रूपसपुर चंदवा कांड 1971 मे रचाया गया था। प्रसंगवश इस मसले पर मैं कुछ कहता हूं। इस कांड में सामंती लोगों ने 70 से 75 लोगों की जान ले ली थी। जनसंहार करने वाले सामंती घराने के प्रमुख उस समय बिहार विधानसभा के अध्यक्ष थे। यह पूर्णिया जिले मे घटी आत्मघाती हत्याकांड है।

पूर्णिया बांका और भागलपुर जिले में संथाल आदिवासी परिवारों की अच्छी संख्या है और यहां 2 विधानसभा क्षेत्र आदिवासी क्षेत्र के रूप में सुरक्षित हैं। तब झारखंड और बिहार अलग नहीं हुआ था। इस जनसंहार के बाद बेल्छी हत्याकांड हुआ। इसके बाद में पिपरा जनसंहार में भी 23 या उससे ज्यादा लोग मारे गए थे।

बेलछी हत्याकांड के बाद पिपरा में कांग्रेस शासन काल में जनसंहार रचाया गया था। बीच में अन्य कई ऐसी घटनाएं हुई। इसके बाद लालू प्रसाद यादव के गैर कांग्रेसी शासन काल में 1996 से लेकर सन 2000 तक रणवीर सेना द्वारा क्रमशः बथानी टोला जनसंहार, इसके बाद लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार, नगरी और मियांपुर जनसंहार हुए। यह दुखद क्रम चलता रहा और पिपरा जनसंहार के बाद सभी जगह मैं गया था।

ये सब जातिवादी, आत्मघाती, कायराना हत्याकांड है। बीच में 1985 में अरवल में सियार पासवान के नेतृत्व में एक मैदान में सभा कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई थी और इसमें भी लगभग 30 लोग मारे गए थे।

इस बात को यहां समाप्त करते हुए एक बात आपके ध्यान में लाना है, कि जो चार जनसंहार रणवीर सेना के द्वारा रचाया गया, उसमें से प्रत्येक में कुछ लोगों को सजा-ए-मौत और आजीवन कारावास दिया गया। परंतु बाद में इन चारों जनसंहारों पर पटना हाई कोर्ट के एक ही जज के सामने अपील की सुनवाई हुई और सभी दोषी बरी कर दिए गए। उस समय हम लोगों मिल कर पूछा था कि अखबार वाले जिस तरह जेसिका लाल के हत्यारों के बरी किए जाने के बाद सक्रिय हुए थे और दिल्ली हाईकोर्ट ने उस समय सुओ मोटो संज्ञान लेकर फिर से जेसिका लाल हत्याकांड की जांच को पूरा करने का आदेश दिया था। डेढ़ सौ के करीब लोगों की हत्या के सभी दोषियों को बरी किए जाने के बाद जन अभियान बिहार ने न्यायिक प्रक्रिया पर बहस चलाने की कोशिश की थी। पर दलितों की जान जान नहीं, हाईकोर्ट का बर्ताव ऐसा ही हुआ। न्यायपालिका का आचरण बहुत बुरा हुआ।

रूपसपुर चंदवा जनसंहार के बाद लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार में 58 दलित लोगों की निर्मम हत्या कायराना तरीके से रणवीर सेना जैसे सामंती सेना के लोगों द्वारा की गई थी। 1996 के बाद बिहार में मानवाधिकार के संघर्ष की यह जरूरी भूमिका थी कि रणवीर सेना जैसी जातीय सेना का अंत हो और बिहार में जनतांत्रिक वातावरण बने। इसी दौर में अल्ट्रा लेफ्ट के कुछ खुले संगठन और हमारा संगठन, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी तथा जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी ने मिलकर जन अभियान बिहार बनाया और इस संघर्ष को अनवरत चलाते हुए रणवीर सेना के अंत की गारंटी की।