इस तस्वीर को देखिए. क्या हम यह कर सकते हैं की हमारे देश में उज्जवला योजना का लाभ उठा पा रहे हैं गरीब तबके के लोग ? यह योजना गरीब परिवारों के लिए बनी थी और महिलाओं के चेहरे पर खुशी लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा 1 मई 2016 को शुरू की गई थी. इस योजना के तहत गरीब महिलाओं को मुफ्त में एलपीजी गैस कनेक्शन मिला इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए उपयोग में आने वाला जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देना है. योजना का एक मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और उनकी सेहत व उनकी आंखों की सुरक्षा करना है.

पर अफसोस की इस महत्वाकांक्षी योजना पर महंगाई की मार पढ़ रही है देश में गरीब परिवारों को चूल्हे के धुंए से आजादी दिलाने वाली बड़ी स्कीम उज्जवला योजना कागजी बन कर रह गया है. जिस वक्त यह योजना बनी थी, उस वक्त गैस सस्ती थी और उस पर सब्सीडी भी मिलती थी. इसका लाभ गरीब आदिवासियों, दलितों और अन्य तबके के गरीब लोगों ने उठाया भी. लेकिन देखते देखते गैस की कीमत आकाश छूने लगी और सब्सीडी का भी पता नहीं. गरीबों की कमाई इतनी नहीं कि वे हजार से भी अधिक रुपये खर्च कर गैस सिलेंडर खरीदें. जीवन सब तरफ से महंगाई से इस कदर घिर गया है कि वे यह तय ही नहीं कर पाते कि अपना पेट पाले, परिवार पाले या फिर गैस भरें. इसलिए धीरे- धीरे हमारे झारखंड में गरीब तबके के लोग गैस सब्सिडरी को त्याग कर रहे हैं, क्योंकि उनकी कमाई इतनी नहीं कि वह हर महीने 1010 रुपये खर्च कर गैस भरें.

जंगल ही आदिवासियों का सहारा रहा है. उज्जवला योजना के लागू होने के पहले और बाद भी जंगल की लकड़ी ही इंधन के रुप में उनका सहारा है. और यह जिम्मेदारी सामान्यतः औरतें ही उठाती है. जिन कुछ औरतों ने उज्जवला योजना लागू होने के बाद जंगल से लकड़ी बटोर कर लाना छोड़ दिया था, उनकी दिनचर्या में यह काम फिर जुड़ गया है. एक बार फिर यह काम उनके जिम्मे आन पड़ा है. और बदली हुई परिस्थिति में यह काम और कठन हो गया है.

पहली बात तो यह कि जमीन पर सरकार का शिकंजा और ज्यादा कस गया है, दूसरे जंगल कम हो गये हैं और गांव और बस्तियों से दूर चले गये हैं. यह तस्वीर दो दिन पहले की है. इस तस्वीर में तो एक औरत दिख रही है, लेकिन उनकी एक लंबी कतार है. वे तड़के घर से निकलती हैं. आस-पास के जंगल झाड़ से लकड़ियां बटोरती हैं और भीषण दुपहरी में माथे पर यह बोझ लिये मीलों का सफर पूरा करती हैं.

कभी-कभी लगता है कि गरीब की आर्थिक स्थिति नहीं सुधर सकती. सरकार ने गैस सब्सिडी तो दे दे दिया लेकिन उसे हर महीना खुद ही भरना पड़ रहा है. अगर इसकी कीमत कम रहती तो शायद वह भर भी पाते. लेकिन महंगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है कि उनकी मजदूरी भी कम पड़ जा रही है. अंत में यही होगा कि सभी गरीब तबके के लोग जहां थे वहीं रह जाएंगे और गैस का इस्तेमाल करना छोड़ देंगे.