मुक्तिबोध ने ‘कीर्ति के इतराते नितंब’ की बात कही थी. मैंने सरलीकृत करने के लिहाज से इसे मिथ्या गर्व के इतराते नितंब कर दिया है. यह तब नजर आता है जब मंचों पर सत्तारुढ़ पार्टी के नेता सज संवर कर, कैट वाक करते हुए आते हैं और कोरोना काल की उपलब्धियां गिनाते हैं. क्या कोरोना काल की भीषण त्रासदियों को हम इतनी जल्दी भूल जा सकते हैं कि कोई अपनी विफलताओं पर बिना तनिक भी लज्जित हुए अपनी झूठी उपलब्ध्यिां गिनाते चला जाये?
यह सही है कि कोरोना की विभीषिका का तांडव सभी देशों ने झेला और विवस आंखों से अपने परिजनों को मरते देखते रहे. भारत से कई गुना अमीर देश, चिकित्सा सुविधा और बेहतर आधारभूत संरचना का दावा करने वाले अनेक देशों में भी बड़ी संख्या में मौतें हुई और इलाज की सुविधा कम पड़ गयी, लेकिन अपने देश में लोगों ने ऐसे- ऐसे मंजर देखे जिनसे आंखें पथरा जाना चाहिए था. लाखों लाख लोग कोरोना काल में बिना इलाज मर गये. मौत का ऐसा तांडव कि शवों से श्मशान घाट पट गये. लाचारी ऐसी की मृत परिजनों के लिए कफन तक नसीब नहीं था और लोग बालू के नीचे शवों को दबा कर भागने के लिए मजबूर थे.
आक्सीजन के लिए ऐसा हहाकार कभी नहीं देखा गया था और बड़ी संख्या में लोग समय पर आक्सीजन नहीं मिल पाने की वजह से सड़कों पर मर गये. बेड के लिए अस्पताल- अस्पताल भटकते रहे और कहीं बेड नहीं मिला और मौत हो गयी. बड़े-बड़े अस्पतालों में आक्सीजन की किल्लत से होने वाली असंख्य मौंतें. बिना किसी पूर्व योजना के लाॅक डाउनों का सिलसिला. लाखों लाख मजदूरों का महानगरों से पलायन और अपने शहर, गांव तक पहुंचने के लिए पांच सौ, हजार किमी की पैदल यात्रायें. सड़कों पर उनका कुचला जाना. रेलवे ट्रैकों पर कट कर मरना. भूख से तड़प कर मां का मरना और नासमझ बच्चे को उसके जगने की प्रतीक्षा करना. लगता ही नहीं था कि देश में कोई सरकार भी है. सभी को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था.
और इस भीषण त्रासदियों के बीच भी सरकारी खरीदारी में बेईमानी, दोयम दर्जे के उपकरणों की खरीदारी, दवाओं की कालाबाजारी. ऐसा क्या किया सरकार ने जिस पर आज गर्व किया जाये? कोरोना एक लहर की तरह आयी और विकास के तमाम खोखले दावों को, हमारी चिकित्सा व्यवस्था की पस्तहाली को उजागर कर चली गयी. उसके आने पर हमारा कोई वश नहीं था और न जाने में हमारी कोई भूमिका. फिर गर्व कैसा?
सच पूछिये तो यह राष्ट्रीय शोक का समय है, खुशियां मनाने या किसी तरह का गर्व करने का समय नहीं. जो अपनी विफलता और क्रूरता पर पर गर्व करें, वे तुक्ष्य मनुष्येतर प्राणी हैं.