बिहार आंदोलन-1974 के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वान करनेवाले जेपी के शब्दों में, “वर्तमान राष्ट्रीय और वैश्विक परिदृश्य के मद्देनजर मानना होगा कि यह लोकतंत्र गांधी के नेतृत्व में चली अहिंसक क्रांति या शांतिमय राष्ट्रवादी क्रांति से प्राप्त राजनीतिक स्वतंत्रता का परिणाम है। चूंकि उसका रूप अहिंसक या शांतिमय था, इसलिए उसका एक परिणाम यह है कि आज भी भारत में ‘औपचारिक’ लोकतंत्र कायम है। सारे एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद के चंगुल से स्वतंत्र हुए जितने नये राष्ट्र हैं, उनमें से भारत को छोड़कर ऐसा ‘स्थिर’ लोकतंत्र और कहीं नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि गांधी के अहिंसक, शांतिमय आंदोलन में भारत की जनता को भाग लेने का अवसर मिला।
पाकिस्तान की अधिकांश मुस्लिम जनता - उत्तर-पश्चिम सीमा-प्रांत को छोड़कर - गांधी के आंदोलन में शरीक नहीं हुई थी। इसलिए पाकिस्तान में लोकतंत्र ‘स्थिर’ नहीं है। “यह निर्विवाद है कि जनशक्ति के सहयोग के बिना क्रांति नहीं हो सकती। लेकिन अगर वह रक्त-क्रांति हुई तो उसमें से स्थिर लोकतंत्र निकलेगा, ऐसा कम से कम मेरे अध्ययन में नहीं है। फ्रांस की क्रांति से नेपोलियन बोनापार्ट निकला। रूस की क्रांति से स्टालिन निकला। ऐसा आप प्रायः हर जगह देखेंगे। नेपाल में रक्त-क्रांति हुई थी, इसलिए उसके बाद जो लोकतंत्र कायम हुआ, वह स्थिर नहीं रहा। लेकिन भारत में क्रांति (राज्य-क्रांति) अहिंसक या शांतिपूर्ण रीति से हुई थी, इसलिए उसमें से ऐसे लोकतंत्र की निष्पत्ति हुई जो अभी तक स्थिर है।”
यानी हमारा लोकतंत्र स्थिर, लेकिन संकटग्रस्त है! बीमार है लेकिन उसकी यात्रा जारी है! और, तमाम विकास के बावजूद याचक और असहाय बनी जनता में परिवर्तन और क्रांति के लिए उत्तेजना कायम है।
वर्तमान ‘लोकतंत्र’ में, उसके संचालन-नियंत्रण की ‘व्यवस्था’ में उस ‘सत्य का आग्रह’ नहीं है जिसे गांधी की भाषा में कहें तो, ‘जनता की सरकार’ को ‘जनता ही सरकार’ में बदलने का संकल्प था। हमारे प्रभुवर्ग में इस संकल्प के अभाव और इसके प्रभाव का प्रमाण है - देश का वर्तमान कमजोर और संकटग्रस्त लोकतंत्र। लेकिन सत्य का यही आग्रह परिवर्तन और क्रांति के लिए जनता में कायम उत्तेजना का आधार है।
यहाँ गांधी के करीब सौ साल फले के एक ‘अंतिम’ संदेश’ का जिक्र प्रासंगिक है, जिसे देश के मानस पटल से खरोंच कर निकालने के लिए हमारे देश का प्रभुवर्ग जी-जान से लगा हुआ है। गांधी का यह ‘अनंतिम’ संदेश देश के ‘विवेक’ को जगाये रखने का आह्वान है, “प्रायः यही देखने में आता है कि कोई चीज जिन साधनों से प्राप्त होती है, उन्हीं साधनों से उसे बनाये रखा जाता है। शेर अपने शिकार को बल से पकड़ता है, और बल से ही उसे दबाये रहता है। जो लोग जबरदस्ती कैद किये जाते हैं, वे बल के द्वारा ही वहां रोके जाते हैं। बल के जोर पर जीते हुए देश को राजा बल से ही अपने अधीन रखते हैं।
उसी प्रकार जो प्यार से प्राप्त किया जाता है, वह प्यार से ही रखा जाता है। जब सत्याग्रह तोड़ दिया जाता है तो उससे प्राप्त वस्तु भी नियमित रूप से छूट जाती है। सत्याग्रह से पाई चीज को भौतिक बल से रोके रखने में सफल होना असम्भव है। मान लीजिए, भारतीयों ने सत्याग्रह से जो विजय अर्जित की, उसके फल को भौतिक बल से सम्भालकर रखना चाहते हैं। यह सहारा लेंगे तो एक मिनट में कुचल दिये जायेंगे। यदि हम सत्याग्रह छोड़ देंगे, जैसाकि हमने पहले किया, तो जो पाया है, उसे फिर से गंवा देंगे।”