सरहुल आदिवासी समाज का सबसे बड़ा पर्व है. इस मौके पर हम मुंडा लोक गीत प्रस्तुत कर रहे है जिसे ‘बांसुरी बज रही है’ से लिया गया है. ये गीत ‘जादुर गीत’ के रूप में जाने जाते हैं. श्रमशील समाज कैसे कठिन परिस्थितियों में भी अपनी जिजीविषा जिंदा रखता है, लाल पाड़ की साड़ी और जूड़े में सजे फूलों के पीछे कितनी व्यथा छिपी रहती है, इन्हें आप इन गीतों को पढ़ते महसूस कर सकते हैं. प्रकृति और परिवेश की इतनी सूक्ष्म जानकारियां इन गीतों में हैं कि आप दंग रह जायेंगे. साथ ही है प्रकृति से उनके तारतम्य की झलक. इस बार सरहुल के समय भीषण गर्मी है. पिछले कुछ दशकों से मौसम में यह बदलाव आया है. लेकिन इन गीतों से पता चलता है कि ठंढ़ का मौसम सरहुल तक कभी खिंचता होगा. और अंत में, गहरी व्यथा से ही ‘जादुर गीतों’ का सृजन होता है और मनोव्यथा से जीवन का हर्षो-उल्लास खत्म नहीं होता. यही तो है आदिवासीयत.
एक
हाय जाड़ा!
तुम चले जाओ.
हाय ठंढ़
तुम उठ जाओ.
ऐ जाड़ा तुम उन व्यापारियों के पास जाओ
जिनके पास जोड़ी कंबल है.
हे ठंढ़ तुम उन सौदागरों के पास जाओ
जिनके पास मोटे कपड़े हैं.
जाने को तो जायेंगे,
पर सरहुल का भात खा लेने के बाद!
उठने को तो उठेंगे
पर सरहुल का हड़िया पी लेने के बाद
दो
आज सौभग्य से
इमली के रस में मछली
और कल संयोगवश
पूरे उड़द की दाल पकायी जायेगी
किस लिए इमली के रस में मछली,
और किस लिए उड़द की दाल!
साखू के फूल के लिए
इमली के रस में मछली
और नर्म कोंपलों के लिए
पूरे उड़द की दाल पकायी जायेगी.
तीन
हे मुंडा लोगों, तुम लोग सरहुल तो मना रहे हो
लेकिन फूल नहीं देते हो.
हे संथाल लोगों, तुम लोग सरहुल तो मना रहे हो
लेकिन फूल नहीं देते हो.
हे मुंडाओं, तुम लोग फूल के भूखे हो
इसलिए फूल नहीं देते हो.
ऐं संतालों, तुमलोगों को फूल की कमी है
इसलिए फूल नहीं बांटते हो.
ऐ मुंडाओं, यदि तुम लोग हमारे देश में चलो
तो, हम लोग खोंपा के उपर फूल पहना कर बिदा करेंगे
ऐ सन्तालों, यदि हमारे देश में आओ
तो हम लोग चोटी के नीचे कोंपल पहना कर बिदा करेंगे.
चार
बहुत दिनों के सुख दुख के बाद सरहुल पहुंचा है
सोने के समान सरहुल चांद निकल आया है.
बहुत उद्यम, काम और सुख दुख के बाद यहां तक हम पहुंचे हैं
और रूपे के समान चैत का चांद उगा है
सोने के समान चांद उग आया है
लेकिन नये बांधे हुए धान के मोरे खतम हो गये
रूपे के समान चैत का चांद आ गया है
लेकिन कुड़कुड़ाती हुई मुरगी खतम हो गयी.
हमें चिंता हो रही है
कि नये मोरे का सब धान खत्म हो गया
हमे विसमय हो रहा है
कि कुड़कुड़ाती हुई मुरगी खत्म हो गयी.
पांच
हे बेटी, तुम्हारी मां सरहुल का उपवास कर रही है
और तुम पिछवाड़े खड़ी हो
हे बेटी, तुम्हारा बाप गिड़ी तोरो एः कर रहा है
और तुम ओरी के नीचे सटी हो
हे बेटी , तुम पिछवाड़े खड़ी हो
और पिछवाड़े की मिट्टी धंस रही है.
हे बेटी, तुम ओरी के नीचे सटी हो
और ओरी का पानी चू रहा है
मुझे चिंता हो रही है
कि पिछवाड़े की मिट्टी धंस रही है.
मुझे दुख हो रहा है
कि ओरी चू रही है.
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