फुटबाॅल के खेल में औरत का अनादर या शोषण का अंत यहीं नहीं होता है. क्योंकि 2019 से विश्व कप के बाद सोशल मीडिया मे एक खबर संभवतः बीबीसी के सौजन्य से आयी थी कि कोई भी व्यक्ति विश्व कप में इंग्लैंड की जीत को इतनी सिद्दत से नहीं चाहता होगा जितना की वहां की औरतें, क्योंकि इंग्लैंड की टीम हारती है तो यहां घरेरु हिंसा की घटनाएं 38 प्रतिरूात तक बढ़ जाती हैं. हिंसा को ‘रेड कार्ड’ दिखाईये, यह ‘मीम’ पाथवे प्रोजेक्ट संस्थान ने महिलाओं को जागरुक करने के लिए बनाया था.

ब्रिटेन की लाईमचेस्टर यूनीवर्सीटी में साल 2013 में इस विषय पर रिसर्च किया था और इसमें भी वल्र्ड कप के दौरान महिलाओं पर हिंसा बढ़ने की बात सामने आयी थी. 2002, 2006 तथा 2010 के विश्व कप के मैचों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि जब इंग्लैंड हारती है तो महिला हिंसा की घटनाएं 38 प्रतिशत बढ़ जाती है और जब इंग्लैंड मैच जीतती है या ड्रा हो जाता है तो यह 26 प्रतिशत होता है. पुलिस के पास आने वाली शिकायतों के आधार पर भी नतीजे निकाले गये थे. मैच के अगले दिन से ही औरतों से मारपीट 11 प्रतिशत तक बढ़ती देखी गयी. इसके अलावा पार्थ वे प्रोजेक्ट में काम करने वाली लेंडा नेपिंग के पास भी विश्व कप के दौरान या बाद में महिला हिंसा के कई उदाहरण है. उसके अनंसार खेल में हार जीत ही नहीं, बल्कि इसके साथ शराब, ड्रग्स, जुए और सट्टे जैसी चीजे जुड़ी रहती हैं जो औरतों की स्थिति को और खराब करती हैं. उसने 17 साल की एक लड़की का उदाहरण दिया जो अपने 21 साल के पार्टनर के साथ फुटबाॅल मैच देखने गयी. इंग्लैंड की टीम हार गयी और लड़की शाम को हास्पीटल पहुंच गयी, क्योंकि उसके दोस्त ने उसके साथ मारपीट किया था.

लेंडा लिपिंग के अनुसार फुटबाॅल में कई तरह की और भावनाएं भी जुड़ी रहती हैं. जैसे, जुनून, गर्व, उत्साह, हुल्लड़बाजी आदि. इसका प्रभाव महिलाओं के मानसिक तथा भावनात्मक उत्पीड़न के रूप में भी दिखते हैं. पैनी नाम की लड़की का उदाहरण देते हुए लैंडा बताती है कि पैनी जब अपने ब्वायफ्रेंड के साथ टीवी में मैंच देखती है तो वह उसकी प्रिय टीम के जीतने की प्रार्थना करती रहती है, क्योंकि उसकी टीम हार जाती है तो उसका दोस्त उससे बोलना बंद कर देता है.

कई लोगों का मानना है कि महिलाओं के साथ हर दिन हिंसा होती है. फुटबाॅल तो एक बहाना भर है. लेकिन विश्व कप के दौरान महिला हिंसा को लेकर लोग अब सचेत हैं. सोशल मीडिया में इसको लेकर बहस होती हैं. कई संस्थाएं तथा पुलिस भी इस बात को स्वीकार करती है कि मैंच के दौरान औरतों के साथ होने वाली हिंसा बढ़ जाती है और वे उनकी मदद के लिए भी आगे आ रहे हैं. हम आशा कर सकते हैं कि इन प्रयासों से आगे होने वाले खेलों के दौरान महिला हिंसा में कमी आयेगी और महिलाओं के बारे में लोगों का नजरिया बदलेगा.

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