झामुमो सुप्रीमो और उनका परिवार चतुर्दिक विरोधी दल के आक्रमण का शिकार बन रहा है. झारखंड की राजनीति में उनके चिर शत्रु रहे बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि यह शीर्ष परिवार विशेष भू कानूनों का उल्लंधन कर झारखंड के विभिन्न जिलों में आदिवासी जमीन खरीदते रहे हैं. दूसरी तरफ भाजपा के एक अन्य शीर्ष नेता ने उन पर खनन पट्टा प्राप्त करने का आरोप लगाया है. जवाबी कार्रवाई में सुप्रीयो भट्टाचार्य बाबूलाल मरांडी के कारनामों को उजागर करने वाले हैं.
कानून के जानकारों का कहना है कि खनन पट्टे वाला मामला ऐसा नहीं कि उसकी वजह से किसी की विधायकी या लोकसभा का पद जाये. दूसरी तरफ यह भी एक बड़ा तथ्य है कि भाजपा जिन राज्यों में अपने विरोधी पक्ष को चुनावी युद्ध में परास्त नहीं कर पाती, तो वह सत्ता हासिल करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती है. सीबीआई, आईबी जैसी संस्थाओं का दुरुपयोग करती है. केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में हाल के वर्षों में उनके इन हथकंडों को हमने देखा भी है. हो सकता है कि अभी तो वातावरण बनाया जा रहा है, फिर झारखंड में भी इसी तरह के आक्रमण का दौर शुरु हो जायेगा.
लेकिन इन बातों से परे की बात यह है कि गुरुजी के संघर्ष और उससे अर्जित प्रतिष्ठा ही झामुमो की स्थायी राजनीतिक पूंजी है. यदि उसमें ह्रास होता है तो झामुमो को वह राजनीतिक क्षति होगी जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. गुरुजी शाकाहारी भोजन करते हैं, साधारण कपड़े पहनते हैं, सड़क मार्ग से राज्य भर का दौरा करते रहे हैं. लेकिन ‘दिसोम गुरु’ के अलावा वे एक बड़े परिवार के अभिभावक भी हैं और जैसे धृतराष्ट्र अपने पुत्रों, परिजनों के कई कारनामों को अनदेखा कर देते थे, वैसे वे भी कर देते है.
अब बाबूलाल तो गुरुजी की तरह किसी आभा मंडल से नहीं घिरे हैं और न भाजपा उनकी बदौलत राज्य में राजनीति कर रही है. इसलिए उनके गलत कारनामें सामने आते भी हैं तो भाजपा को कोई खास राजनीतिक क्षति नहीं होगी, लेकिन इन विवादों से भारी राजनीतिक नुकसान होगा. इसलिए झामुमो सुप्रीमों को और झारखंड के शीर्ष परिवार को जल्द से जल्द विवादों से बाहर आने की कोशिशि करनी चाहिए, वरना बहुत देर हो जायेगी.