‘शोपीस न्यूटन, गैलीलियो, आइंस्टाइन आदि महान वैज्ञानिकों की विरासत को संभालने वाले महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने अंतरिक्ष के रहस्यों से पर्दा हटाने में योगदान दिया। ठोस वैज्ञानिक सिद्धांतों से जिंदगी को समझने के सरल तरीकों को सामने रखा। उन्होंने उन सवालों को हल करने की सफल कोशिश की, जो किसी भी जागरुक इंसान के दिमाग में आते हैं।

ऐसा उन्होंने तब किया, जब वे न बोल सकते थे और न चल-फिर सकते थे। दुरुस्त दिमाग के अलावा दो अंगुलियों के अलावा शरीर के बाहरी अंग काम ही नहीं करते थे। लेकिन इस हाल में वे कैसे विलक्षण सिद्धांतों को खोज पाए, जबकि डॉक्टरों ने उनकी दो साल में मौत का ऐलान किया था और वे उस ऐलान के बाद दशकों जीकर दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे?

जब लाइलाज बीमारी मोटर न्यूरॉन का पता चल गया, तब हॉकिंग को ये भी पता चल गया कि वह सिर्फ दो साल जी सकेंगे, उस वक्तहॉकिंग दुनिया से निराश हो चुके थे। तब हॉकिंग की जिंदगी में जेन वाइल्ड आईं। खूबसूरत जेन ने उनको जिंदगी में लौटने का जज्बा पैदा किया। मरणासन्न हॉकिंग की जीवनसाथी बनकर उन्हें जिंदगी जीने का गुर सिखाया।

1996 में स्टीफन हॉकिंग की किताब ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम‘ प्रकाशित हुई थी। तब भारत के मीडिया में उनकी पत्नी जेन का नाम इस खबर के साथ सामने आया कि उन दोनों के बीच तलाकनामे को 1995 में अंतिम रूप मिला। सम्भवतः यह भी छपा कि स्टीफन ने ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ की भूमिका लिखते समय स्वीकार किया कि उनकी पत्नी जेन और बच्चों रॉबर्ट, लूसी व टिम की मदद, सहयोग और प्रेरणा के बलबूते साधारण जीवन जीया और ऊंचा करियर बनाया, उनके बगैर ये संभव नहीं था। उस किताब का हिंदी अनुवाद दृ ‘समय का संक्षिप्त इतिहास‘ - बीस साल पहले (2001-02) प्रकाशित हुआ। उसमें ‘आभार‘ शीर्षक से हॉकिंग का वक्तव्य दर्ज है। उसमें उन्होंने अपने प्रेरणास्रोत वैज्ञानिक सहकर्मी, सहयोगी, सचिव, सम्पादक आदि-आदि दो दर्जन से अधिक नामों का उल्लेख किया। उसका अंतिम वाक्य इस प्रकार है(हिंदी शब्दानुवाद)दृ ‘‘उन्होंने तथा मेरी परिचारिकाओं, मेरे सहकर्मियों, मित्रों व ‘परिवार के सदस्यों‘ ने मेरी अपंगता के बावजूद मेरे शोध कार्य को जारी रखने तथा अपना जीवन प्रफुल्लतापूर्वक जीने के लिए मुझे सामर्थ्य प्रदान की है।‘‘

कुल मिलाकर उसमें उल्लिखित नामों में से किसी नाम के पहले ‘पत्नी‘ या ‘बच्चे‘ संज्ञा-विशेषण नहीं है।

पांच साल पहले (2014) स्टीफन पर फिल्म बनी - ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’। वह फिल्म भारत में कितने लोगों ने देखा, मालूम नहीं। मुझे देखने का अवसर नहीं मिला। उसके बारे में मैंने सिर्फ मीडिया में प्रकाशित-प्रसारित समाचार-विचार और आलोचना-प्रत्यालोचनाएं पढ़ी। तब जाना कि फिल्म रिलीज के वक्त जेन वाइल्ड ने ‘अपनी बात‘ बतानी चाही, लेकिन नहीं सुनी गयी। उनकी ‘मन की बात‘ को फिल्म में नहीं उकेरा गया, उसे स्टीफन की महानता के आवरण में ढक दिया गया। फिल्म में एक प्रेम कहानी दिखाई गयी, और उसमें वाइल्ड-हॉकिंग के संबंध टूटने की ऐसी आवाज सुनाई गई, जिस पर दर्शक ताली बजाएं!

1962 में स्टीफन से जेन वाइल्ड का परिचय उनकी एक दोस्त डायना किंग ने कराया, हालांकि जेन पहले से स्टीफन को जानती थीं, क्योंकि दोनों छोटी क्लास में साथ पढ़ चुके थे। डायना ने स्टीफन की बीमारी के बारे में भी बताया। तब से स्टीफन और जेन ने एक-दूसरे को नये सिरे से पहचानना शुरू किया। एक पार्टी में उनकी फिर मुलाकात हुई। स्टीफन की बर्थ डे पार्टी हुई, तो उसमें वाइल्ड भी गईं।उस समय स्टीफन को नहीं समझ में आ रहा था कि आगे क्या होगा?वह बीमारी के मानसिक आघात में डूबने से खुद को बचाने की कोशिश भी कर रहे थे। उसी समय जेन मिली। दोनों ने साथ सफर किया। डिनर किया।पिक्चर देखी। डेट पर जाने का प्रोग्राम भी बनाया।

जेन के आने से स्टीफन की जिंदगी में बहार आ गई। जेन ने उन्हें समझाया कि “भविष्य जैसी कोई चीज नहीं होती है, आप अपने वर्तमान को बेहतर से जीने की कोशिश कीजिए। एक दिन जब आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पता चलेगा कि आपने जो जिंदगी गुजारी है वह निहायत खूबसूरत थी।”

कैंब्रिज के मई उत्सव में जाने के लिए स्टीफन जब वाइल्ड को लेने पहुंचे, तो जेन उनकी शारीरिक हालत देखकर परेशान हो उठीं। जेन ने महसूस किया कि स्टीफन के जीने की तमन्ना खत्म हो चुकी है।

वाइल्ड ने स्टीफन की देखभाल को अपने जीवन का मकसद बना लिया। उन्होंने स्टीफन की बीमारी के बारे में काफी जानने की कोशिश की, फिर ये सोचकर तसल्ली कर ली कि ज्यादा जानकारी से मानसिक तनाव बढ़ जाएगा! जिंदगी के बारे में ज्यादा सोचने से कोई फायदा नहीं, क्योंकि हृष्ट-पुष्ट इंसान के जिंदा रहने की भी कोई गारंटी नहीं होती।

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