बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, झारखंड, के एक समारोह में 11 सितंबर को कांके विधायक समरीलाल ने बीएयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए केंद्र से आग्रह करने का सुझाव दिया। मंत्री बादल पत्रलेख ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया! समरीलाल भाजपा के हैं। उनकी मंशा समझी जा सकती है, यह कि विवि केंद्र के अधीन हो जायेगा। या नासमझी में ही उन्हें लगा हो कि इससे इस विवि और राज्य का भला होगा।

मगर मंत्री जी का सहमत होना समझ से परे है। केंद्रीय विश्वविद्यालय होने का नतीजा यह होगा कि यहां विद्यार्थियों के एडमिशन एवं शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं रह जायेगी। राज्य के नियमों के मुताबिक रिजर्वेशन नहीं होगा। किसी भी राज्य के विद्यार्थी यहां दाखिला ले सकेंगे। एससी/एसटी कोटे में भी देश भर के विद्यार्थी आयेंगे। शिक्षक की बहाली भी केंद्रीय प्रावधानों के तहत होगी। इससे राज्य का और यहां के संभावित छात्रों, शिक्षकों व कर्मचारियों का कितना हित सधेगा, विचारणीय है।

बिहार में तीन कृषि विश्वविद्यालय थे। उनमें से एक केंद्रीय विवि बन गया। दो राज्य के अधीन है। झारखंड में एक ही है। बेशक केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से फंड अधिक मिलेगा। लेकिन राज्य की भूमिका समाप्त होने से दाखिले और नियुक्ति में राज्य के अभ्यर्थियों को तो घाटा ही होना है। जेपी आंदोलन के बड़े नेता व समाजकर्मी रामशरण का भी कहना है कि शायद केंद्र से आर्थिक सहायता मिलने और झारखंड सरकार का बोझ कम होने की उम्मीद मे मंत्री जी ने सहमति देदी है। कर्मचारियों की भी सुविधा बढ सकती है। पर झारखंड सरकार का नियंत्रण तो खत्म हो ही जायेगा।

दोनों सरकारों के बीच समझौता किन शर्तों पर होता है, बहुत कुछ उसपर निर्भर करेगा। पूसा मे भी केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय है। वहाँ क्या स्थिति है इसकी जानकारी जुटानी चाहिए।