‘मेरे पिता को मत मारो, छोड़ दो प्लीस’, ये आवाज आप सब ने सुनी होगी, जब मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में एक नाबालिक बच्चे के सामने उसके पिता को पुलिस ने इसलिए बेरहमी से पीटा था, क्योंकि उसका मास्क मुँह पर ठीक से नही लगा था. इसी तरह की हजारो घटनायंे सामने आई है, जब पुलिस ने कभी चेहरे पर बड़ी-बड़ी दाढी होने के कारण मुसलमान समझ कर एक वकील को पीटा हो, या मास्क न पहनने पर देश के नागरिको को पीटने का मामला हो.
सवाल उठता है कि क्या पुलिस इस तरह से देश के नागरिको के साथ अत्याचार कर सकती है ? जवाब है नहीं. पुलिस अपने देश के नागरिकांे के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकती, क्योकि पुलिस का पद एक लोकसेवक का पद होता है. उसका काम देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि उनके अधिकारों का उल्लंघन कर उनके साथ मार पीट करना. क्योंकि, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 भी देश के हर नागरिको को आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है. पुलिस अत्याचार का यह पहला पहलू है जहां बिना उचित कानूनी कार्यवाही के लॉक डाउन के दौरान सड़को पर देश के नागरिको के साथ मार-पीट की गई है.
पुलिस उत्पीड़न का दूसरा पहलू हैं पुलिस हिरासत में देश के नागरिको के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन. चाहे वो तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पिता -पुत्र की पुलिस हिरासत में मौत का मामला हो या सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बाद साधारण केसों में आरोपियों को हथकड़ी लगा कर अदालत में पेश करने का मामला हो, देश के नागरिको पर दिन प्रतिदिन पुलिसिया दमन बढ़ रहा है और बडे पैमाने पर देश के नागरिको के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिरासत में रोजाना औसतन पाँच लोगों की मौत होती है. ‘इंडिया एनुअल रिपोर्ट ऑन टार्चर 2019’ के मुताबिक साल 2019 में हिरासत में कुल 1731 मौतें हुईं. इनमें से 125 मौतें पुलिस हिरासत में हुईं थीं, वहीं एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक साल 2017 में पुलिस हिरासत में कुल 100 मौतें हिरासत में हुईं थीं. इनमें से 58 लोग ऐसे थे जिन्हें हिरासत में तो लिया गया था, लेकिन अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया था. इसका मतलब साफ है कि पुलिस माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों और आदेशांे का खुले आम उल्लंघन कर रही है, इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 एवं 22 में जो प्रावधान दिए गए है, उन प्रावधानों का भी उल्लंघन कर रही है. देश में इतने बड़े पैमाने पर पुलीस द्वारा हो रहे नागरिको के मानवाधिकार के उल्लंघन पर सरकार को ध्यान देना चहिये और इसे रोकने के लिए पुलिस बल को संवैधानिक मूल्यों का प्रशिक्षण देना चहिये, ताकि नागरिको के मानवाधिकार की रक्षा हो सके.