लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बिहार आंदोलन के दौरान आज के ही दिन जब गांधी मैदान की विशाल जनसभा में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था तो मेरे मन में पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी कि ‘क्रांति’ शब्द अपने आप में परिपूर्ण शब्द है- व्यवस्था में कुछ बुनियादी बदलाव. कुछ लोग इसका रिश्ता ‘फ्रांस की राजक्रांति; से लगाते हैं, कुछ उसका अश्क ‘दस दिन जब दुनियां हिल उठी’ की रूसी क्रांति में देखते हैं. भारत की आजादी एक बड़ी परिधटना है, लेकिन उसे कोई ‘क्राति’ नहीं कहता.
तो, ‘क्राति’ शब्द के रहते जेपी को ‘संपूर्ण क्राति’ जैसे नये शब्द की जरूरत क्यों पड़ी? उस वक्त मुझे इसका कोई सुस्पष्ट उत्तर नहीं मिला, लेकिन धीरे-धीरे कुछ बातें जेहन में उभरने लगी. मैं उसे आप लोगों से शेयर करता हूं. शायद कोई मुकम्मल तस्वीर सामने आये.
पहले तो यह बता दूं कि आज के ही दिन 5 जून 74 को पटना के गांधी मैदान की एक विशाल जनसभा में जेपी ने युवाओं से संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था और उसकी व्याख्या भी की थी सप्त क्रांति के रूप में- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आघ्यात्मिक आदि. एक लोकप्रिया नारा भी उसी दिन बना - ‘संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावि इतिहास हमारा है.’ और एक तात्कालिक व्याख्या यह थी कि ‘सत्ता परिवर्तन नहीं, व्यवस्था परिवर्तन’ हमारा लक्ष्य है.
दरअसल, अब जो बातें जेहन में उभर रहीं हैं वे ये हैंः
0 क्रांति शब्द के साथ हिंसा-रक्तपात बद्धमूल हो गयी थी
0 क्रांति का अर्थ कम्युनिस्टों ने आर्थिक क्रांति तक सिमित कर दिया, क्योंकि उनका मानना ही है कि उत्पादन के साधन, श्रम और पूंजी के रिश्तों में बदलाव से ही जीवन के बुनियादी ढ़ांचे में बदलाव आता है और उसके अनुसार हर क्षेत्र में बदलाव आता है.
0 फ्रांस की राजक्रांति से नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की उद्घोषणा हुई थी जिसे आज हम मौलिक अधिकारों के रूप में देखते हैं. लेकिन रूसी क्रांति ने इसे ‘सर्वहारा की तानाशाही’ में बदल दिया जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार बेमानी हो कर रह गये.
जेपी की संपूर्ण क्रांति पूर्णरूपेण शांतिमय तरीकों पर निर्भर है. क्योंकि यह सोचना कि जनाक्रोश के बीच से कोई लाल सेना उभरेगी और भयंकर मारकाट मचाते वह केंद्र की तरफ कूच करेगी और सत्ता प्रतिष्ठानों को ढ़ाह कर आम जनता का शासन कायम कर देगी, एक रोमानियत से भरी कल्पना मात्र है. सत्ता प्रतिष्ठानों को हमने इस कदर शक्तिशाली बना दिया है कि हिंसक संघर्ष उसका किसी भी तरह से मुकाबला नहीं कर सकती.
लेकिन शांतिमय तरीके से हम सत्ता के चरित्र को बदल सकते हैं. जो काम बंदूक नहीं कर सकती, वह हमारा वोट कर सकती है. वशर्ते हम जात-पात वाली इस व्यवस्था को खत्म करें. लेकिन इसके लिए आर्थिक क्षेत्र में बदलाव की प्रतीक्षा करने के बजाय सामाजिक क्षेत्र में बदलाव की कोशिश करें. जेपी ने जात पात को खत्म करने के लिए ‘जनेउ’ तोड़ने का आह्वान किया था. राजनीति क्षेत्र में ‘प्रतिनिधि वापसी का अधिकार’, ‘जनता उम्मीदवार’ की कल्पना को साकार करने का प्रयास करें. शिक्षा के क्षेत्र में ‘सबकी शिक्षा एक समान’ की समाजवादी सपने को अमली जामा पहनाने की कोशिश करें. अंतिम जन के जीवन को बेहतर बनाना ही नया आघ्यात्म है.
इस तरह हम देखें तो संपूर्ण क्रांति ‘क्राति’ की रोमांटिक धारणा को तोड़ने के साथ साथ जीवन के हर क्षेत्र में कुछ जरूरी बदलाव को चिन्हित करता है. जेपी ने संपूर्ण क्राति के सात आयाम बताये थे, उसमें समयानुसार कुछ नये आयाम भी जुड़ सकते हैं.