आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कोचिंग संस्थाएं अनिवार्य अंग बन गयी हैं. प्रारंभ में फिटजी, आकाश, नारायणा जैसी संस्थाएं थीं और जो अभी भी हैं, यह दावा करती हैं कि वे बारहवीं पास छात्रों को उच्चतर तकनीकि शिक्षा के प्रवेश के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता दिलवायेंगी. ये कोचिंग संस्थाएं भी उन्हीं छात्रों को लेती हैं जो बारहवीं की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये हों और उनके द्वारा ली गयी प्रवेश परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए हों. इसके बाद प्रत्येक छात्र से एक मोटी रकम फीस के रूप में वसूलते हैं. एक वर्ष या दो वर्ष की पढ़ाई होती है. धनी घर के बच्चे तो इन संस्थाओं में आसानी से जा सकते हैं, लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे, जिनके माता पिता अपने सीमित साधनों से ही बच्चों को डाक्टर या इंजीनियर बनाने का सपना देखते हैं, कर्ज लेकर ही अपने बच्चों को इन संस्थानों में भेजना चाहते हैं. ये संस्थाएं मुख्यतः महानगरों में उपलब्ध हैं, जहां से छात्र अपने माता पिता के सपनों का बोझ उठाये हुए अपने सीमित साधनों को लेकर महानगर की तंग गलियों की उन छोटी-छोटी कोठरियों में पहुंच जाते हैं, जहां हवा और रौशनी भी पर्याप्त नहीं मिलती. अंततोगत्वा सरकारी इंजीनियरिंग या मेडिकल कालेज में प्रवेश मिल पाना कोचिंग सेंटर पर नहीं बल्कि छात्र की बुद्धि, कुशलता और श्रम पर ही निर्भर है.

इसके अलावा कोटा शहर के कोचिंग संस्थान भी छात्रों के आकर्षण के केंद्र हैं. जो छात्र यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं, उनके लिए उनके ही शहर में कई कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो गये हैं जो छात्रों को बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं. आईआईटी तथा नीट की परीक्षा के बाद सफल छात्रों के आल इंडिया रैंक दिखाते हुए ये संस्थाएं अखबार में बड़े-बड़े विज्ञापन देती हैं. इनमें उन योग्य शिक्षकों के नाम भी होते हैं, जिन्होंने छात्रों की सफलता की गारंटी ली होती है. अब तीसरे स्थान पर उन कोचिंग संस्थाओं का नाम आता है जो यह दावा करते हैं कि आपके बच्चों को प्राईमरी स्तर से ही पढ़ायेंगे और एक होनहार छात्र बनायेंगे जो बारहवीं तक आते- आते हर प्रतियोगिता में सफल होने वाला छात्र बन जायेगा. ऐसी संस्थाएं मुख्य रूप से आनलाईन उपलब्ध हैं. जैसे- बैजू क्लासेज, टाॅपर, क्लास प्लस आदि आदि असंख्य. ये भी मोटी रकम लेकर ही आपके बच्चों को प्रतिभावान बनाते हैं.

इन कोचिंग संस्थानों के जाल में फंसे हम माता-पिता क्या कभी यह सोचते हैं कि सरकारी या निजी स्कूलों में होता क्या है? वहां पढ़ने वाला छात्र बारहवीं पास करने के बाद भी प्रतियोगिता में बैठने और सफल होने लायक क्यों नहीं बन पाता? यह पढ़ाने वाले शिक्षकों की अयोग्यता है या पढ़ने वाले विद्यार्थी की. देखा जाता है कि यही विद्यार्थी कोचिंग संस्थान में पढ़ कर सफल भी हो जाता है. कहा तो यही जाता है कि प्रतियोगिता परीक्षा में बारहवीं के स्तर तक के ही प्रश्न पूछे जाते हैं. केवल फार्मेट अलग रहता है. तब यह फार्मेट और विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का अभ्यास स्कूलों में ही क्यो नहीं कराया जाता है. दूसरी बात यह भी है कि यदि बच्चों के लिए स्कूल की पढ़ाई पर्याप्त नहीं है और कोचिंग सेंटर जाना ही है तो शुरु से ही कोचिंग सेंटर में ही उन्हें क्यों न डाल दिया जाये. अब तो प्रथम कक्षा से ही कोचिंग उपलब्ध है.

वास्तविक बात तो यह है कि हमारी सारी शिक्षा नीति और शिक्षा व्यवस्था ही दोष पूर्ण है. शिक्षा का ज्ञान से कोई संबंध नहीं रह गया है. यह पूरी तरह व्यावसायिक हो चुका है. जितना पैसा खर्च करोगे, उतनी अच्छी शिक्षा और उतनी ही अच्छी नौकरी. दोहरी शिक्षा प्रणाली के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों के लिए कोचिंग सेंटर की जरूरत नहीं पड़ती है. वे कोचिंग सेंटरों का खर्च वहन नहीं कर सकते. पैसे वालों और मध्यम श्रेणी के लोग ही कोचिंग सेंटरों के खर्चे वहन कर पाते हैं.

सरकार की शिक्षा नीति ऐसी है कि इसमें गरीब बच्चों की मेहनत का कोई महत्व नहीं है. निजी स्कूल तथा कोचिंग सेंटर को सरकारी संरक्षण प्राप्त है और उनके व्यावसायिक हितों की रक्षा इन्हीं सरकारी नीतियों से होती है. प्रतियोगिता परीक्षाओं का हौवा खड़ा किया जाता है जिसका समाधान कोचिंग सेंटर में ही होता है. अपवाद ही सही हमारे सामने ऐसे छात्रों का भी उदाहरण है जो कोचिंग सेंटर गये बिना इन प्रतियोगिताओं में सफल हुए हैं और अच्छी नौकरियों में गये हैं. बस जरूरत है तो बुद्धि की और दृढ़ इच्छा की. कोचिंग संस्थाओं का बहुत बड़ा तंत्र है जो केवल भ्रम फैलाता है जिसको हमारे शिक्षण संस्थाएं और सरकारें भरपूर सहयोग करती हैं.