उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत का महत्व इस बात से है कि उत्तर प्रदेश और आस पास के अन्य हिंदी प्रदेशों से ही निकलता है अश्वमेध का घोड़ा जो दिल्ली पर काबिज होने में भाजपा की मदद करता है. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि राज्य को हम हिंदी पट्टी के रूप में देखते हैं और इसका एक विद्रूप नाम हाल के वर्षों में गोबर पट्टी के रूप में दिया जाने लगा है.
ये तमाम राज्यों की गिनती देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों के रूप में होती है.ये राज्य शिक्षा, स्वास्थ, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी और बेरोजगारी की दृष्टि से राष्ट्रीय औसत से पीछे और तमिलनाडु, केरेल जैसे दक्षिण के राज्यों से तो बेहद पीछे हैं. लेकिन लोकसभा सीटों के लिहाज से हिंदी पट्टी के इन राज्यों की सीटों को देखा जाय तो इन पर राजनीतिक प्रभुत्व कायम करने वाली पार्टी बड़ी आसानी से केंद्र की सत्ता पर काबिज हो सकती है. और भाजपा वही कर रही है. गरीबी और जहालत में डूबी जनता को धर्म और सांप्रदायिकता की घुट्टी पिला कर. गौर करें कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल सीटें 80 हैं. बिहार में 40, मध्यप्रदेश में 29, राजस्थान में 25 लोकसभा सीटें हैं. इन राज्यों में जीती सीटों की बदौलत भाजपा आसानी से केंद्र पर काबिज हो गयी और आगे भी होगी. 543 सीटों वाली लोकसभा में 272-73 का जादुई आंकडा प्राप्त करना ये राज्य आसान करते हैं. उनके लिए यह जरूरी है कि ये राज्य सांप्रदायिकता और धार्मिक उन्माद के नशे में हर वक्त चूर रहें, ताकि उन्हें अपनी जहालत का कभी एहसास न हो. कभी राम मंदिर, कभी सोमनाथ कारीडोर, तो कभी लव जेहाद, कभी गौकशी को लेकर ये इलाके आंदोलित रखे जाते हैं.
वरना हिंदी पट्टी, खास कर उत्तर प्रदेश की जनता के जेहन में यह सवाल जरूर उठता कि जबकि भारत के प्रति व्यक्ति की औसत आय 95000 रुपये प्रति वर्ष है, तो उनके राज्य की औसत आय राष्ट्रीय औसत के आधी से भी कम 44600 क्यों है? 36 राज्यों की रैंकिंग में उत्तर प्रदेश का 32 वां नंबर क्यों है? क्योंकि, इसी वजह से देश के किसी भी महानगर में चले जाईये, वहां स्टेशन पर के कुली, खलासी, ठेला ढ़ोने वाले, टैक्सी चालक, ठेला लगा कर सब्जी और अन्य सामान बेचने वालों में अधिकतर हिंदी पट्टी के लोग होते हैं.
नीति आयोग की मल्टी डाईमेंसनल प्रापर्टी इंडेक्स के तहत उत्तर प्रदेश भारत का तीसरा सबसे अधिक गरीब राज्य राज्य है जहां कि 37 फीसदी आबादी गरीबी की शिकार है. शिक्षा के क्षेत्र में ओवर आॅल परफार्मेंस स्कोर यदि केरल का 76.6 प्रतिशत है तो उत्तर प्रदेश का 36.4 प्रतिशत. स्वास्थ सूचकांक में यदि केरल को 100 में से 82 अंक प्राप्त हुए हैं, तो उत्तर प्रदेश को सिर्फ 30. देश के कुल कुपोषित बच्चों में 40 फीसदी उत्तर प्रदेश में है.
हमने बिहार या अन्य हिंदी प्रदेशों की चर्चा यहां इसलिए नहीं की, क्योंकि ये अन्य राज्य गरीबी और पिछड़ेपन में उत्तर प्रदेश के ही आगे पीछे हैं. और यही वह पूरा इलाका है जो पिछले कुछ वर्षों में भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति और धार्मिक उन्माद का गढ़ बन गया है.
भाजपा की चुनावी राजनीति के इस व्यूह रचना को तोड़ना असंभव नही ंतो कठिन जरूर है. और जब तक हिंदी पट्टी भाजपा के चंगुल से बाहर नहीं निकलती, तब तक भाजपा के अश्वमेध के घोड़े को रोकना आसान नहीं.