2014 के चुनाव के ठीक पहले चेन्नई से हावड़ा और दूसरे दिन हावड़ा से गया की ट्रेन यात्रा मैंने की थी। तभी मुझे यह संकेत मिला था कि बंगाली भद्र लोगों में भी हिंदुत्व की पैठ बनी है। दोनो दफा मिलाकर मेरे सामने कम से कम 10 बंगाली मानुष यह विवाद करते रहे कि मैं कांग्रेस का एजेंट हूं। मैंने एक दफा उनमें से यादवपुर विश्वविद्यालय के एक युवा कॉलेज अध्यापक का उपहास भी उड़ाया था कि ‘हिंदुत्ववाद’ से वह प्रभावित हुआ है और इससे बंगाल कि छवि बिगड़ती है।
2014 से ही साइड मीटर पर लिखे इस संदेश को मैं याद करता रहा हूं. गाड़ी का ड्राइवर, गाड़ी भगाते हुए साइड के मिरर से पीछा कर रही गाड़ी को देखता है। मिरर पर लिखा हुआ है कि पीछा कर रही गाड़ी जहां दिख रही है उसके मुकाबले नजदीक है.
अभी भी जब इस पीछा कर रही गाड़ी में बंगाल विधानसभा के लक्ष्य में भाजपा को देखता हूं तो मुझे अपनी पुरानी आशंका की ओर ध्यान जाता है कि तृणमूल या कांग्रेस सहित अन्य एक हफ्ता के लिए भी भ्रष्टाचार मुक्त शासन का संचालन नहीं कर सकते। ( भाजपा भ्रष्ट नही है, यह नही समझ लीजिये. परंतु भाजपा को सुशासन से ही परास्त कर सकते हैं. भाजपा के खिलाफ मजबूत रन नीति का आधार नैतिक हो, यह पहले से भी ज्यादा जरूरी हो गया है.)
इस समय जब चुनाव के पहले से ही, शासक टीएमसी के मुकाबले लेफ्ट या कांग्रेस आधार नहीं बना सकी और रिक्ति को यहां भाजपा भर रही है, तो ध्यान कहीं और भटकना लाजमी है। कमसे कम लेफ्ट का ध्यान भटकेगा.
मेरा खुद का मानना है, कि पश्चिम बंगाल में अभी के मौजूदा विकल्पों में लोग टीएमसी को ही चुनें. हालाँकि बंगाल में सत्ता विरोध की हवा भी टीएमसी के खिलाफ ही जाएगी। लेफ्ट का अभियान दीदी और मोदी, दोनो के विरोध मे हैं.
मुझे मित्रों ने, मेरे निजी पोस्ट पर जाकर यह कहा कि मुझे चुनाव आयोग के खिलाफ होना चाहिए। मैं भी सेशन के समय से खासकर यह विचारने लगा हूं कि नौकरशाही के हाथ में चुनाव हो रहा है।
बंगाल में नौकरशाही मुख्य रूप से टीएमसी के साथ है और जिला स्तर पर 30 महत्वपूर्ण तबादले करके चुनाव आयोग ने टीएमसी को चुनौती दी है। मेरे मित्र विप्लव ने भी कोलकाता में रहकर गंभीर निगरानी के आधार पर कहा है कि इन तबादलों की वजह से चुनाव आयोग शक के घेरे में आया है. शांतिनिकेतन में दूसरे मित्र हैं, उन लोगों को भय, है कि टीएमसी के नियंत्रण से छूटने के लिए भाजपा की ओर लोगों का घूम जाना जारी है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग बंगाल में खास चर्चा बिंदु नहीं है।
मेरे वक्तव्य की शुरुआत ही होती है - ‘इस समय, वर्तमान से मुकाबला है।’ इसे आगे बढ़ाओ तो भाजपा से मुकाबला है। और जबकि मुकाबला है, इसलिए हताशा का रास्ता नहीं बचता है। मैंने पहले ही खास रेखा अंकित कर दिया था कि ‘मुझे वर्तमान की चुनौतियों के आगे अतीत का संश्रय खोजना, सही नहीं दिख रहा।’