जो लोग कांके रोड के हथिया गोंदा इलाके में आये होंगे, उन्होंने देखा होगा कि पुरातन काल से एक चट्टान के उपर के एक छोटे चट्टान की शक्ल शिशु हाथी जैसी थी, जिसे आदिवासी समाज श्रद्धा की दृष्टि से देखता था और परंपरागत तरीके से वहां पर विशेष अवसरों पर पूजा करता था. उसे लेकर कई तरह की किंवदंदिता भी हैं. वह चट्टान खुले में था और आस पास गुलैची के वृक्ष थें.

भाजपा सरकार के जमाने में उसके नीचे अरबन हाट बनाने का सिलसिला शुरु हुआ और उस शिशु हाथी के उपर एक गुंबद और फिर उस क्षेत्र की घेराबंदी हो गयी और उस परिसर का नामाकरण हथिया बाबा हो गया. शुरुआती दिनों में उसके गेट पर भगवा लाल झंडे के साथ सरना झंडा भी लहराता था. लेकिन अब सरना झंडा गायब हो चुका है और भगवा झंडे की बहार है.

यह भाजपा और संघ का सांसकृतिक अभिक्रमण है. जाहिर है कि अब वह सरना स्थल नहीं रहा, देवस्थान बन चुका है. प्रकृति पूजक आदिवासियों ने सरना की कल्पना मां के रूप में की और अब एक देव स्थान अवतरित हो गया है.

मजेदार तथ्य यह कि ठीक उसके सामने बालू का जो अवैध कारोबार होता हैं, या इसी तरह के कोई अन्य अवैध करोबार, वहां सरना झंडा फहराया जाता है, जैसे यह सब काम आदिवासी कर रहे हैं. सच्चाई यह है कि इस तरह के कारोबार का सिरमौर कोई गैर आदिवासी माफिया ही होता है. आदिवासी अधिक से अधिक ट्रैक्टर पर माल ढ़ोते हैं और लोडिंग अनलोडिंग करते हैं.

झारखंड की झारखंडी सरकार को इन मामलों में कोई खास दिलचस्पी नहीं. जगह-जगह चौक चौराहों पर बनते छोटे-बड़े मंदिरों से कोई खास एतराज भी नहीं. उन्हें यह नहीं दिखायी देता कि भगवाकरण सिर्फ संस्कृति का नहीं हो रहा, राजनीति का भी हो रहा है, आदिवासी वोटरों का भी हो रहा है.