जब भी कोई चुनाव आता है, भाजपा और संघ परिवार के तमाम नीतिकार किसी न किसी प्रकार से मुस्लिम कार्ड को खेलने के मंसूबे में लग जाते हैं. उनकी पूरी राजनीति ही मुसलमानों के खिलाफ नफरत की बुनियाद पर खड़ी है. उनके तमाम राजनीतिक एजंडे उसी के इर्द गिर्द गढ़े और बुने जाते हैं. इतनी खोखली और नकारात्मक राजनीति शायद किसी और दल के पास नहीं. उनकी राजनीति के केंद्र में रही है गोकशी, राम मंदिर, धारा 377, नागरिकता कानून में संशोधन आदि. लेकिन हर मुद्दे की एक उम्र होती है. उसके आगे वह चल नहीं पाती. तो इस एक मात्र एजंडे को लेकर वे कोई नया मुद्दा ले आते हैं. जैसे इन दिनों उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाच को देखते हुए उन्होंने ‘लव जेहाद’ और ‘जनसंख्या नियंत्रण’ का मुद्दा लेकर आये हैं.

उनकी सोंच इस बात से आगे जाती ही नहीं कि हमारा देश हिंदूबहुल देश है और यदि हिंदू वोटों को एकजुट कर दिया जाये तो फिर चुनावी वैतरणी पार करने में कोई कठिनाई नहीं होगी. इसलिए आजादी मिलने के पहले से संसदीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए वे इस एजंडे पर काम करते रहे हैं. आजादी के पहले से गोकशी के मसले पर वे लगातार दंगे करवाने में सफल रहे. अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा भारतीय राजनीति के केंद्र में हाल तक रहा. अब चूंकि कोर्ट ने उनके इस मुददे का हल निकाल दिया और मुसलमानों ने सब्र से काम लिया, इसलिए इस मुद्दे की हवा निकल गयी. कश्मीर में धारा 377 की समाप्ति के बाद कश्मीर का मसला भी ठंढ़ा पड़ गया है. नागरिकता कानून में संशोधन का बिल उनकी राजनीति के लिए उल्टा पड़ गया, हालांकि इसके कारण उनको असम में राजनीतिक लाभ हो गया. लेकिन बंगाल के चुनाव परिणाम ने इस बात के ठोस संकेत दे दिये कि सांप्रदायिक राजनीति की अपनी एक सीमा है. जहां भी वोटर थोड़ा सा भी जागरूक है, वहां यह काम नहीं आयेगा.

लेकिन वे करें तो क्या करें? अगले वर्ष उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. और उनके पास जनता के बीच जाने के लिए ऐसी कोई उपलब्धि नहीं जिससे वे जनता को भ्रमित कर सकें. मानवाधिकारोें के हनन के मामले में पूरी दुनिया में इनकी भद पिट रही है. मेड इन इंडिया का सच कोरोना काल में पूरी तरह उजागर हो गया है. पेट्रोल और गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं. बेरोजगारी का बुरा हाल है. तो वे करें तो क्या? ले देकर वही मुस्लिम कार्ड का सहारा रह गया है जो भेष बदल लव जेहाद और जनसंख्या नियंत्रण कानून के रूप में सामने आया है. दोनों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कानून बन गये हैं. और पूरे देश में इन कानूनों को लेकर बहस-विवाद शुरु हो गया है. दरअसल भाजपा यही चाहती है कि इस तरह के विवादित मुद्दे सतह पर रहें ताकि जनता के असली सवाल सतह के नीचे चले जायें. लव जेहाद पर हम यहां चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि इसी अंक में हमारे साथी श्रीनिवास का एक आलेख इस विषय पर जारी किया जा रहा है. लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर हम थोउ़ा विचार करेंगे.

यह सभी जानते हैं कि भाजपा हमेंशा से यह भ्रम बनाती रही है कि अल्प संख्यक समुदाय तेजी से अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं और आने वाले दिनों में वे हिंदुओं को अपने ही देश में अल्पसंख्क बना देंगे. ईसाई समुदाय यह काम धर्मांतरण के द्वारा कर रहा है और मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करके. 30- 35 वर्ष पहले से वे कहते आ रहे हैं कि अगले 30 वर्षों में हिंदू अल्पसंख्यक हो जायेंगे और मुसलमान बहुमत में आ जायेंगे. उनके पास इसके लिए एक पूरा हिसाब किताब था. लेकिन 30 वर्ष तो बीत गये. अभी अभी जो जातीय आंकड़े आये हैं, उनसे उनके इस झूठ का पर्दाफाश हो चुका है. 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की आबादी 96.62 करोड़ है तो मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़.

दूसरी तरफ यह बात किसी से नहीं छुपी हुई है कि संघ परिवार के नेता और नेत्रियां लगातार हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह सार्वजनिक रूप से देती रहती हैं. साक्षी महाराज, सांध्वी रितंभरा जैसे संघी नेता ऐलानिया कहते हैं कि हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करना चाहिये. वैसे में ठीक चुनाव के पहले जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

इस बात को तमाम समाजशास्त्री समय समय पर रेखांकित करते रहे हैं कि आबादी के बढ़ने की एक प्रमुख वजह गरीबी होती है. जहां गरीबी है, वहां आबादी कुछ ज्यादा ही गति से बढ़ती है. हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर यदि थोड़ी ज्यादा है तो उनमें गरीबी भी ज्यादा है. हाड़तोड़ परिश्रम, मनोरंजन के लिए समय नहीं, न साधन. सस्ता मनोरंजन सेक्स बन जाता है. एक सामाजिक आर्थिक हैसियत प्राप्त करने के बाद ही भविष्य की प्लानिंग और परिवार को नियोजित करने की प्लानिंग दिमाग में आती है.

लेकिन इस बहस में जाने से कोई लाभ नहीं, उनकी मंशा भी आबादी नियंत्रित करने की नहीं, मसलमानों की बढ़ती आबादी का हौवा खड़ा कर हिंदू वोटरों को गोलबंद करने की है. यह अलग बात कि इसका कितना लाभ वे उठा पायेंगे उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में, यह कहना मुश्किल है. हां, तत्काल वे असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने में जरूर सफल हो गये हैं.