आज भी हमारे आदिवासी समाज में जात-पात क्यों माना जाता हैं? कहने को आज हम शिक्षित नागरिक हैं, पर ग्रामीण इलाकों में जात-पात की बातें आज भी होती हैं. उनकी़ सोच कभी क्यों नहीं बदलती हैं? शहरी इलाकों में इसका प्रभाव कम हो रहा है, पर ग्रामीण इलाकों के नागरिक शिक्षित होने के बाद भी जात-पात पर यकीन रखते हैं. वे दूसरे धर्म के लोगों के साथ, दोस्ती, राजनीति तो करते हैं, पर दूसरी जात में शादी नहीं कर सकते. उनका कहना होता हैं कि अगर दूसरे धर्म में शादी करते हैं तो आस-पास और हमारे धर्म के लोग क्या कहेंगेे. वे हमारे घर भी नहीें आयेंगे. किसी प्रकार के हमारे सामाजिक कार्य में शामिल नहीं होंगे.
ऐसा पुरातन्त काल से चला आ रहा हैं, और आज के जमाने में भी होता है. जब सारी दुनिया उन्नति की और बढ़ रही है तो आदिवासी समाज में अभी भी ऐसा क्यों है? आदिवासी समाज और अन्य लोंगों की सोच क्यों नहीं बदलती हैं? वे आज भी अशिक्षित जैसी बातें क्यों करते है? अगर कोई आदमी अलग जात में विवाह करता हैं तो उसे अलग कर देने की नौबत क्यों आ जाती हैं? पुराने जमाने में ऐसा माना जाता था, क्योंकि उस वक्त के हालात कुछ अलग थे, पर अब तो नागरिक शिक्षित होने के साथ समझदार भी हो रहें हैं, फिर विवाह को लेकर उनकी सोच क्यों नहीं बदलती?
अगर कोई लड़का -लड़की, अलग-अलग धर्म के है और वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं, एक नहीं हो पाते. क्योंकि वे अलग धर्म के है. और घर वाले नहीं मानेगें, यह सोच कर अपनी इच्छाओं को कुर्बान कर देते हैं. कई लोग तो घर वालों की वजह से घर छोड़ कर भाग जाते है़. भागते इसलिए हैं, क्योंकि वे साथ रहना चाहते है. लेकिन माता-पिता ऐसी स्थिति आने ही क्यों देते हैं? क्या माता-पिता को अपने बच्चों का विवाह करने से पहले एक बार पूछ नहीं लेना चाहिए? जिंदगी उनको बितानी हैं, आपको नहीं.
इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे-वैसे लड़के या लड़की से विवाह कर दें. अच्छी तरह से सोच विचार व विमर्श कर लें, ताकि आगे चल कर किसी प्रकार की कोई मुसीबत ना आये. कई लड़कियां तो अपने माता - पिता की खुशी के लिए अलग हो जाते हैं. अक्सर लड़कियां अपने माता- पिता की पसंद से विवाह कर लेती हैं.
क्या उनकी इच्छा- अनिच्छा का कोई मोल नहीं?