स्टीफन ने मौका पाकर जेन के पिता जेन वाइल्ड से हाथ मांग लिया। रिश्ता पक्का होने के बाद स्टीफन के पिता फ्रेंक हॉकिंग ने जेन को आगाह किया ‘स्टीफन’ की शारीरिक स्थिति अच्छी नहीं है, हो सकता है कि ज्यादा लंबे समय तक न रहे, इसलिए जल्द मातृत्व सुख के बारे में सोचना!
जेन ने शादी के रिश्ते को गंभीरता से लिया। यह भी सोचा कि परमाणु हथियारों के इस युग में न जाने कब संसार खत्म हो जाए? ऐसे में लंबे जीवन के बारे में क्या सोचना? बस, खुशी-खुशी जीना चाहिए।
जेन के कॉलेज वेस्टफील्ड में अंडर ग्रेजुएट को शादी की अनुमति नहीं थी। सो उन्होंने शादी की अनुमति इस आधार पर भागदौड़ करके ली कि हॉकिंग का जीवन लंबा नहीं है और स्नातक होने तक इंतजार नहीं किया जा सकता। इसके चलते शादी के बाद उन्हें कैंपस के बाहर रहना पड़ा। बीमार पति के साथ रहने के लिए मकान की समस्या से भी जूझना पड़ा। लेकिन उन्होंने धैर्य और शांति के साथ पूरी मेहनत और कुशलता के साथ शादी के बाद सप्ताह भर में घर और घर की व्यवस्था की।
उन्होंने लंदन में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पति हॉकिंग की पीएचडी को टाइप भी करती रहीं। शुक्रवार से सोमवार तक कैंब्रिज में और पढ़ाई के लिए लंदन में किराए के घर पर रहती थीं। स्टीफन को 1966 में पीएचडी की डिग्री मिली। इधर जेन ने भी अच्छे अंकों से परीक्षा पास की, उन्होंने भी पीएचडी करने का विचार किया और ऐसा विषय चुना जिसमें ज्यादा भागदौड़ न करना पड़े। लंदन में दाखिला भी लिया, लेकिन गर्भवती हो जाने और स्टीफन की हालत और खराब होने से पीएचडी स्थगित कर दी।
28 मई,1967 को बेटे रॉबर्ट का जन्म हुआ। डॉक्टरों ने स्टीफन की दो साल की जिंदगी का जो एलान किया था, वह अवधि भी उसी समय समाप्त हो रही थी। बेटे की खुशी से स्टीफन के जीने की लालसा और ताकत बढ़ गई और डॉक्टर हैरान हुए। रिसर्च भी रंग लाने लगी, स्टीफन की ख्याति बढ़ने लगी। दो साल के अंदर उनका शरीर व्हीलचेयर पर आ गया। उधर जेन अपनी थीसिस पूरी करने के लिए संघर्ष कर रही थीं। वर्ष 1970 में वे फिर गर्भवती हो गईं और फिर बेटी लूसी का जन्म हुआ। दो छोटे बच्चे और बीमार पति की देखभाल -इस मुश्किल के बावजूद जेन पढ़ाई में लगी रही।
वर्ष 1974 तक स्टीफन खाना, सोना, बिस्तर पर जाना आदि सभी काम खुद कर सकते थे, लेकिन बाद में यह काम मुश्किल हो गये। कुछ समय तक जेन उनके कपड़े बदलने समेत सभी काम करती रहीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ जेन के लिए स्टीफन के सब काम करना कठिन हो गया। सो उन्होंने स्टीफन के एक शोध सहायक को घर पर ही रख लिया। उसका काम था स्टीफन को शारीरिक मदद देना। स्टीफन अपने बच्चों के साथ खेल नहीं सकते थे, इसलिए जेन ही उस वक्त पिता की भूमिका निभाती थीं। उन्होंने ही बच्चों को क्रिकेट खेलना सिखाया। जेन कहती थीं- ‘दूसरी महिलाओं के पति अगर घर के काम में हाथ नहीं बंटाते, तो उन्हें गुस्सा आता है, लेकिन मुझे गुस्सा नहीं आता, क्योंकि मैं हकीकत जानती हूं।’
कुल मिला कर हालात ऐसे हो गए कि इधर जेन का व्यक्तित्व खो-सा गया, और उधर स्टीफन की ख्याति आसमान छूने लगी। पत्रकारों ने जेन को कोई अहमियत नहीं दी। उलटे, अप्रत्यक्ष तौर पर, यही एहसास कराया कि बुद्धि में वे स्टीफन के आगे कुछ नहीं! जेन ने खुद एक मौके पर कहा - “मेरे विचार जानने में किसी को दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि पति के विचारों की तुलना में मेरे विचार महत्वपूर्ण नहीं थे। पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने अनदेखी की। ऐसा लगा, जैसे मेरी कोई हस्ती ही नहीं रह गई, जबकि पुस्तक के लिखने की प्रेरणा मैंने ही स्टीफन को दी, लेकिन पुस्तक लोकप्रिय होते ही मेरी हालत दयनीय हो गई।”
एकाध जगह जेन के बारे में पूछे जाने पर स्टीफन ने जेन की सराहना की, लेकिन अपनी सफलता में कभी हिस्सेदार नहीं बनाया। ऊंचाई पर पहुंचने पर सभी साधन मुहैया हो गये, तो जेन दूर छिंटक गईं!
जीवन के 25 साल साथ गुजारने के बाद स्टीफन ने नर्स एलन का साथ पकड़ा, जो तीन साल में ही छूट गया। जेन ने हमजोली रहे दोस्त जोनाथन को बाकी जिंदगी का हमसफर बना लिया। जगजाहिर किए बगैर दोनों एक दूसरे से अलग हो गये! 2014 में ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ की रिलीज के समय वाइल्ड ने मन की बेचैनी को रखने की कोशिश की। उन्होंने कहा भी कि फिल्म ने युगल जीवन और परिवार के बहुत से तथ्यों पर पर्दा डाल दिया। लंदन में हेनले लिटरेरी फेस्टिवल में कहा- ‘कभी फिल्मों पर विश्वास मत कीजिए।’
बताया जाता है कि यह फिल्म जेन हॉकिंग की ‘ट्रैवलिंग टू इनफिनिटी- माय लाइफ विद स्टीफन’ पर आधारित थी। फिल्म के लिहाज से कई बदलाव कर दिए गए, इससे वास्तविकता खो गई। दर्जनों यात्राओं के समय जेन का गंभीर रूप से विकलांग स्टीफन के साथ एक परिवार के लिए पैकिंग, आना-जाना, ड्राइविंग, सामान्य दिनचर्या के हिसाब से देखभाल, ये किसी को महसूस नहीं हो सका! एक महानता को अमर करने के लिए जेन महज ‘शोपीस’ हो गयी!