लाभ के पद वाला मामला कानूनी दृष्टि से कमजोर है और उसके लिए विधायकी जाये, इसकी संभावना नहीं. वैसे, हम जिस दौर में चल रहे हैं, उसमें कुछ भी हो सकता है. चुनाव आयोग केंद्र के इशारे पर कोई भी फैसला ले सकती है. लेकिन शायद गलत फैसला लेकर वह अपनी भद न कराये. भाजपा के शीर्ष नेता इस बात को समझते हैं. इसलिए शिबू सोरेन के परिवार पर चतुर्दिक हमले हो रहे हैं. कहां किसने जमीन खरीदी, किनके पास कितनी संपत्ति है, वगैरह, वगैरह.
यह भी फैक्ट है कि यदि दो झामुमो विधायकों की विधायकी चली भी जाये तो भी सरकार बहुमत में रहेगी और झामुमो खेमें से कोई दूसरा मुख्यमंत्री बन जायेगा. इसलिए यह समझना जरूरी है कि इन सब से भाजपा चाहती क्या है?
एक तो वह चाहती है कि झामुमो के शीर्ष नेता आत्मरक्षात्मक मुद्रा में रहें. और उनकी यह मनोदशा अगले चुनाव तक बनी रहे. वे जनता के हित में कोई काम न कर पाये और सरकार अलोकप्रिय होती जाये.
उनका दूसरा टारगेट है जो खतरनाक है, वह यह कि लगातार हमले और केंद्रीय संस्थाओं की कार्रवाई से भगदड़ मच जाये. मीडिया की मदद से ऐसा वातावरण बनाया जाय कि लगे, यह सरकार जाने वाली है. विधायकों को लगे कि यह जहाज डूबने वाला है. और डूबते जहाज में जैसा वातावरण बनता है, कुछ ऐसा बन जाये और विधायक भागने लगे. दो निर्दलीय विधायक हैं. और अफरातफरी में कांग्रेस में बड़ा डिफेक्शन हो गया तो यह सरकार तो जायेगी ही जायेगी, भाजपा की सरकार भी बना सकती है.
कांग्रेस के 14 विधायक हैं. इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस के प्रत्याशी हाल के चुनावों में नहीं जीते थे. कांग्रेस के शीर्ष नेता दावा भी कर रहे हैं कि कांग्रेस एकजुट रहेगी और हेमंत सोरेन का समर्थन करेगी. लेकिन कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. कांग्रेस का केंद्रीय शीर्ष नेतृत्व तो यह कभी नहीं चाहेगा कि झारखंड में भाजपा का शासन हो जाये, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और उनके विधायकों में झामुमो के प्रति हमेशा से दुर्भावना रही है.
वजह यह है कि कांग्रेस के प्रत्याशी भले अल्पसंख्यक और दलित, ओबीसी वोटों की मदद से जीतें, लेकिन पार्टी पर वर्चस्व सवर्ण मानसिकता के नेताओं का रहता है और उन्हें भाजपा से कोई खास परहेज नहीं. लेकिन कांग्रेस के विधायकों को समझना चाहिए कि वे भाजपा के विरुद्ध चुनाव जीत कर विधायक बने हैं और यदि वे हेमंत सरकार से गद्दारी करते है तो झारखंडी जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी. जदयू के दवंग विधायकों का हश्र वे देख चुके हैं.
जरूरी है कि महागठबंधन एकजुट रहे और भाजपा की साजिश को नाकामयाब करे. झारखंडी जनता ने जिन उम्मीदों से उन्हें सत्ता में भेजा, उसे पूरा करे. सत्ता भले चली जाये, जनता का विश्वास उनके प्रति बना रहना जरूरी है.