यह खूबसूरत इत्तफाक है कि झारखंड की राजनीतिक मंच के दो प्रमुख किरदार अपने समय के सबसे प्रमुख औद्योगिक शहर बोकारो की हवा में पले बढ़े हैं. परिवेश का प्रभाव तो पड़ता ही है, इसलिए दोनों में कुछ समानताएं भी हैं और पारिवारिक पृष्ठभूमि के हिसाब से अंतर भी. एक हैं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दूसरे हैं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर. बोकारो में दो दशक तक पत्रकार के रूप में रहने की वजह से मुझे दोनों को जानने समझने का अवसर मिला है. हेमंत सोरेन के बारे में सभी जानते हैं कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पुत्र और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं. जबकि राजेश ठाकुर बोकारो स्टील में काम करने वाले एक कर्मचारी के पुत्र. हेमंत सोरेन को शिबू सोरेन का पुत्र होने का लाभ मिला और वे सत्ता के शीर्ष तक पहुंच पाये. राजेश ठाकुर अपनी मेहनत मशक्कत से राजनीति के इस मुकाम तक पहुंचे हैं.

श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए संसदीय चुनाव में दुमका से चुनाव हारने के बाद शिबू सोरेन ने बोकारो को अपना एक प्रमुख ठिकाना बनाया. उन दिनों ही मैंने भी बोकारो में प्रभातखबर के कार्यालय संवाददाता के रूप में काम करना शुरु किया था और अक्सर गुरुजी से मिलने उनके आवास पर जाया करता था. हेमंत उन दिनों छोटे थे इसलिए उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई, लेकिन दुर्गा सोरेन से मुलाकात होती थी.

राजेश ठाकुर शायद दिल्ली में पढ़ते वक्त युवा कांग्रेस में सक्रिय हो गये और फिर वहां से लौट कर बोकारो में राजनीति करने लगे. एक पत्रकार के रूप में उनसे अक्सर मुलाकात होती. मेरे आवास पर भी वे अक्सर आते अपने कार्यक्रमों की प्रेस विज्ञप्तियां लेकर और एक दिन हम लोगों ने यह भी जाना कि वे उस उच्च विद्यालय के विद्यार्थी थे जहां मेरी पत्नी शेषा जी शिक्षिका रही थीं. खैर, यह सब गुजरे जमाने की बात हो गयी.

जो मुद्दे की बात है वह यह कि अभी कांग्रेस और झामुमो महागठबंधन के प्रमुख राजनीतिक दल हैं. झामुमो पिछले चुनाव में 30 सीटों पर विजयी रही थी थी और कांग्रेस 14 सीटों पर. और कांग्रेस के समर्थन की बदौलत झामुमो सरकार स्पष्ट बहुमत में है. करीबन ढाई वर्ष सरकार चल चुकी है. यानि, आधी उम्र पूरी कर चुकी है. आधी शेष है. पूरे देश में कांग्रेस पार्टी के लोग टूट कर दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं. झारखंड कांग्रेस में भी उपर से भले शांति दिखाई देती हो, अंदर से असंतोष पनप रहा है, जिसकी अभिव्यक्ति समय-समय पर होती भी रही है.

अब राज्यसभा चुनाव की दो सीटों के लिए झारखंड में भी ताना तानी है. एक सीट तो भाजपा ले जायेगी, दूसरी सीट पर कांग्रेस और झामुमो दोनों दावा कर रहे हैं. झामुमो अपने संख्या बल के कारण वह एक सीट हासिल कर सकती है, लेकिन कांग्रेस दबाव बना रही है कि वह उनके प्रत्याशी का समर्थन कर उसे राज्यसभा में भेजे. उनकी तरफ से खुले रूप में यह कहा भी जा रहा है कि यदि झामुमो ऐसा नहीं करती है तो दोनों दलों के रिश्तों में खटास आयेगा. हेमंत सोरेन अपने दल बल के साथ दिल्ली जा कर सोनिया गांधी से मुलाकात की और संकेत यह मिल रहे हैं कि झामुमो राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन करेगी. लेकिन अंतिम फैसला तो हेमंत सोरेन रांची लौट कर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन से मिलने के बाद ही करेंगे.

अफवाह यह थी कि राज्यसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशी के रूप में हेमंत सोरेन की पत्नी खड़ी होंगी. लेकिन लगता है झामुमो अभी किसी और विवाद में नहीं फंसना चाहती है. उसने कांग्रेस के इस दावे को स्वीकार कर लिया है कि पिछले राज्यसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने शिबू सोरेन की उम्मीदवारी का समर्थन किया था और इस बार झामुमो को कांग्रेस के प्रत्याशी का समर्थन करना चाहिए. लेकिन विधायकों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने का काम इन दोनों नेताओं पर ही है. क्या हम यह उम्मीद करें कि बोकारो के परिवेश में पले बढ़े ये दोनों नेता झारखंड के हित में काम करेंगे? बड़ी उम्मीद से झारखंडी जनता ने इनके हाथ में सत्ता सौंपी है. क्या वे बचे खुचे कार्यकाल में सरकार को बचा कर जनता के हितों का काम करेंगे?