दस भारतीयों में से नौ का मानना है कि पत्नी को पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए. ऐसा कहना है ‘प्यू’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था का जो वाशिंगटन डीसी की एक रिसर्च संस्था है. उन्होंने भारत के स्त्री और पुरुष का परिवार तथा समाज में भूमिका पर सर्वेक्षण किया और 2 मार्च 22 को नतीजों को प्रकाशित किया. लगभग 30 हजार वयस्क भारतीयों के विचारों का अध्ययन नवंबर 2019 से मार्च 2020 तक किया गया और उसके जो नतीजे आये हैं, वे इस प्रकार हैं.

55 प्रतिशत भारतीषें के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों में समान रूप से राजनेता बनने की योग्यता है. फिर भी 10 में से 9 भारतीयों का मानना है कि स्त्री को पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए. इस बात को स्वीकार करने वाली 61 प्रतिशत स्त्रियां हैं, तो 67 प्रतिशत पुरुष हैं. 62 प्रतिशत समतावादी भारतीयों का मानना है कि बच्चों को पालने की जिम्मेदारी स्त्री और पुरुष पर समान रूप से है, जबकि 34 प्रतिशत परंपरावादियों का मानना है कि बच्चे की प्रारंभिक देख भाल स्त्री को ही करना चाहिए.

54 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पैसा कमाने की जिम्मेदारी स्त्री और पुरुष दोनों पर है, लेकिन 43 प्रतिशत का मानना है कि जीविका कमाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से पुरुषों की है. 80 प्रतिशत का तो यह मानना है कि जब नौकरियों की कमी है तो केवल पुरुषों को ही नौकरी पाने का अधिकार है.

वैसे तो भारतीयों ने बेटा और बेटी दोनों को महत्व दिया है, लेकिन 94 प्रतिशत का मानना है कि एक परिवार में कम से कम एक बेटा का होना बहुत जरूरी है. 64 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि माता पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी का बराबर अधिकार होना चाहिए, लेकिन 10 में से 4 लोगों का मानना है कि वृद्ध माता पिता की जिम्मेदारी बेटा को ही उठाना चाहिए. केवल 2 प्रतिशत इसे बेटियों की भी ज्म्मिेदारी मानते हैं.

भारतीय समाज में स्त्री और पुरुष को लेकर अपने तरह के विचार हैं जो धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारणों से प्रभावित है. ऐसे समाज में बेटों को बेटियों से ज्यादा महत्व दिया जाता है. इसीलिए यह पता लगाने की कोशिश की गयी है कि भ्रूण में लिंग का पता लगा कर कन्या भ्रूण का गर्भपात सही है या नहीं. 40 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में यह स्वीकार्य है, जबकि 42 प्रतिशत ने इसे पूर्ण रूप से अस्वीकार किया. इस मामले में भारतीय स्त्रियां भी स्त्री-पुरुष की भूमिकाओं में अंतर देखते हुए बेटों को ही ज्यादा महत्व देती हैं. यहां तक कि 18 से 34 वर्ष की उम्र वाले युवाओं में भी यही विचार पाये गये हैं.

72 फीसदी भारतीय स्त्री पुरुष के समान अधिकारों को आवश्यक मानते हैं. लेकिन भारत में यह प्रतिशत दुनियां के अन्य देशों से कम ही है. जैसे, उत्तरी अमेरिका में 92 प्रतिशत, पश्चिमी यूरोप में 90 प्रतिशत और लैटिन अमेरिका में 82 प्रतिशत है. ये देश स्त्री- पुरुष की समानता को अत्यधिक महत्व देते हैं. यदि भारत की तुलना सहारा अफ्रीका, जहां यह 48 प्रतिशत है और पाकिस्तान जहां 64 प्रतिशत है, से किया जाये तो भारत अवश्य ही बेहतर स्थिति में है.

भारतीय समाज में लैंगिक समानता को लेकर किया गया यह सर्वेक्षण यह बताता है कि 21 वीं सदी में भी स्त्रियों को लेकर भारतीय मानसिकता में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है. सदा से यह मान्यता रही है कि स्त्री पुरुष की अनुगामिनी है और पुरुष का कहा मान कर उसे जीवन बिताना चाहिए. पुरुष श्रेष्ठ है, इसलिए बेटों की चाहत स्त्री, पुरुष दोनों में अधिक है. भारतीय स्त्रियों ने राजनीति से लेकर नौकरियों में पुरुषों की बराबरी की है तो यह उनके आत्मबल या स्व-प्रयास का फल है. अन्यथा भारतीय समाज तो उन्हें दबाता ही रहा है.