महिला विश्व फुटबाॅल का इतिहास 1951 को शुरु होता है. पुरुष हिंसा की शिकार महिलाएं अपने घर, समाज तथा धर्म के बंधनों को पार कर पुरुष प्रधान खेल को स्वीकार करती हैं तो उसका अंदाजा लगाया जा सकता है. घर तथा समाज तो फुटबाॅल को लड़कियों का खेल ही नहीं मानता है. मुस्लिम देश की लड़कियों के लिए तो धर्म भी एक बाधक होता है. फिर भी उन देशों की लड़कियों ने अपना जज्बा दिखाया. सर पर हिजाब पहने, पूरे शरीर को ढ़क कर फुअबाॅल खेलने की चुनौती उनके सामने थी. उन्होंने सर का हिजाब तथा पूरे शरीर को ढ़कने का ऐसा पोशाक पहना कि उनको खेलने में कोई कठिनाई न हो और धार्मिक कट्टरपंथियों का तुष्टीकरण भी हो जाये.

अभ्यास के लिए जाती लड़कियों के सामने कोच के यौन हिंसा की भी समस्या थी. इसको भी उन्होंने झेला. ईरान में तो इस्लामिक आंदोलन के बाद चार दशकों तक लड़कियों को मैदान में जा कर पुरुषों को खेलते हुए देखना भी मना था. तब लड़कियों ने अपना तरीका निकाला. वे टी सर्ट पहन कर मैदान में जाकर खेल देखने लगंी. वे वहां की लड़कियों का फुटबाॅल के प्रति यह लगाव ही उनकी टीम को विश्व वल्र्ड कप तक पहुंचाया. प्रारंभ में महिला विश्व कप के दर्शक भी कम थे और मीडिया में समाचार भी कम आते थे.

लेकिन 2019 का महिला वल्र्ड कप जो फ्रांस के नौ शहरों में 7 जून से 7 जुलाई तक चला था, उसको देखने रिकार्ड तोड़ दर्शक पुहुंचे. मेजबान फ्रांस ने भी टीवी कवरेज की अभूतपूर्व व्यवस्था की थी. इस टूर्नामेंट में अमरीकी महिला टीम विजेता घोषित हुई. इस तरह 2019 तक आते- आते महिला खिलाड़ी मुखर हुई और उनका आत्मसम्मान भी बढ़ा. अमरिकी महिला खिलाड़ियों ने वेतन के अंतर को लेकर अमरिकी फुटबाॅल संघ पर मुकदमा कर दिया. खेलों के सारे नियम और समय पुरुषों के खेल की तरह ही उनके खेलों में भी है. लेकिन एक पुरुष खिलाड़ी को पिछले विश्व कप में 4.50 करोड़ डालर दिया गया था, तो महिलाओं को पहले से दुगनी होकर भी 3 करोड़ डाॅलर मिले जो पुरुषों से कम ही है. नाईजेरियन महिला खिलाड़ियों को भी इसके लिए विरोध करना पड़ा.

पिछले 30 वर्षों से खेलों में लैंगिक असमानता पर शोध करने वाली शेरी कुक्की के अनुसार महिला खिलाड़ियों को अपनी समस्याओं को व्यक्त करने के लिए फुटबाॅल की लोकप्रियता ने एक मंच दिया. उनमें असुरक्षा का भाव जाता रहा. अमेरिकी टीम की कप्तान मेगन जापिनों डोनाल्ड ट्रंप का समलैंगिकों को लेकर जो रूख थी, उसकी आलोचना करती थी. मैच जीतने के बाद वह ट्रंप से मिलने वाईट हाउंस नहीं गयी और न अपना राष्ट्रीय गान ही गाया. नार्वे की स्टार खिलाड़ी ने तो लैंगिक असमानता के विरोध में अपने टीम को ही छोड़ दिया.

फीफा फुटबाॅल प्रतियोगिताओं को आयोजित करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था के उद्देश्यों में स्पष्ट लिखा है कि स्त्री पुरुष के बीच की असमानता को खेलों के माध्यम से भी दूर किया जा सकता है. वह महिला फुटबाॅल के लिए प्रयत्नशील है और कई स्तरों पर महिलाओं को प्रोत्साहित भी करता है. 2016 में उसने सेनेगल की फातिमा समोरा को अपनी पहली महिला सचिव बनाया. 2022 तक महिलाओं के खेल में लगभग 50 करोड़ डाॅलर निवेश करने का भी भरोसा दिया. 2019 के महिला विश्व कप शुरु होने के एक महीने पहले फीफा ने अफगानिस्तान फुटबाॅल फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि उन्होंने महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण करने का दोषी पाया गया. ईरान की दो लड़कियों को टी सर्ट में फुटबाॅल मैच के दौरान बाहर कर देने का भी विरोध फीफा ने किया. 2026 तक छह करोड़ महिलाओं तक इस खेल को पहुंचाने का वादा फीफा ने किया है.

शेरी कुक्की के अनुसार यदि महिलाओं के विश्व कप का फाईनल खेल रविवार को होगा तो उनको मीडिया कवरेज अधिक मिलेगा. यूनिस्को के अनुसार यदि महिलाओं के खेलों का कद पुरुषों के बराबर होगा तो महिलाओं के खेलने के संबंध में जो पारंपरिक विचार हैं, उनको चुनौती मिलेगी. इससे यह संदेश भी जाता है कि महिलाएं मजबूत एथलेटिक प्रतिस्पर्धी तथा आक्रामक होंगी तो हमारे समाज में महिला के बारे में जो धारणा बनी है, वह बदलेगी, जो एक अच्छी बात होगी.