6 अप्रैल की सुबह मुठ्ठी भर नमक अपने हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून को भंग किया । बस इसके बाद पूरे देश में हजारों जगह लोगों ने इस कार्यक्रम को दोहराया, नमक बनाया और लोगों को दिया । गांधीजी समेत हजारों लोगों की गिरफ्तारी हुई और उस से कहीं ज्यादा घायल हुए .

इन दोनों ऐतिहासिक सत्याग्रह की विरासत को आगे बढ़ाते हुए हम आनेवाली 12 मार्च 2021 को ‘मिट्टी सत्याग्रह’ की शुरुवात मुंबई में कर रहे है । मुंबई के वडाला साल्ट पैन में यूसुफ मेहेरअली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय समेत दर्जनों समाजवादी साथियों ने नमक को मुट्ठी में लेकर कानून को तोड़ा था । हम 12 मार्च से 29 मार्च तक मुंबई के विभिन्न इलाकों में किसान आंदोलन के समर्थन में और निजीकरण के विरोध में अभियान चलाएँगे, किसान - मजदूर- जन आंदोलनों के मुद्दों की चर्चा कर, सभा आयोजित करेंगे । लोगों की लामबंदी और किसान- मजदूर आंदोलन के मुद्दे निम्न - मध्यम वर्ग तक पहुँचाना हमारा उद्देश्य है । इस अभियान की विशेषता यह होगी कि हम मुंबई के हर इलाके के प्रमुख ऐतिहासिक स्थानों, आजादी के नायकों की प्रतिमाओं और संघर्ष के प्रतीकों से एक मुट्ठी मिट्टी इकट्ठा करेंगे । 30 मार्च को हम मिट्टी सत्याग्रह की यात्रा की शुरूवात करेंगे । मुंबई से दांडी, साबरमती आश्रम, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा होते हुए यह यात्रा 5 अप्रैल की शाम सिंघु बॉर्डर पहुँचेंगी ।

हम सभी राज्यों में अपने संपर्को को राज्य स्तर पर लोगों की लामबंदी का अभियान चलाने की अपील करते है और अपने राज्य की मिट्टी को कलश में इकट्ठा कर 5 अप्रैल की शाम तक दिल्ली पहुँचने का आवाहन करते है । हम संयुक्त किसान मोर्चा के साथियों से संपर्क कर उनसे अपील करेंगे कि भविष्य में जब भी किसान आंदोलन की जीत होगी और किसान भाई अपने गाँवो में वापस लौटे उसके पहले चारों बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शहीद हुए किसान भाई - बहनों की शहादत को याद करते हुए, उनके सम्मान में ‘शहीद स्तंभ’ का निर्माण किया जाए और स्तंभ की बुनियाद में हिंदोस्तान भर से आई मिट्टी का उपयोग किया जाए ।

मिट्टी हमारे अस्तित्व, अस्मिता और अधिकार का प्रतीक है, हिंदोस्तान की मिट्टी इस देश की जनता के भीतर स्वावलंबन और स्वाभिमान को पैदा करती है । हम कृषि कानूनों और निजीकरण के कानूनों के मार्फत हमारी जमीन को छीनने का जो प्रयास मौजूदा सरकार कर रही है, हम उसका पुरजोर विरोध कर रहे है और हम इतिहास में लड़ी आजादी के आंदोलन की लड़ाई को दोहराने को तैयार है ।

मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम, फिरोज मीठीबोरवाला, फहाद अहमद, गुड्डी