पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में बीजेपी को बहुमत मिला. बहुमत भी ऐसा वैसा नहीं, बल्कि पूर्ण बहुमत. बीजेपी की इस विजयोत्सव की गूंज अभी तक सुनायी दे रही है. मोदीजी ने तो अपने धन्यवाद ज्ञापन में, विशेष कर यूपी के चुनाव में बीजेपी के बिजय का श्रेय वहां की मां-बहनों को दिया. पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में घर के पुरुष के कहे अनुसार वोट देने वाली महिलाएं यदि एक राज्य में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत दिलाने में अपनी विशेष भूमिका अदा करती हैं तो यह आश्चर्य की बात ही होगी.

इन्हीं सारी बातों को लेकर ‘लोकनीति’ नाम की एक संस्था ने मतदान के बाद उत्तर प्रदेश में एक सर्वे किया. सर्वे में यह पता लगाने की कोशिश की गयी कि समाजवादी पार्टी की तुलना में बीजेपी को मिले स्त्री-पुरुषों के वोटों के प्रतिशत में क्या अंतर पाया गया. वहां बीजेपी को सपा की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक महिला वोट मिले हैं, जबकि पुरुष वोटों का प्रतिशत सपा से महज पांच प्रतिशत अधिक था. बीजेपी को वोट देने में छोटी उम्र से लेकर बड़ी उम्र की महिलाएं बहुत बड़ी संख्या में बाहर आयीं. 18 से 25 वर्ष के उम्र की 15 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया था, तो 56 वर्ष या उससे अधिक उम्र की 18 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया है. इसके विपरीत 18 से 25 वर्ष के पुरुषों का अधिक वोट सपा को मिले.

जाति के आधार पर देखा गया तो उंची जाति की 90 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया, जबकि उंची जाति के पुरुषों की संख्या 83 प्रतिशत थी. गांव व शहरों की महिला मतदाता में भी अंतर देखा गया. गांव की 16 प्रतिशत अधिक महिला वोट बीजेपी को मिले, जबकि शहरों में यह अंतर 6 प्रतिशत का था. धनी महिलाओं के ज्यादा वोट बीजेपी को मिले.

मोदी-योगी सरकार में उत्तर प्रदेश में महिला केंद्रित कई योजनाओं को शुरु किया, जिससे महिलाएं प्रभावित हुई. खास कर मुफ्त अनाज वितरण योजना से. सर्वे के अनुसार 6 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने सपा को छोड़ बीजेपी को चुना.

जहां तक कानून और व्यवस्था का प्रश्न है, 10 में से 7 स्त्री और पुरुष दोनों ने माना कि यूपी में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है. इस प्रश्न पर भी बीजेपी ही आगे रही. इस प्रश्न पर सपा से 27 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने और 22 प्रतिशत अधिक पुरुषों ने बीजेपी का समर्थन किया है.

इस सर्वेक्षण में दो और बातें विशेष रूप से उभर कर आयी हैं. पहला यह कि मतदान के लिए पुरुषों से अधिक महिलाएं बाहर निकली. खास कर ग्रामीण महिलाओं ने, जिन्होंने अधिक से अधिक मतदान कर बीजेपी की जीत पक्की की.

दूसरी बात यह कि 2017 के चुनाव से भी अधिक 2022 के चुनाव में अपनी आत्मनिर्भरता प्रकट की है. 2017 के चुनाव में 47 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया था कि मतदान के पहले उन्होंने किसी पुरुष की सलाह ली थी, जबकि 2022 के चुनाव में 32 प्रतिशत महिलाओं ने ही ऐसा किया. ऐसा सोचा गया कि इस बार के चुनाव में महिला प्रत्याशियों की ओर महिलाएं आकर्षित होंगी. यही सोच कर कांग्रेस ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया, फिर भी महिलाओं ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया.

इस सर्वे में यूपी के सामाजिक ताने बाने का तो पता चलता ही है जो स्पष्ट रूप से अगड़ी तथा पिछड़ी जातियों में बंटी हुई है, साथ ही वह अमीर और गरीब में भी बंटी हुई है. इन लोगों की मानसिकता को अच्छी तरह जानते हुए बीजेपी ने जिस रणनीति को अपनाया है, वह चुनाव के सारे सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों को झुठला दिया है. उत्तर प्रदेश, जिसके 80 सीट लोकसभा में हैं और जो केंद्र की राजनीति को भी प्रभावित करता है, वहां के चुनाव में महिलाएं यदि महिला प्रत्याशियों को वोट नहीं देती हैं, तो कोई भी दल महिलाओं को टिकट देना आवश्यक नहीं समझेगा. वैसे में संसद में 33 प्रतिशत महिला प्रतिनिधित्व सपना बन कर ही रह जायेगा.

दूसरी बात यह है कि इसी यूपी में कुछ ही महीनों पहले बलात्कार के दो ऐसे कांड हुए जिन्होंने पूरे देश को हिला दिया. पहला तो उन्नाव का जिसमें बलात्कार का अपराधी एक बीजेपी विधायक ही था, जो कुछ दिन जेल में रह कर बेल लेकर बाहर आ गया, दूसरा हाथरस का बलात्कार कांड. इस कांड में एक दलित लड़की का बलात्कार गांव के कुछ ठाकुर लड़कों के द्वारा होता है. अपराधी को सजा तो दूर की बात है, जब पीड़िता लड़की अस्पताल में मर जाती है, तो पुलिस मृत लड़की के शव को माता पिता को सौंपने के बजाय स्वयं जला देती है.

यदि इन जधन्य घटनाओं को भुला कर महिलाएं बीजेपी को वोट देती हैं तो शायद वे संवेदनहीन हो गयी हैं और अपने हितों को नहीं पहचानती हैं. वैसे भी वहां की महिलाओं के सामने प्रत्याशी को चुनने का विकल्प कम ही था, क्योंकि सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने बलात्कार को युवावस्था का भूलमात्र माना है. फिर भी वहां की महिलाओं को अपने हितों को ध्यान में रख कर महिला प्रत्याशियों, चाहे वे किसी भी दल की हों, को वोट देना चाहिए था. इससे विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ता.