कोरोना महामारी सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में गंभीर संकट लेकर आया हैं। इसका प्रभाव वैसे तो समाज के हर तबके पर पडा है, लेकिन मेहनतकश आदिवासी सामाज, जिसका जीवन यापन दिहाड़ी के रूप खट कर ही आज कल चलता हैं, वह विशेष रूप से प्रभावित हुआ।
कोरोना महामारी 30 जनवरी 2020 को भारत मे आया था। उसके बाद से हमारी बस्ती, आदिवासी सामाज के लोगांे को इतने संकटो का सामना करना पड़ा कि उसे शब्दो मे व्यक्त करना कठिन हैं। जब 24 र्माच 2020 को कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश में 21 दिनो का लाॅकडाउन का आदेश दिया गया, तब आदिवासी सामाज जिसका घर दिन प्रतिदिन कि कमाई से चलता हैं, सोचिएॅ वह घर कैसे चलाता होगा? यह लाॅकडाउन सिर्फ 21 दिनों का नहीं, बल्कि , सप्ताह, साल तक खिंचता रहा और अब भी दूसरी लहर के रूप में. लाॅकडाउन का सामना करना पड़ रहा है.
गांव मे तो लोग किसी प्रकार खेती कर के घर का सब्जी चावल इकटा कर लेते थे, पर शहर की कुछ छोटी छोटी बस्ती जहां ना खेती करने की सुविधा है, ना ही खेतिहर मजदूर के रूप में ही काम करने का अवसर. सोचिए, वह आपना घर कैसे चलाता होगा। कोरोना संक्रमण को बढते देख लोगो ने घर पर रहना तो शुरू कर दिया, पर उसे अन्दर ही अन्दर यह चिंता खाई जा रही थी कि घर कैसे चलेगा। दिन प्रतिदिन का चावल, दाल, सब्जियां कहाॅ से वे जुटायेंगे. खुद तो भूखे भी रह लेंगे एकाध शाम, अपने बच्चों का पेट कैसे भरेंगे?
ये समस्या तो थी ही एक और एक समस्या यह आई कि अब बच्चों का आॅनलाइन क्लास कैसे चलेगा? माता- पिता के लिए यह भी एक चिंता की बात थी कि हमारे बच्चे अब कैसे पढ़ेंगे, क्योंकि कोरोना ने पढ़ाई का सिस्टम बदल दिया. अब स्कूल, कालेजों में आॅन लाईन पढ़ाई का चलन शुरु हो गया है जिसके लिए स्मार्ट फोन जरूरी है. अमीर घर के बच्चों के लिए तो यह कोई बड़ी समस्या नहीं, लेकिन सामान्य आदिवासी घरों के माता पिता अपने बच्चों को कहां से स्मार्ट फोन दें? एक तरफ पैसों की किल्लत और दूसरी तरफ लाॅक डाउन का बढ़ता सिलसिला. अब वे पेट भरें या बच्चों के लिए स्मार्टफोन जुटायें.
ये कैसां संकट आ गया है। एक तरफ सरकार कहती है- गरीबी दूर करेगें। पर कोरोना संक्रमण के कारण गरीबी तो निरंतर बढ़ती जा रही है। डैम सार्डड की तमाम आदिवासी बस्तियों का यही हाल है. लगातार चलने लाॅक डाउन से काम मिलना मुश्किल. सच पूछिये तो वे अपना जीवन उस जमा पूंजी से चला रहे हैं जिसे उन्होंने भारी मशक्कतों से अपने भविष्य के लिए बचा कर रखा था. उस मेहनत की मजदूरी को तो आज कोरोना महामारी ही लूट रही हैं. और वह जमा पूंजी भी कितने दिन चलेगी?
इसलिए जरूरत इस बात की है कि सरकार कोरोना महामारी से तो जरूर निबटे लेकिन साथ ही आर्थिक गतिविधियां भी जारी रखे, वरना कोरोना से लोग बच भी जायें, भूख उन्हें मार डालेगा.