महाकवि निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ एक ओजस्वी एवं शब्दों के चयन की दृष्टि से एक अत्यंत शक्तिशाली कविता है. इस कविता में राम को राम-रावण युद्ध, हताशा और जय-पराजय को लेकर उत्पंन्न संशय के बीच दुर्गा की अराधना करते दिखाया गया है. घनघोर युद्ध के बाद भी रावण को पराजित होते न देख राम शक्ति की पूजा करने का निर्णय लेते हैं. और पूजा के लिए कमल फूलों को मंगवाते हैं. लेकिन दुर्गा उनकी भक्ति की परीक्षा के लिए कमल का अंतिम फूल गायब कर देती हैं. राम हाथ बढ़ाते हैं, लेकिन कमल का अंतिम फूल नदारत. निराश राम व्यथित हो उठते हैं. उन्हें लगता है कि उनकी अराधना अधूरी रही. अब वे रावण को पराजित नहीं कर सकेंगे. उनके कैद में रखी गयी प्रिया सीता को मुक्त नहीं करा सकेंगे.
अचानक उनके ध्यान में आता है कि उनकी मां उनके नेत्रों की तुलना कमल से करती थीं. उन्हें कमल नयन कहती थी. तो, उन्होंने अपना एक आंख दुर्गा के चरणों में चढ़ाने का निर्णय लेते हैं. छुरा निकाल कर वे आंख निकालने का प्रयास करते ही हैं कि दुर्गा अवतरित हो कर उनका हाथ पकड़ लेती है - ‘देखा राम ने - सामने श्री दुर्गा भास्वर’.
अब इस कविता से यह भ्रम उत्पन्न होता है कि राम के युग में दुर्गा का अवतरण हो चुका था. लेकिन इस बात को देख कर आश्चर्य होता है कि न तो ‘बाल्मीकि रामायण’ में और न तुलसीकृत ‘राम चरित मानस मे’ युद्ध भूमि में राम द्वारा दुर्गा की अराधना का प्रसंग है. हो सकता है किसी अन्य रामायण से निराला ने राम के शक्ति पूजा का प्रसंग उठाया होगा.
मैं दुर्गा की मूर्ति की भव्यता से अभिभूत हो जाता हूं. मेला भी घूमता हूं और दुर्गा पूजा के दौरान सुबह जो महालया के स्वर हवा में तैरते हैं, वह भी अच्छा लगता है. लेकिन जो सवाल मेरे जेहन में उठता है, वह तो मैं रखूंगा और जोखम भी लूंगा आपके क्रोध का.
- क्या यह सच नहीं कि बंगाल में जन्म लेने वाली इस दुर्गा पूजा की शुरुआत बंगाल के सामंतों, जमींदारों और राजाओं ने की थी?
- क्या यह सत्य नहीं कि आदिवासी जनता का शोषण उत्पीड़न करने वाले इन राजाओं, सामंतों का अंग्रेजों से बहुत दोस्ताना रिश्ता था?
- क्या यह सत्य नहीं कि इन पूजा-उत्सवों में अंग्रेज सेना के अधिकारी शिरकत करते थे और हमारे सामंत उनका स्वागत, सम्मान?
- क्या यह वही समय नहीं था जब आदिवासीबहुल इलाके में पहाड़िया विद्रोह और सिधो कान्हू का हूल हुआ था और उसे कुचलने जब अंग्रेज कप्तान के नेतृत्व में सेना ने वीरभूम में प्रवेश किया, तो उन्हीं हिंदू राजाओ, जमींदारों, सामंतों ने फूलों और अक्षत से उनका स्वागत किया था. क्योंकि वे आदिवासियों के उत्पीड़क थे और अंग्रेज उनके मददगार.
तब यदि हम उस पूरे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति दुर्गा पूजा को मानें तो इसमें गलत क्या है? हमें यह भी याद रखना चाहिये कि बंगाल से ही निकल कर दुर्गा पूजा देश के अन्य हिस्सों में फैली है. अब आप उसकी मिथकीय व्याख्याकर लें, लेकिन इन तथ्यों को ध्यान में रखें.