धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के नेतृत्व में चल रहे ‘धजवा पहाड़ को बचाने’ के आंदोलन को सौ दिन बीत चुके हैं. पिछले 18 नवंबर से ग्रामीण आंदोलनकारी पहाड़ की तलहटी में डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन के तहत धजवा पहाड़ को बचाने के संकल्प के साथ धरना पर बैठे हैं. लगभग 2 महीने पहले पांडू अंचल अधिकारी (सीओ) के नेतृत्व में अंचल कर्मियों की टीम ने धजवा पहाड़ का नापी कर सीमांकन किया था एवं अंचलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ बताया था कि धजवा पहाड़ पर अवैध खनन चल रहा है. अंचल अधिकारी के इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए एनजीटी ने पलामू उपायुक्त को स्वयं धजवा पहाड़ पर जाकर जांच करने का नोटिस भी दिया था और पूछा था कि जब सीओ को पता था कि पहाड़ का अवैध खनन चल रहा है तो उन्होंने अभी तक संवेदक के ऊपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की.

बावजूद इसके हल्का कर्मचारी के माध्यम से यह खबर आई है कि जिला प्रशासन की टीम 28 फरवरी को फिर से धजवा पहाड़ का सीमांकन करेगी. जिला प्रशासन का यह निर्णय बेहद ही संदेहास्पद प्रतीत होता है, क्योंकि जब सीओ के द्वारा एक बार सीमांकन कर रिपोर्ट बनाई गई है तो फिर दोबारा सीमांकन करने की क्या जरूरत है. ऐसा लगता है जैसे पलामू उपायुक्त सहित समस्त जिला प्रशासन अवैध खनन करने वाले संवेदक एवं फर्जी तरीके से लीज देने वाले संबंधित अधिकारियों को बचाने के लिए दृढ़ संकल्पित है.

धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के पदाधिकारी ने बताया कि जिला प्रशासन के पुनः सीमांकन के इस निर्णय का हम स्वागत करते हैं एवं प्रशासन से उम्मीद करते हैं कि वे निष्पक्ष तरीके से सीमांकन कर दोषियों पर कार्रवाई करेंगे. आगे उन्होंने कहा कि अगर पक्षपात करते हुए नापी में किसी भी तरह की गड़बड़ी की गई तो हम उसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे एवं जिला प्रशासन के खिलाफ तेज आंदोलन करेंगे. समिति के सदस्यों ने आसपास के सभी गांव के ग्रामीणों से अनुरोध किया है कि वे 28 फरवरी को भारी से भारी संख्या में धजवा पहाड़ पर पहुंच कर धजवा पहाड़ के फर्जी लीज के सीमांकन का गवाह बने.

झारखंड के कई जन सहयोगी संगठन इसके लिए सक्रिय रुप से कार्यरत हैं. धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के अलावे कई सहयोगी संगठन भी सक्रिय हैं. माले विधायक कामरेड विनोद सिंह आंदोलन का समर्थन करने वहां एक जनसभा में भाग ले चुके हैं और आंदोलन के समर्थन की घोषणा की है.