मैंने तेलुगु फिल्म ‘वकील साब’ एमेजोन प्राईम में देखी. हिंदी फिल्म ‘पिंक’ पर आधारित जान कर देखने की उत्सुकता बढ़ी. लेकिन फिल्म को देख कर निराशा ही हुई. किसी अच्छी फिल्म को बहुत सारे लोगों तक पहुंचाना हो तो ऐसा प्रयास होना चाहिए, लेकिन सारे बदलाव के बावजूद फिल्म का मूल कत्थ को तो जीवित रखना चाहिए. इस फिल्म में वही गायब था.
‘पिंक’ फिल्म को हममें से बहुत लोगों ने देखा होगा. यह एक महिला प्रधान फिल्म थी. इसकी मुख्य बात यह थी कि किसी महिला के ना कहने पर उसके शरीर को छूने का अधिकार किसी पुरुष को नहीं है. यदि कोई पुरुष ऐसा करता है तो अपने बचाव के लिए यदि लड़की उस पुरुष को घायल कर देती है या मार देती है तो वह उसका अपराध नहीं होगा, बल्कि अपने अधिकार का प्रयोग होगा. हिंदी फिल्म की नायिका मीनल जब ऐसे हादसे से गुजरती है तो उसका आस पड़ोस, पुलिस, यहां तक कि महिला पुलिस भी उसका साथ नहीं देती है. लेकिन इसी समाज का एक वकील इस लड़की का पक्ष लेकर कोर्ट में लड़ता है और लड़की को बचा लेता है.
लेकिन तेलुगु फिल्म ‘वकील साब’ एक पुरुष प्रधान फिल्म है. जैसाकि इसके नाम से ही पता चल रहा है. इस फिल्म के निर्देशक मीनल की त्रासदी से कम और वकील के चरित्र से ज्यादा प्रभावित लगता है. इसलिए इस चरित्र को ज्यादा अहमियत देता है. वकील एक जमींदार होते हुए भी अपनी सारी जमीन गरीबों में बांट कर वकालत करता है. विद्यार्थी जीवन से ही विद्यार्थियों के हकों की लड़ाई लड़ता है. इस तरह वह नेता तथा पुलिस के आंखों की किरकिरी बन जाता है. वकालत करते हुए भी वह गरीब आदिवासियों के हितों की लड़ाई ही ज्यादा लड़ता है. यह लड़ाई केवल कोर्ट में ही नहीं कोर्ट के बाहर भी गुंडे मवालियों के हाथ पैर तोड़ते हुए, गला मरोड़ते हुए या बेल्ट से उनको मारते हुए दिखाया गया है. उसकी वीरता से प्रभावित हो कर एक लड़की उसके प्रेम में पड़ कर विवाह भी कर लेती है. लेकिन प्रसव के समय वह पत्नी तथा बच्चा दोनों को खो देता है. और जैसे एक हीरो करता है, पूरे समाज से विरक्त होकर वह शराब के नशे में डूब जाता है.
नायक पूजा की परंपरा को कायम रखते हुए इस फिल्म में भी डाईरेक्टर ने वकील को सूरवीर दिखाया है. इसमें मारपीट के बावजूद उसे एक खरोंच तक नहीं आती है. भले ही बाथरूम के नल या कमोड टूट जायें या दरवाजे या खिड़किया.ं. अब जब वकील साब हमेशा शराब पीते रहते हैं तो उनको शराब लाकर देने के लिए उनका एक विश्वस्त नौकर भी होता है, जैसे देवदास फिल्म में था.
वकील साब के जीवन के इसी क्रम में तेलुगु फिल्म की नायिका पल्लवी की त्रासदी उपस्थित होती है. प्रारंभ में अनिच्छा से ही सही वकील उनके लिए कोर्ट जाता है. धीरे-धीरे उसके पीने की आदत छूट जाती है, लेकिन अपने गुस्से पर काबू पाना उसके लिए कठिन हो जाता है. प्रतिपक्ष के वकील के साथ बहस के दौरान हाथा पायी कर बैठता है. और दोनों वकीलों पर कोर्ट की अवमानना का चार्ज लगता है. बात बार कौंशिल के पास जाती है. बार कौशिंल के अध्यक्ष वकील की क्षमताओं के कायल थे. और अपना फैसला उस समय तक रोक लेते हैं जब तक कि कोर्ट में पल्लवी का फैसला नहीं आ जाता. शायद डाईरेक्टर जाॅली एलएलबी के इसी तरह के प्रसंग से प्रभावित था, जिसका इस्तेमाल इस फिल्म में कर लिया.
लेकिन निर्देशक अपना नायक प्रेम अंत तक छोड़ नहीं पाता है. फैसले के दिन मेट्रो में कोर्ट जाती तीनों लड़कियों पर अपराधी के गुर्गे आक्रमण कर देते हैं. उस समय वकील साब वहां प्रकट हो जाते हैं. बायें हाथ से तीनों लड़कियों की रक्षा करते हुए दाहिने हाथ से कम से कम दस गुंडों को मार गिरा देते हैं. फिर अपना काला कोर्ट झाड़ते हुए तीनों लड़कियों सहित कोर्ट पहुंचते हैं. फैसला वही है जो पिंक में है. लेकिन इसमें वकील का विजय ज्यादा और पल्लवी की गरिमा की रक्षा कम लगती है.
कुल मिला कर वकील साब तेलुगु भाषा की और चालू फिल्मों की तरह मारधाड़ वाली नायक प्रधान फिल्म है. यदि पल्लवी का प्रसंग नहीं भी जुड़ता तो यह एक मसालेदार फिल्म बन ही जाती. इस तरह निर्देशक ने अपने नायक प्रेम में हिंदी फिल्म पिंक की हत्या कर दी.