कल किसी ने बताया कि विधानसभा चुनावों के पहले दौर का मतदान प्रारंभ भी हो चुका है, तो मैं थोड़ा लज्जित हो गया. माना कि मेरी नजूमियत अक्सर खता खाती रही है और मेरी चुनावी भविष्यवाणियों की सफलता का औसत कमजोर रहा है, लेकिन किसी पसंदीदा शगल से कतराना कैसा! दरअसल समाचारों से अपनी दूरी थोड़ी बढ़ गयी है और अक्सर मुखपोथी की प्रतिक्रियाओं से ही मुझे किसी क्रिया अर्थात् घटना का पता चलता है. तो पता ही नहीं चला.

खैर, पांच राज्यों में चुनाव हैं. सबसे पहले मणिपुर, जो एक छोटा उत्तरपूर्वी राज्य होने के कारण अपेक्षाकृत गौण महत्व का है. पिछले चुनावों में चाहे कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, भाजपा ने जोड़ तोड़ करके सरकार बना ली थी और बाद में, जैसा कि छोटे राज्यों में दस्तूर है, धीरे धीरे अपनी संख्या बढ़ा ली. वैसे भी उससे पिछले चुनावों के मुकाबले कांग्रेस के सीट आधे रह गए थे और उसका मत प्रतिशत भी भाजपा से कम था. इस बार मुझे लगता है भाजपा के बीरेन सिंह आराम से दोबारा अपनी सरकार बना लेंगे, 30-35 सीटें लेकर.

गोवा तो और भी छोटा राज्य है, लेकिन अपनी तटीय भौगोलिक स्थिति, इतिहास और पर्यटन आदि के कारण मुख्यधारा की राजनीति के ज्यादा करीब रहा है. शुरुआत में, खास करके जब गोवा एक केंद्र शासित प्रदेश था, वहां कांग्रेस और महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी के बीच सत्ता की उठक पटक चलती थी. ईसाई और ब्राह्मण कांग्रेस के साथ होते थे, पिछड़े कोंकणी मगोपा के साथ. जब गोवा पूर्ण राज्य बना तो गैर कांग्रेसी जनाधार भाजपा की ओर आ गया और अब इन्हीं के बीच रस्साकशी चलती रहती है. पिछले चुनावों में कांग्रेस बहुमत के ज्यादा करीब थी, लेकिन चुनाव के बाद की तिकड़मों में भाजपा बाजी मार ले गयी. इस बार कांग्रेस की जीर्णता को देखते हुए कुछ नए शिकारी उसके जनाधार को लूट कर पैठ बनाने के चक्कर में आकाश में मंडरा रहे हैं. इसमें ममता जी को तो शायद किसी ने धनियें की झाड़ पर चढ़ा दिया है, लेकिन आम आदमी पार्टी जरूर एक अहम उपस्थिति दर्ज करा सकती है. ताहम मेरी तवक्को यह है कि भाजपा 18-20 सीटें हासिल करेगी, कांग्रेस 10-12 सीटें लेकर दूसरे नंबर पर रहेगी और आप व क्षेत्रीय दलों के हिस्से बाकी सीटें आयेंगी.

उत्तराखंड में भी भाजपा और कांग्रेस बारी बारी से जीतते रहे हैं. पिछले चुनावों में, विगत के दलबदल वाली छीछालेदर और कोर्ट-कचहरी के बावजूद, भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया था. लेकिन इस दफा बाजी उलटती दिखती है और कांग्रेस शायद भाजपा का वही हाल करे, जो पिछले चुनावों में उसने कांग्रेस का किया था.

पंजाब के चुनावों में सबसे अनोखी बात यह है कि अभी तक कांग्रेस का अंतर्कलह ही विमर्श का केंद्र बना हुआ है. सिद्धू जी के अतिउत्साह, उनकी खतरनाक सी दिखती महत्वाकांक्षा और इस शक के कारण कि कहीं न कहीं, शायद अनजाने में, वे आईएसआई.. पाकिस्तान के एजेंडे में फंस गए हैं, मैं पंजाब का नेतृत्व उनके हाथ में जाने से आशंकित रहा हूं. तथापि इस बात में कोई शंका नहीं कि रेस के सभी घोड़ों में सिदूधू जी सबसे ऊर्जावान और उत्साही प्रतीत हो रहे थे. उन्होंने अपनी ओर से दूल्हा बनने के लिए क्या क्या नहीं किया, लेकिन अंततः घोड़ी नहीं चढ़ पाए. राहुल जी ने अभी तो उन्हें इस तरह चबा कर फेंका है कि वे न उगलने के काबिल रहे न निगलने के. कितना अजीब विपर्यय है कि वे फिलहाल तो लगभग उसी गति में पहुंच गए हैं जहां कुछ ही दिन पहले उनके कारण कप्तान साहब पहुंच गए थे. ऐसी गुनाह-ए- बेलज्जत खुदा किसी की न कराए.

कांग्रेस सन् नब्बे तक अपना पारंपरिक जातिगत जनाधार खो चुकी थी, और उसके बाद वह लगातार जातियों की राजनीति साधने वाले चिराग की तलाश में है. उसने ताजा दांव चन्नी जी को आगे बढ़ा कर खेला है, यह जोखिम उठा कर भी कि सिद्धू को बाबा जी का ठुल्लू थमाने से जाट सिख और जाखर की मुकम्मल उपेक्षा से हिंदु मतदाता नाराज हो जा सकते हैं. और यह एक प्रबल संभावना है कि इस कत्थक से मतदाता बेजार हो चुके हों, इसका फायदा केजरीवाल उठा लें, और कांग्रेस को न खुदा ही मिले, न ही सनम का विसाल नसीब हो.

मेरा अनुमान है कि आम आदमी पार्टी बहुमत के बिल्कुल करीब रहेगी. 50-55. कांग्रेस 40-45 के आसपास रहेगी. बाकी 18-30 सीटें भाजपा, अकाली, बसपा और कप्तान के बीच बटेंगी. जहां तक उत्तरप्रदेश की बात है, तो प्रियंका वाडरा जी 170- 180 के करीब सीटें लाएंगी. सपा को 140-150 सीटें आयेंगी. 50 सीटें बसपा को आएंगी. कांग्रेस और बसपा मिल कर सरकार बनाएंगी. भाजपा चालीस पचास सीटों पर सिमट जाएगी. यहीं से होगा उनका अंत.