आज हर कोई शिक्षित होना चाहता है. जितना संभव हो सभी शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश भी करते है.ं शिक्षा सभी का संविधान प्रदत्त अधिकार भी है. आज हर कोई अपने बच्चे को अच्छे से अच्छे विद्यालय में पढ़ाने का प्रयास करता है. जो आर्थिक रूप से सबल हैं, वैसे माता-पिता सफल हो जाते हैं, परंतु कुछ माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ाना तो चाहते है,ं पर अड़चनें ऐसी होती है कि वह अपने बच्चे को अशिक्षित ही छोड़ देते हैं. कुछ बच्चे पढ़ते हैं, वे अधिकतर सरकारी स्कूल और कॉलेजों में, जहां पढ़ाई का कोई स्तर नहीं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है यह तथ्य कि आज हर कोई सरकारी नौकरी तो करना चाहता है, सरकारी स्कूल का शिक्षक भी बनना चाहता है, लेकिन सरकारी स्कूलों में अपने बच्चे को पढ़ाना नहीं चाहता, क्योंकि वह जानता है कि उन स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती. हालांकि इसके लिए मूल रूप से वही जिम्मेदार होता है.
हमारे देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है- अमीर बच्चों के लिए अलग और गरीब बच्चों के लिए अलग. सरकारी स्कूल गरीब बच्चों के लिए और निजी स्कूल अमीर बच्चों के लिए. निजी क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज होते हंै, जिसमें अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता हैं जो जीवन में सफल होने के लिए आज जरूरी माना जाने लगा है. परंतु इन स्कूल व कॉलेजों में पढ़ने के लिए बड़ी-बड़ी फीस अदा करनी पड़ती है. इसलिए इन स्कूलों में बस अमीर घरों के बच्चे ही ज्यादा पढ़ते हैं. सामान्यतः इन स्कूल व कॉलेजों में पढ़ाई बेहतर होती है. बच्चों को समय-समय पर पढ़ाई के लिए अभिप्रेरित किया जाता है और रोजाना क्लास होते हंै. वहां समय- समय में परीक्षाएं व टेस्ट भी ली जाती है, जिससे बच्चों की पढ़ाई में मजबूती बनी रहती है. और वहां पढ़ कर बच्चों को इतना ज्ञान प्राप्त हो जाता है कि वे अपने जीवन में कुछ करने के काबिल बन जाते हैं.
वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का काम सरकार के माध्यम से चलता है. वहां पर मुफ्त में पढ़ाई की सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हंै, जैसे मुफ्त में पढ़ाई, किताबंे, खाना, कंप्यूटर व स्कॉलरशिप आदि. पर अफसोस मुफ्त की पढ़ाई सोच कर वहां के शिक्षक व शिक्षिकाएं मन से बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं. सारी सुविधा होने के बावजूद भी बच्चे को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते हैं. बच्चे को तकनीकी जानकारी व अंग्रेजी भाषा से भी वंचित रखते हैं. बच्चे इस योग्य बन ही नहीं पाते कि आगे आने वाली प्रतियोगी परिक्षाओं में निजी स्कूलों के बच्चों से मुकाबला कर पायें. वे जीवन के दौर में पीछे रह जाते हैं, क्योंकि उनमें स्कूली पढ़ाई की मजबूती नहीं रहती है.
इस तथ्य को जानने-समझने के बाद अब सभी माता-पिता अपने बच्चे को अच्छे से अच्छे निजी स्कूल व कॉलेज में पढ़ाना चाहते हैं. लेकिन वहां की फीस ऐसी की वे बहुत दिनों तक उन स्कूलों का खर्च वहन नहीं कर पाते. दूसरी तरफ सरकारी स्कूल व कॉलेज को सभी लोग अब नजरअंदाज करते जा रहे हैं, क्योंकि वहां की पढ़ाई की व्यवस्था ठीक नहीं. अगर वहां की व्यवस्था ठीक होती तो आज गरीब माता-पिता को आर्थिक संकट से गुजरना ही नहीं पड़ता. उन्हें अपने बच्चों के लिए निजी स्कूल की फीस की चिंता ही नहीं होती.
यह कैसा विरोधाभास है कि जो बच्चे कभी सरकारी स्कूलों के गेट पर भी नहीं जाते, उन्हें बाद में सरकारी स्कूल की नौकरी चाहिए और जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, उनमें से अधिकतर सरकारी नौकरियों के लायक ही नहीं रहते, क्योंकि वे प्रतियोगिताओं में नहीं टिकते. सरकारी स्कूल व कॉलेज गरीब बच्चों के लिए होती है, पर जो बच्चा सरकारी स्कूल और कॉलेज में पढ़ता है वह बाद में कहीं मजदूरी करता नजर आता है.
अब निजी स्कूल के लिए फीस नहीं और सरकारी स्कूल-कॉलेजों में स्तरीय पढ़ाई नहीं, आखिर गरीब तबके के बच्चे क्या करें? सरकारी स्कूल और कॉलेज में पढ़ कर उन्हें न अद्यतन ज्ञान मिलता है, न नौकरी मिल नहीं पाती है. और अंत में उसे क्या मिलता है? किसी निजी कंपनी में छोटी मोटी नौकरी, जहां न उचित मजदूरी मिलती है और न मानवोचित व्यवहार. और वह भी नहीं मिला तो माता-पिता की तरह जीवन यापन के लिए 8 घंटा मजदूर खटेगा. यही समस्या है जिसके कारण अंत में गरीब बच्चा पढ़ना ही छोड़ देता है. जब तक स्थितियां नहीं सुधरेगी तब तक गरीब के बच्चे ऐसे ही मजदूरी करते नजर आएंगे.
यह बात समझ में नहीं आती कि जब सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए, तो क्यों न वे अपना काम ईमानदारी और निष्ठा से कर सरकारी स्कूलों को ही इस लायक बना देते कि वे निजी विद्यालयों से बेहतर शिक्षा अपने बच्चों को दें. लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता. अब तो सरकार निजीकरण की ओर ही बढ़ रही है और लोग भी सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए सरकार पर दबाव देने के बजाय निजी विद्यालयों की तरफ भाग रहे हैं.
पूरी परिस्थितियां ऐसी जो गरीबो के खिलाफ गहरी साजिश प्रतीत होती है.