हिन्दू में छपी एक खबर है, छोटी मगर केवल औरतों के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण. इस समाचार के अनुसार इंडियन नर्सिंग कौंसिल ने बी एस सी नर्सिंग के दूसरे वर्ष के समाज शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी एक पुस्तक में दहेज प्रथा के लाभों के बारे में लिखे जाने पर इसकी निन्दा की और इसे असम्मान जनक बताया. इस किताब को लिखने और प्रकाशित करवाने वाले लेखक ने किताब के मुखपृष्ठ पर इंडियन नर्सिंग कौंसिल का नाम दे दिया. इसी पर अपनी नारजगी जताते हुए नर्सिंग कौंसिल ने कहा कि वह इस तरह के किसी भी सामाजिक बुराई का समर्थन नहीं करती है. नर्सिंग बीएससी द्वितीय वर्ष का पाठयक्रम विस्तार से उनके वेब साइट पर उपलब्ध हैं. इससे इतर विषय पर लिखे किताबों का वह अनुमोदन नहीं करती है.
‘ए टेस्टबुक आफ सोशियोलोजी फार नर्सेस’’ नामक इस पुस्तक की रचना टीके इंद्राणी ने की है. इस पुस्तक का एक पेज, जिस पर दहेज के लाभ गिनाये गये हैं, इन दिनों इंटरनेट पर छा गया है. इस किताब में दहेज के प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभों पर प्रकाश डाला गया है. पहला प्रत्यक्ष लाभ तो यह बताया गया है कि इससे नया घर बसाने में सुविधा होती है. इससे भी महत्वपूर्ण लाभ एक और है. वर के मात-पिता दहेज की माँग इसलिए भी करते हैं, क्योंकि उन्हें भी अपनी बहनों तथा बेटियों को दहेज देना पड़ता है.

परोक्ष लाभों के बारे में लेखिका का कहना है कि दहेज की मोटी रकम के कारण एक कुरुप लड़की की शादी आसानी से हो जाती है. दहेज के भार से बचने के लिए लड़की के माता-पिता उसे पढाते हैं. जब लड़कियां शिक्षित हो जाती हैं या नौकरी करने लगती हैं तो दहेज कम हो जाता है. यह दूसरा मुख्य परोक्ष लाभ है.

नर्सिंग कौंसिल का कहना है कि किसी भी लेखक को यह छूट नही है कि वह उसके नाम पर इस तरह के आपत्तिजनक विषयों पर लिखे. कौंसिल ने यह भी कहा है कि उसके नाम का इस तरह दुरपयोग करने पर वह लेखक के विरूद्ध कार्यवाही कर सकती है. इस सारे प्रसंग में अफसोस जनक बात यह है कि दहेज प्रथा के इन लाभों का वर्णन करने वाली एक महिला लेखक है. दहेज के दंश को या तो उन्होंने नहीं झेला है या झेलकर भी इसे लाभप्रद मानती हैं.

वैसे इस विषय पर सबसे पहली प्रतिक्रिया शिवसेना सांसद प्रियंका चर्तुवेदी ने दिया है. उन्होने मानव संसाधन मंत्री को लिखा है कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह दहेज लेने या देने जैसी अपराधिक घटना को इस तरह प्रचारित किया जा रहा है. इस घटना से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभी भी दहेज लेना या देना सामाजिक गौरव का विषय बना हुआ. सरकार चाहे जितनी भी कठोर कानून बनाये इसका अमल जब तक दृढता से न हो, वह बेकार ही साबित होगा. लैंगिक असमानता का सूचक यह प्रथा औरत को अपमानित करती है, उसके सम्मान को चोट पहुँचाती है.