जेपी वर्धा पहुंचे, जहां गांधीजी थे, और प्रभा उनके साथ थीं। सात साल तक गांधीजी के साथ रहकर प्रभा ने अपने लिए ‘बापू की बेटी’ का रुतबा हासिल कर लिया था। प्रभा का तकाजा था कि हिंदोस्तान आने के बाद तुरंत से तुरंत जेपी गांधीजी की -सेवा- में उपस्थित हों। जेपी ने सिताब दियारा गांव से निकलते वक्त ही तय कर लिया था कि अपने को किसी काम में लगाने के पहले वह देश के इस सर्वश्रेष्ठ पुरुष के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। प्रभा ने जेपी को अमरीका के अपने अंतिम खत में यही तो लिखा था।
गांधीजी ने जिस वात्सल्य और प्रेम से जेपी का स्वागत किया, वह आश्चर्यचकित रह गए। जिसके जीवन का एक-एक क्षण अमूल्य है, वह अपनों की छोटी-छोटी सहूलत की निगरानी के लिए भी यों समय निकाल लेता है, यह सचमुच अद्भुत है, अनुपम है।
वे लाहौर जाने की तैयारी में व्यस्त थे - पंडित जवाहरलाल के सभापतित्व में होने वाली कांग्रेस में उपस्थित होने के लिए। उस व्यस्तता के बीच भी उन्होंने जेपी से पूछा - हिंदोस्तान में क्या करना चाहते हो?
जेपी के पास स्पष्ट उत्तर था - मैं हिंदू-युनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का विभाग खोलने का प्रयास करूंगा। समाजशास्त्र की पढ़ाई फिलहाल सिर्फ दो देशों में होती है - अमेरिका और रूस में। क्यों न हिन्दोस्तान में भी उसका अध्ययन और अध्यापन प्रारंभ हो? हिंदू युनिवर्सिटी ही ऐसी संस्था है, जो इसे कर सकती है।
जेपी ने पूरी योजना का खाका रखते हुए कहा - पचास हजार के प्रारम्भिक खर्च के बाद उस विभाग को स्वावलम्बी बनाया जा सकता है।
तो ठीक है, जिसे तुम सही समझो वही करो, मैं मालवीय जी को कहूंगा। उनसे कहकर यह प्रबंध करा दूंगा। गांधीजी ने कहा।
उन्होने जेपी से लाहौर चलने के बारे में न पूछा और न दबाव दिया। लेकिन जेपी उनके ही साथ वर्धा से लाहौर पहुंचे। प्रभा के साथ।
रावी तट पर 31 दिसम्बर की आधी रात के बाद के नये साल का पहला अद्भुत क्षण आया! कांग्रेस के सभापति जवाहरलाल ने भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की और आजाद हिन्दोस्तान की राष्ट्रीय पताका की तरह तिरंगा नीले आसमान में लहरा उठा। लाख-लाख कंठ एक साथ चिल्ला उठे - स्वतंत्र भारत की जय। इंकलाब जिंदाबाद!
जयप्रकाश को लगा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के गगनभेदी नारे सुनकर रावी का पानी भी क्षण भर के लिए थम गया - पहल से तय पथ से बहना भूल गया! ओहो, यह तो नया हिन्दोस्तान है, जवान हिन्दोस्तान है!
जवानी अंगड़ाई ले रही है। इस हिंदोस्तान से कौन जवान अपने को अलग रख सकता है? जयप्रकाश जैसा युवक तो कतई नहीं!
स्वतंत्र भारत की जय! इंकलाब जिन्दाबाद! जय के तूफानी शोर के बीच ही जवानों ने बढ़कर जवाहरलाल को कंधों पर ले लिया और तब से भोर तक रावी-तट पर उत्साह, उमंग, जोशखरोश के जो दृश्य दिखे, उनका वर्णन सम्भव नहीं! देश की जवानी और जवानी के भीतर छिपी हुई कुर्बानी के उन नजारों को जिसने नहीं देखा, उसने भारत के इतिहास के एक जगमगाते पन्ने को नहीं देखा!
