फायरिंग रेंज के खिलाफ नेतरहाट के आंदोलनकारी जलती दोपहरी में मीलों की पदयात्रा कर राज्यपाल को यह ज्ञापन देने आये हैं कि वे फायरिंग रेंज के खिलाफ हैं. प्रभावित इलाके की ग्राम सभाओं ने सर्व सम्मति से उस योजना को खारिज किया है. महामहिम राज्यपाल सरकार को निर्देश दें कि वह फायरिंग रेंज की योजना को निरस्त करे, उसकी अवधि का विस्तार नहीं करे. समाज के प्रभु वर्ग को यह समझना होगा कि यदि वह वास्तव में उग्रवाद को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है तो उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से चलने वाले जन आंदोलनों का सम्मान करना होगा.

हम सभी जानते हैं कि पिछले तीन दशकों से नेतरहाट के मनोरम क्षेत्र में वहां की आदिवासी जनता फायरिंग रेंज के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष कर रही है. और इस भीषण गर्मी में, जबकि तापमान सामान्य से पांच डिग्री अधिक चल रहा है, सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर राज्यपाल के समक्ष फरियाद करने आयी है, क्योंकि पेसा कानून के तहत जनजातीय क्षेत्रों की कस्टोडियन राज्यपाल को बनाया गया है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्वास्थ के लिए भी यह जरूरी है कि सरकार जनतांत्रिक मूल्यों का समादर करे, शांतिमय तरीके से चले आंदोलनों का सम्मान करे.

हमें यह समझना होगा कि अच्छी से अच्छी व्यवस्था से कुछ लोगों को विरोध हो सकता है और फायरिंग रेंज के खिलाफ तो उस क्षेत्र की संपूर्ण आदिवासी जनता खड़ी है. विरोध को दर्ज करने के लिए जनता क्या करे? गांधीवादी तरीका तो यही है कि आवेदन दे, धरना, प्रदर्शन और सत्याग्रह करे. विरोध प्रदर्शन और पदयात्रा करे. लेकिन इसके बावजूद भी सत्ता उनकी बात नहीं सुने तो क्या करे?

यहीं से उग्रवाद का भटकाव शुरु होता है. कोई और रास्ता नहीं पा कर उग्रवादी व हिंसक राजनीति में विश्वास करने वालें लोगों के राजनीतिक प्रभाव में आने लगते हैं. सरकार ताकत के बल पर उन्हें कुचलने की कोशिश करती है, लेकिन कुछ दिनों तक शांत रहने के बाद वे फिर उठ खड़े होते हैं.

जरूरत इस बात की है कि सरकार शांतिपूर्ण तरीके से चले आंदोलनों का सम्मान करे. जनता की बात सुने. उनकी मांगों को पूरा करे. उग्रवाद व हिंसक राजनीति के पैर खुद उखड़ जायेंगे.