उज्जवल भारत के नाम पर हमारी सरकार गरीबों के ऊपर कई तरह से महंगाई का बोझ डाले जा रही हैं. जिसके बोझ तले अपने देश में गरीबों की आर्थिक स्थिति तेजी से कमजोर होती जा रही है. उसे सुलझाना बहुत जरूरी है. और सुलझेगा तभी जब इसके बारे में लोग सोचेंगे, समझेंगे, और सचेतन ढंग से अपनी स्थिति के खिलाफ संघर्ष करेंगे. यदि सूत्र रूप में कहें तो गरीबों को सब्सिडी, कर्ज या कर्ज माफी नहीं चाहिए, चाहिए काम और काम का उचित दाम.
उदाहरण के लिए, सरकार ने गरीब महिलाओं को शुरुआत में गैस का चूल्हा दिया. सस्ते दर पर गैस भी देने का वादा किया. सब्सिडी उपलब्ध कराई. इससे गरीब महिलाओं को अब दूर-दूर धूप व बरसात में लकड़ी व पता लाने के लिए जंगल जाना नहीं पड़ता है. उसे अब चूल्हा के सामने बैठकर धुआं बर्दाश्त कर खाना व सब्जी बनाना नहीं पड़ता है. इससे उनका समय भी बचा और काम में सहूलियत भी हुई.
लेकिन देखते-देखते गैस की कीमत आसमान छूने लगा. उनकी यह हैसियत ही नहीं कि वह गैस का सिलेंडर खरीद सके. उनका जीवन एक बार फिर उथल-पुथल हो गया है. हर वक्त यह चिंता सताती रहती है कि खाना अब कैसे बनाये? हुआ यह भी है कि सरकार ने गैस चूल्हा और सस्ता सिलेंडर देने का वादा तो किया, साथ ही गरीबों से जंगल छीन लिया. जंगल से सूखी लकड़ी, पत्ता और मौसमी साग वगैरह भी लाने पर तरह-तरह का प्रतिबंध लगाया जा रहा है.
इसी तरह सरकार ने सभी गरीबों के लिए आवास योजना बनायी. घोषणा हुई कि सभी गरीब महिलाओं के नाम पर आवास दिया जाएगा. जिनके पास आवास नहीं था, उन्होंने आवास के लिए फार्म भरा और कुछ दिन बाद जिन महिलाओं ने फार्म भरा था, उनका लिस्ट में नाम भी आ गया. सभी ने आवास बनाना शुरू कर दिया. लेकिन उसके लिए पैसा तब आता था, जब आवास थोड़ा-थोड़ा बन जाता है. अब आवास बनाने की शुरुआत करने के लिए महिलाओं को लोन लेना पड़ जाता है. और लोन आसानी से मिल भी जाता है, भले उन पर सूद की दर ज्यादा हो. और घर के सपने की वजह से महिलाएं लोन में फंस जाती है. सरकार से मिलने वाली मदद देर सबेर आती है. उसमें कमीशनखोरी भी होती है. इधर लोन चुकाने के लिए महिलाओं को तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं. वे हर वक्त तनाव से धिरी रहती हैं.
इस तरह की तथाकथित सरकारी योजनाओं के कारण आज सभी गरीब महिलाओं को घोर आर्थिक संकट से साथ गुजारना पड़ रहा है. एक तरफ घर की सारी समस्याएं महिलाओं पर होती ही है, दूसरी और हमारी सरकार भी अपनी योजनाओं का सारा बोझ महिलाओं पर ही डाल रही है. सबसे बड़ा संकट तो महंगाई की मार है. उस पर नई उम्मीदों का बोझ. क्योंकि मजदूरी तो बढ़ नहीं रही. दरअसल, सरकार की मंशा तो यही दिखती है कि गरीबों को सब्जबाग दिखा कर उससे उसका सब कुछ छीन लों. यदि सरकार गरीबों से उनके जीवन का संसाधन- जल, जंगल, जमीन- न छीने, उसके श्रम का उचित मूल्य भर सुनिश्चित करे तो न छूट की जरूरत रहेगी और न कर्ज की. आदमी अपने दम पर जीवन बसर कर लेगा.