जेपी जितने महान थे, उतने ही सरल. और बाल सुलभ उत्सुकता उनके व्यक्ति की एक खास पहचान थी. 74 के बिहार आंदोलन के दौरान सार्वजनिक मंचों से उनका भाषण सुनने का अवसर कई बार मिला. कठिन से कठिन विषयों पर सहजता से बोलना और स्रोताओं से संवाद स्थापित कर लेना उनकी खासियत थी. उनका व्यक्ति मोहक था और इसलिए प्रख्यात समाजवादी लोहिया तक मानते थे कि उनकी बात भले लोग न सुने, जेपी की बात लोग सुनेंगे और इसलिए सक्रिय राजनीति छोड़ भूदान आंदोलन में उनके शामिल हो जाने से लोहिया परेशान भी हुए थे.

खैर, बहुत कम अवसरों पर ही नजदीक से देखने का मौका मिला. बिहार आंदोलन के दौरान पटना के आर्ट कालेज के छात्रों के साथ मिल कर हम लोगों ने एक चित्र प्रदर्शनी तैयार की थी. बिहार भर के चित्रकारों ने उसमें योगदान दिया था और बहुत सारे चित्र हमलोगों ने मिल कर तेतरवे साहब के घर पर बैठ कर बनाया था. उसमें हेमंत भी शामिल थे. उस चित्र की प्रदर्शन पटना के गांधी मैदान में, गया में और बोकारो सहित कई शहरों में हुआ था. और उसमें जेपी आये थे. शोषण और विषमता को उकेरने वाले हरेक चित्र को देखा था और अंत में टिप्पणी भी की थी.

यहां मैं उनसे एक छोटी सी मुलाकात का जिक्र करना चाहता हूं. इत्तफाक से वह मेरी डायरी में दर्ज है. गुरुवार 20 अप्रैल, 1978 का दिन. प्रियदर्शी के साथ मैं कदमकुआं स्थित उनके आवास पर मिलने गया था. उनके सचिव सच्चिदा बाबू ने हमें सिर्फ दस मिनट का समय दिया था. मुझे इस बात का मलाल हमेशा रहता था कि छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का गठन जेपी ने ही किया था और वे उसके महानायक थे. उनकी प्रेरणा से ही वाहिनी के लागों ने एमरजंसी के बाद बिहार के कई ग्रामीण इलाकों को सघन क्षेत्र बना कर काम करना शुरु किया था. बोध गया का भूमि संघर्ष उनमें से एक प्रमुख क्षेत्र था. पंचमनिया, मधुवनी आदि इलाकों में उनकी ही प्रेरणा से काम शुरु हुआ था ओड़िसा के गंधमार्दव में भक्त चरण दास के नेतृत्व में जो आंदोलन शुरु हुआ उसके प्रेरक जेपी ही थे. मैंने भी बाद में जो आदिवासीबहुल पोटका प्रखंड में थोड़ा बहुत काम किया तो जेपी के ही आह्वान पर कि अब जाईये और ग्रामीण इलाकों में काम कीजिये.

और अपने ही सेना नायक से मिलने में इतनी अड़चने. बाद में तो उम्र भी वजह बन गयी. खैर, उस दिन जब हम जेपी के आवास पर पहुंचे तो वहां पहले से अनिल प्रकाश और महेंद्र भाई मौजूद थे. चरखा समिति के उपर के बरामदे में जेपी बैठे थे. अनिल प्रकाश ने उन्हें गया आंदोलन की रिपोर्ट संक्षेप में दी. मुझे याद है, जेपी ने ‘आक्रामकता’ शब्द पर कुछ पूछा. अनिल प्रकाश के यह कहने पर कि अब हम ‘पचमनिया चलो’, ‘मधुबनी चलो’ का नारा देंगे, उन्होंने पूछा - ‘इसका क्या अर्थ’. वे बड़ी उत्सुकता से हमारी बात सुन रहे थे. लेकिन सच्चिदा बाबू बार-बार महेंद्र भाई - महेंद्र नारायण कर्ण, जो अब नहीं रहे- से उठने के लिए कह रहे थे. आखिरकार आजीज आकर हम कुर्सी छोड़ उठ खड़े हुए. एक आदमी उसी बीच दाढ़ी बनाने का सामान सामने आ कर जेपी के सामने रख गया.

यह उनका अंतिम व्यक्तिगत दर्शन था.