जनवरी के पहले सप्ताह में ही ‘बुल्ली बाई’ ऐप की खबरें जोर शोर से आने लगी थी. इस ऐप में सौ मुस्लिम महिलाओं का फोटो लगा कर उनकी बोली लगायी जा रही थी. उनको लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग हो रहा था. उनके रूप रंग, शक्ल तथा अवयवों को भद्दे ढ़ंग से पेश किया जा रहा था. ये महिलाएं बुर्के में रहने वाली सामान्य मुस्लिम महिलाएं नहीं थी, बल्कि शिक्षित, समाज सेवी तथा राजनीतिक चेतनायुक्त बुलंदी से अपनी बात रखने वाली महिलाएं थी.

यह सिलसिला पिछले वर्ष से ही चल रहा था. उस समय ऐप का नाम ‘सुल्लू डील्स’ था. उस समय भी कई महिलाओं ने विभिन्न स्थानों से इस ऐप्स के विरुद्ध पुलिस थानों में शिकायत दर्ज करायी थी, लेकिन पुलिस ने उसे अनदेखा कर दिया. अब इस वर्ष जनवरी की पहली तारीख को ही जब ‘बुल्लू बाई ऐप’ के विरुद्ध उन्हीं महिलाओं ने फिर से शिकायतें दर्ज करायी, तो पुलिस नींद से जगी. उन्होंने तुरंत कार्रवाई किया और चार युवाओं को पकड़ लिया जिनके तार बैंगलुरु से लेकर रूद्रपुर तथा असम तक फैला हुआ था.

इन चारो अपराधियों में 18 वर्ष की बारहवीं पास एक छात्रा भी है. अन्य तीनों लड़के 20-21 वर्ष के छात्र हैं. देश के विभिन्न भागों में रहने वाले ये युवा किस मानसिक स्थिति में जुड़ते हैं और इस तरह का अपराध कर बैठते हैं, यह विचारीण है.

पुलिस ने कहा कि उनके इस कृत्य के पीछे किसी संगठन का साजिश नहीं लगता, बल्कि नासमझी में किया गया एक गलत कार्य है. बिना किसा साजिश के भी इस तरह नासमझी में किया गया कार्य अपराध ही होता है और इसके पीछे उनका परिवार, समाज, तथा राजनीतिक माहौल ही उनके इस अपराध के साजिशकर्ता बनते हैं.

ये सब मिल कर धीरे-धीरे उनके मस्तिष्क में एक संप्रदाय विशेष के प्रति नफरत घोलने का काम करते हैं. यहां गौरतलब यह भी है कि टारगेट बनाया गया है मुस्लिम महिलाओं को और उसमें भी आधुनिक व प्रबुद्ध महिलाओं को. इससे यह भी संदेह होता है कि कहीं से उन्हें सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय प्रबुद्ध महिलाओं की सूची प्रदान की गयी.

दूसरी ओर पढ़ लिख लेने के बावजूद भी उनका भविष्य अंधकारमय ही लगता है. नौकरियां नहीं है. आर्थिक दबाव बढ़ता जाता है. इस निराशा की स्थिति में वे इस तरह का ऐप बना कर अपनी कुंठा को निकालते हैं. उनके इस अपराध पर रोक कैसे लगे? चार को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया जाये तो चार और पैदा हो जाते हैं. दरअसल औरतों के प्रति असम्मान की भावना हमारे समाज में है.

लेकिन यह असम्मान मुस्लिम महिलाओं के प्रति करके उन्हें लगता है कि वे कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिससे उनके अपने समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी. और ऐसा होता भी है.

इस अपराध में एक 18 वर्ष की लड़की का शामिल होना यह बताता है कि यह सांप्रदायिकता का जहर किस कदर हमारे समाज के युवा तबके को ग्रस चुका है. वह लड़की औरत के प्रति होने वाले अपमान को समझ नहीं पा रही है. या फिर यह भी हो सकता है कि इस तरह के अपराध में शामिल हो कर लड़कों के बराबर अपने को स्थापित कर समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहती हो.

यह बात समझ से परे है कि इस तरह के अपराध में शामिल होने का खतरा उसने क्यों उठाया? क्या सिर्फ नासमझी की वजह से या फिर इस भरोसे कि इस तरह के कार्यों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है.