और तो और, जिस ‘इनकलाब जिंदाबाद’ के नारे में राजेंद्र बाबू को हिंसा की बू मालूम पड़ती थी, उसी ‘इनकलाब जिंदाबाद’ के साथ उन्होंने अपना अध्यक्षीय भाषण समाप्त किया। तय हो गया कि 26 जनवरी को पूरे देश में ‘स्वाधीनता दिवस’ मनाया जाएगा.. .पूर्ण आजादी की घोषणा, यानी पूर्ण आजादी के लिए संघर्ष। संघर्ष बिना आजादी मिल नहीं सकती। भीख से क्या आजादी मिली है? भीख से मिलनेवाली आजादी क्या आजादी है?
अधिवेशन शुरू होने के पहले ही गांधीजी ने जेपी की जवाहरलाल से भेंट करा दी थी। पहली भेंट में ही वह जवाहरलाल की ओर खिंचे और उनको भी अपनी ओर खींच लिया। जेपी ने उनसे भी अपनी योजना के बारे बताया - वैज्ञानिक की तरह, विस्तार से। लेकिन रावी तट पर कांग्रेस देखी, तो दिमाग को दिल ने कोंच दिया - जब देश क्रांति के लिए यूं अंगड़ाइयां ले रहा है, तब क्या तुम युनिवर्सिटी की कुर्सियों को तोड़ते और पुस्तकों को चाटते-चटवाते रहोगे? दिमाग ने शांति से अपनी योजना को भविष्य के जेब में धरकर दिल से कहा - नहीं, मैं अब दूसरी दिशा में सोचूंगा…।’
प्रभा-प्रश्न अधिवेशन समाप्त हुआ। प्रश्न उठा प्रभा गांधी के साथ आश्रम जाएंगी या पति के साथ रहेंगी? एक अजीब मौन खिचा दोनों के बीच - जैसे उस वक्त का पहला साक्षात्कार हो। जेपी के जितने दोस्त मित्र आये थे बिहार से - विशेषकर उनके कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट मित्र - उनका कहना था “तुमने गांधीजी के पास भेजा, तभी तो प्रभावती ऐसी हुई। यार, गांधीजी ऐसे ही बना देते हैं लड़कियों को। तो?
प्रभा को गांधीजी के आश्रम में न रहने दो। इन्हें अपने साथ ले चलो।
जेपी ने पूछा “प्रभा तुम मेरे साथ चलोगी?
प्रभा ने कहा “चलूंगी, लेकिन मैं आश्रम में यह कह कर आई हूं कि मिलने जाऊंगी एक दफा…।“ “…?”
“नहीं, चलना है।“
पति के आग्रह के बाद प्रभा बापू के पास बात करने गयी। उस वक्त वर्किंग कमेटी की मीटिंग में बैठे थे गांधी। बेटी की बात सुनते ही बोले “तुम्हारा तो धर्म है। कर्तव्य है। जयप्रकाश के साथ जाना है।” प्रणाम के लिए बापू के पैर छुने को प्रभा झुकी और फफक कर रो पड़ी। गांधी ने संभाला “नहीं, जाओ साथ रहो। एक दूसरे को समझो। तुम्हें जाना है। आश्रम बाद में पति पहले।”
उसी दिन जवाहरलाल ने जेपी से पूछा “क्या सोचते हो? क्या करोगे?
जयप्रकाश ने कहा “तो देश का काम करना है। कांग्रेस का काम करना है।”
“तो आ जाओ इलाहाबाद। कांग्रेस के लेबर विभाग के सेक्रेटरी के तौर पर काम करो। इस काम पर मिर्जा बाकर अली आने वाले थे, पर वह किसी कारण से नहीं आए।”
जेपी ने कहा “मैं आ जाऊंगा और ‘ज्वाइन’ कर लूंगा।”
सारे सवाल हवा हो गए! प्रभा गांधी के साथ वर्धा आश्रम लौटी कि वहां से वह सीधे इलाहाबाद आयेंगी पति के साथ रहने। जेपी ने इलाहाबाद जाने के पहले पटना होकर आने का फैसला किया।